दीपावली

बच्चों, हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार ‘दीपावली’ मनाकर ईश्वर की कृपा संपादन करें !

‘मित्रों, दीपावली अर्थात दीपओं की पंक्ति ! दीपक जलाने के उपरांत क्या होता है ? जीवन में आनंद एवं उत्साह निर्माण होता है । दीपावली आनंदी जीवन का प्रारंभ ! भारतवर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है । इसे दीपोत्सव भी कहते हैं । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय ।’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है । अपने घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहे, ज्ञान का प्रकाश रहे, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति बडे आनंद से दीपोत्सव मनाता है । हम जिस पद्धति से दीपावली मनाते हैं, उससे अन्यों को दुःख तथा पीडा होती है । वह ईश्वर को अच्छा लगेगा क्या ? अन्यों को आनंद हो, ऐसी प्रत्येक कृति करना, यही खरी दीपावली !

१. ‘दीपावली’ त्यौहार का विवेचन

१ अ. अर्थ : दीपावली अर्थात दीप + आवली । इस दिन सर्वत्र पंक्तिबद्ध दीपक लगाए जाते हैं ।

१ आ. भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण ने असुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, स्वार्थ, लालसा, अनाचार एवं दुष्ट प्रवृत्ति से मुक्त किया तथा दैवी विचार दिए । भगवान श्रीकृष्ण ने भी हमें ‘स्वयं के दोष नष्ट कर गुणों का संवर्धन कर आनंदी जीवन बिताएं’, ऐसा कहा है ।

१ इ. दीपावली का इतिहास : १४ वर्षों का वनवास पूर्ण करने के उपरांत भगवान श्रीराम अयोध्या आए । उस समय जनता ने दीपोत्सव मनाया । तबसे ‘दीपावली’ का उत्सव मनाना प्रारंभ हुआ ।

२. दीपावली के प्रत्येक दिन का शास्त्रोक्त पद्धति से किया गया विवेचन

२ अ. धनत्रयोदशी (धनतेरस) (आश्विन कृ. त्रयोदशी)

अ १. धन की पूजा करना : इस दिन व्यापारी तिजोरी का पूजन करते हैं । गत वर्ष की दीपावली से चालू वर्ष की दीपावली ऐसा व्यापारी वर्ष होता है । नए हिसाब की बहियां इसी दिन लाई जाती हैं । जीवन का पोषण सुचारू रूप से चालू रखनेवाले धन की भी पूजा की जाती है । यहां धन अर्थात शुद्ध लक्ष्मी !

२ अ २. ‘अनुचित मार्ग से (कुमार्ग से) कभी भी पैसा नहीं कमाऊंगा’, ऐसी प्रतिज्ञा करें : मित्रों, धन अर्थात पैसा ! वह हमें उचित मार्ग से कमाना चाहिए । दूसरों को फंसाकर, भ्रष्टाचार से अथवा चोरी से प्राप्त धन, धन नहीं हो सकता । उसमें से हमपर लक्ष्मीजी की कृपा भी नहीं हो सकती । वह पाप है । धनत्रयोदशी को ‘मैं कभी भी अनुचित मार्ग से पैसा नहीं कमाऊंगा’, ऐसी प्रतिज्ञा प्रत्येक को करनी चाहिए ।

२ अ ३. ‘सभी को धर्म के मार्ग से पैसा कमाने की बुदि्ध दीजिए’, ऐसी प्रार्थना करें : आज देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार चालू है । ऐसे लोगों को धन की पूजा करने का अधिकार है क्या ? मित्रों, इस दिन लक्ष्मीदेवी को प्रार्थना करो, ‘हे माते, अधर्म से पैसा कमाने की वृत्ति इस देश से नष्ट होने दें तथा सभी को धर्म के मार्ग से पैसा कमाने की बुदि्ध होने दें ।’ वर्तमान में कुछ बच्चे पिताजी की जेब से (खीसे से), तो कुछ बच्चे कक्षा में अन्य बच्चों के बस्ते से पैसे चुराते हैं । ऐसे बच्चे दीपावली मनाएं, तो उनपर देवी की कृपा होगी क्या ? यदि हमसे ऐसी चूक हो रही है, तो उसे टालने का निश्चय करें । यही खरी धनतेरस है ।

२ आ. धन्वंतरी जयंती (आश्विन कृ. त्रयोदशी)


धन्वंतरी जयंती

धन्वंतरी जयंती

२ आ १. बाहर के असात्त्विक व्यंजन न खाने का निश्चय कर प्रतिदिन सात्त्विक आहार ग्रहण कर धन्वंतरी देवी की कृपा संपादन करें ! : समुद्रमंथन के समय धनत्रयोदशी के दिन अमृत कलश हाथ में लेकर देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए । इसीलिए यह दिन भगवान धन्वंतरि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है । वैद्य इस दिन ‘देवताओं के वैद्य’ इस भाव से धन्वंतरी का पूजन करते हैं । उस समय नीम के पत्ते तथा शक्कर का भोग लगाते हैं । नीम की उत्पत्ति अमृत से हुई है । प्रतिदिन ५-६ नीम के पत्ते खाने से हम निरोगी रहते हैं । वर्तमान में बच्चे मां के हाथ की बनी हुई रोटी-तरकारी (भाजी) भी नहीं खाते । बाहर मिलनेवाले बर्गर, पिज्जा, चाकलेट आदि खाद्यपदार्थों के कारण स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता । धन्वंतरी देवता स्वास्थ्य प्रदान करनेवाले देवता है । इस दिन हम घर का सात्त्विक आहार लेने का निश्चय करें, तो ईश्वर की कृपा होकर हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा ।

