यदि आपको लगता है कि ‘आपके बच्चे आदर्श बच्चे बनें’ तो…..

यदि आपको लगता है कि ‘आपके बच्चे आदर्श बच्चे बनें’ तो ‘जैसी कथनी वैसी करनी’, इस संतवचन की भांति हम पालकों को भी आदर्श प्रस्तुत करना होगा । बालक के माता-पिता ही उसके प्रथम गुरु होते हैं । बच्चों को अपने माता-पिता का अनुकरण करना अच्छा लगता है; अतः सर्व पालकों को स्वयं धर्माचरण कर आदर्श बनने का प्रयास करना चाहिए ।

१. आदर्श पालकों के गुणधर्म

बालक को आदर्श नागरिक बनाने हेतु माता-पिता का सतत जागरूक रहना आवश्यक है । आदर्श पालक बनने हेतु महत्त्वपूर्ण गुणों का विवेचन नीचे दिया गया है।

१ अ. निरपेक्ष प्रेम : आदर्श पालक का मुख्य रूप से पहचाना जानेवाला गुण अर्थात निरपेक्ष प्रेम । कोई भी अपेक्षा न रखते हुए हमारा बच्चा जैसा है, वैसा ही उन्हें प्रिय लगता है । बच्चा मंदबुद्धि हो तो भी, आदर्श पालक अपने कर्तव्य का पालन कर उस बच्चे को अन्य बच्चों समान ही प्रेम करते हैं । बच्चों की प्रगति करने तथा उनका विकास होने में निरपेक्ष प्रेम का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । जिससे बच्चों में आत्मविश्वास निर्माण होता है । आदर्श पालक अपने बच्चे का मन प्रेम तथा मिलनसार वृत्ति से जीत लेते हैं ।

१ आ. सहवास : बच्चों का अपने पालकों के साथ रहने हेतु उत्सुक रहना तथा उनके साथ रहने में प्रसन्नता अनुभव करना यही आदर्श पालक होने का लक्षण है ।

१ इ. बच्चों के आदर्श : अभिमानी माता-पिता बच्चों को अच्छे लगते हैं । पिता कर्तव्यपरायण परिवार प्रमुख तथा समाज में महत्त्वपूर्ण सम्मानित व्यक्ति के रूप में अपना आदर्श बच्चे के सामने रखें । एक स्त्री के रूप में पत्नी, माता, मामी, मौसी तथा चाची इन विभिन्न भूमिकाओं में माता अपने बच्चे के सामने एक उत्तम आदर्श निर्माण कर सकती है तथा उसके द्वारा मिलनेवाला मानसिक संतोष भी बच्चों के सामने रख सकती है ।

१ ई. जिज्ञासु मन को प्रोत्साहन : बच्चे में समीप के वातावरण के प्रति कुतूहल रहता है । बटन दबानेपर दीपमाला कैसे जलती है ? बच्चा माता के पेट में कैसे रहता है ? मरने के पश्चात दादाजी कहां गए ? प्रभु कहां रहते हैं? इत्यादि प्रश्नों की बौछार वे माता-पितापर करते हैं । अपने काम को एक ओर रखकर बच्चे के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर पालकों को देना चाहिए ।

१ उ. सुप्त गुणों का वर्धन : प्रत्येक बालक में जन्म से ही कुछ सुप्त गुण होते हैं । कुछ बच्चों को संगीत में, तो कुछ बच्चों की चित्रकला में रूचि होती है । जीवन का सच्चा आनंद प्राप्त करने हेतु तथा जीवन का सार आकलन करने हेतु विविध कलाओं का भंडार पालक बच्चों के लिए खोलें ।

१ ऊ. बौद्धिक वर्धन तथा विकास : बौद्धिक रूप से बढने तथा विकास करने हेतु, सतत ज्ञान देने हेतु आवश्यक सर्व प्रकार की शैक्षणिक सामग्री पालक बच्चों को उपलब्ध कराएं तथा उनका योग्य मार्गदर्शन करें ।

१ ए. बच्चों को समझने की समझदारी : आदर्श पालक बच्चों के प्रत्येक प्रश्न का विचार बच्चे की दृष्टि से करते हैं ।

१ ऐ. वात्सल्य तथा कर्तव्य : वात्सल्य अर्थात प्रेम के अभाव में केवल कर्तव्य पालन करनेवाले पालकों के बच्चे उनसे दूर हो जाते हैं । उन्हें पालकों से प्रेम नहीं लगता । उनके मन में पालकों के प्रति तिरस्कार की भावना निर्माण हो जाती है ।

इसके चलते कर्तव्य के अभाव में अंधी माया से बच्चे का सर्वनाश कैसे होता है, यह इस कथा से ध्यान में आयेगा ।

एक चोर को न्यायाधीश ने उसके हाथ तोडनेका दंड दिया । दंड से पूर्व मां से कुछ गुप्त बात करने के लिए चोर ने अपनी मां के कान को इतनी जोर से काटा कि मां का कान कट कर नीचे गिर गया । आश्चर्यचकित हो न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘तू ने अपनी मां के साथ इतनी निर्दयता क्यों की ?” चोर ने उत्तर दिया, ‘‘यदि मां ने बचपन में माया के कारण मेरे अपराध तथा छोटी-मोटी चोरी को न छिपाते हुए मुझे कडा दंड दिया होता, तो आज मुझे अपना हाथ न तुडवाना पडता ।’’

१ ओ. वात्सल्य तथा कर्तव्य का सुन्दर संगम : एक सुप्रसिद्ध बालरोगविशेषज्ञ की पत्नी स्वयं भी एक बालरोग विशेषज्ञ थी । अत्यंत कुशाग्रबुद्धि, सुप्रसिद्ध विद्यार्थिनि एवं बादमें प्राध्यापक के रूप में चिकित्सक महाविद्यालय में सेवारत हुर्ई । प्रथम संतान होनेपर उसने चाकरी छोड दी । २० वर्ष उपरांत वह पुनः उसी महाविद्यालय में कनिष्ठ पदपर कार्यरत हुई । यदि उसने पूर्व में चाकरी न छोडी होती, तो वह वहां विभागप्रमुख बन गई होती । ‘त्यागपत्र देकर अपने उज्ज्वल भविष्य का नाश क्यों किया’, यह प्रश्न पूछे जानेपर उसने उत्तर दिया, ‘‘त्यागपत्र न दिया होता, तो मेरा भविष्य तो उज्ज्वल हो गया होता; परंतु त्यागपत्र देकर मैं ने अपने चार बच्चों का भविष्य बनाया, इसका मुझे इस क्षण भी अत्यंत आनंद तथा गर्व हो रहा है ।”

१ औ. आदर्श नागरिक : कालांतर में आदर्श नागरिक बनकर समाज हेतु अपने कर्तव्य का पालन करना आवश्यक है । यह बात माता-पिता को अपने आचरण द्वारा अपने बच्चे के मनपर अंकित करना आवश्यक है । अपने सर्व कर्तव्य पालन करते हुए बच्चे के साथ प्रेम, बुद्धिमानी तथा प्रसंग आनेपर कठोर व्यवहार करना भी आवश्यक होता है ।

१ अं. आदर्श माता-पिता : माता तथा पिता इन शब्दों की व्युत्पत्ति अर्थपूर्ण है, माता – ‘मां तारयति इति माता ।’ मां जो मुझे, तारती है अर्थात मेरा रक्षण करती है, वह माता है । संकट, बुरी संगत तथा अयोग्य विचारों से हमारा संरक्षण कर हमें संसार सागर से तर जाने का मार्गदर्शन करती है, वह है माता । पिता – पीयते तुरियान् । समाधि की तुर्यावस्था का अनुभव जो दे सकता है, वह है पिता । दूसरी व्युत्पत्ति – ‘पितृन् तारयति ।’ जो स्वयं को ही नहीं, पितरों को भी जन्ममृत्यु के फेरे से छुडाता है, वह है पिता ।

यदि हम आदर्श माता-पिता बनें, तो बच्चा भी पुंडलिक की भांति आदर्श होगा । यदि प्रत्येक बच्चा आदर्श नागरिक बन गया, तो शक्ति, प्रगति, शांति तथा सुख से यह पृथ्वी ही स्वर्ग बन जाएगी !

संदर्भ : ‘संस्कार यही साधना’, लेखक : डॉ. वसंत बा. आठवले, एम्. डी., डी. सी. एच, एफ ए. एम. एस., वैद्याचार्य तथा डॉ. कमलेश एवं. आठवले एम. डी., डी. एन. बी., एफ. ए. एम. एन. एस.

Leave a Comment