२ इ. यमदीपदान ( आश्विन कृ. त्रयोदशी)


यमदीपदान

यमदीपदान

२ इ १. अकाल मृत्यू टालने के लिए आटे के १३ दीपक दक्षिण दिशा की ओर मुखकर लगाएं : प्राण हरण करने का कार्य यमराज के पास है । कालमृत्यू किसी को भी नहीं चूकती; परंतु अचानक मृत्यू किसी को न आए, इस हेतु आटे के १३ दीपक दक्षिण दिशा में मुखकर लगाएं । हम कभी भी दक्षिदिशा में दीपक नहीं लगाते; परंतु इस दिन हम वैसी कृति करते हैं ।

२ ई. नरकचतुर्दशी (आश्विन कृ. चतुर्दशी)

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नरकासुरक वध

२ ई १. नरकासुर के वध की कथा

२ ई १ अ. भगवान श्रीकृष्णने देव एवं मानवों को यातना देनेवाले नरकासुर का वध कर उसके बंदीगृह की राजकन्याओं को मुक्त करना : पूर्व में प्रागज्योतिषपूर में नरकासुर नामक असुर राज्य करता था । वह देवता तथा मानवो को बहुत यातनाएं देने लगा । स्त्रियों को भी यातना देता था । उसने १६ सहस्र राजकन्याओं को बंदीगृह में बंद किया था, तथा उनसे विवाह करने का विचार किया । ऐसे में सर्व लोगों में भय निर्मित हुआ । यह समाचार भगवान श्रीकृष्ण को ज्ञात होनेपर वे सत्यभामा के साथ वहां गए । उन्होंने नरकासुर का वध किया तथा सर्व राजकन्याओं को मुक्त किया ।

२ ई १ आ. नरकचतुर्दशी के दिन मंगल स्नान करनेवाले को कोई भी दुःख न होने का वर भगवान श्रीकृष्णद्वारा नरकासुर को देना : नरकासुरने भगवान श्रीकृष्णजी से वचन मांगा, ‘इस दिन जो कोई मंगल स्नान करेगा, उसे कोई भी दुःख नहीं होगा ।’ भगवान श्रीकृष्णने वैसा वर उसे दिया । नरकचतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्णने नरकासुर को मारकर अपने माथेपर रक्तका तिलक लगाया । घर आनेपर सर्व स्त्रियों ने भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारी। नरकासुर के वध के प्रतीक के रूप में लोग पैर से कारीट कुचलते हैं ।

२ उ. लक्ष्मीपूजन (आश्विन अमावास्या)


लक्ष्मीपूजन

लक्ष्मीपूजन

२ उ १. लक्ष्मीपूजन को लक्ष्मीजी भक्तों के यहां रहने के लिए आती हैं । अतः विविध गुण स्वयं में लाकर उनके भक्त बने : श्रीविष्णूने लक्ष्मीजी सहित सर्व देवताओं को राजा बली के बंदीगृह से मुक्त किया, यह वहीदिन है ! इस दिन एक चौकीपर अक्षतों का स्वस्तिक बनाते हैं । उसपर लक्ष्मीजी एवं कुबेर की प्रतिमा रखते हैं । लक्ष्मीजी को धनिया, गुड, खील-बताशे का भोग लगाते हैं । धनिया धनवाचक है तथा खील समृदि्ध का प्रतीक है। ‘उस रात लक्ष्मीजी सर्वत्र संचार कर स्वयं के निवास योग्य स्थान खोजती हैं’, ऐसा पुराणों में बताया गया है । उन्हें कहां रहना अच्छा लगता है ? जो देवभक्त, सत्य बोलनेवाले, ईश्वर को अच्छा लगे ऐसा आचरण करनेवाले, तथा जिनकी प्रत्येक कृति से अन्यों को आनंद मिलता हो, ऐसे लोगों के घर ही देवी को रहना अच्छा लगता है । ‘हमारे घर लक्ष्मीजी वास करें’, ऐसा तुम्हें लगता है ना ? तो हम भी अपने में उपरोक्त गुण लाने का निश्चय करें, यही खरा लक्ष्मीपूजन है ।

२ उ २. कुबेर देवता की पूजा करने का महत्त्व : संपत्ति रखने से, तथा पैसा कमाने की अपेक्षा उसे योग्य स्थानपर व्यय करना कुबेर देवता सिखाते र्हैं; इसलिए हम कुबेर की प्रतिमा की पूजा करते हैं । अनेक व्यक्तियों के पास पैसा आता है; परंतु उसे व्यय कैसे करें तथा कैसे रखें, वह उन्हें ज्ञात नहीं होता । इस हेतु कुबेर की पूजा करनी चाहिए ।

२ उ ३. अलक्ष्मी निःसारण : हमने लक्ष्मीजी की पूजा कर उन्हें बुलाया; परंतु अलक्ष्मी का नाश होनेपर ही लक्ष्मीजी रहेंगी ना ? जैसे गुण आए; परंतु दोष नहीं गए, तो गुणों को महत्व रहेगा क्या ? नहीं । तो उस दिन नई झाडू लेकर मध्यरात्री में बुहारें । कचरा अर्थात अलक्ष्मी ! इस रात्री में वह कचरा बाहर फेंकते हैं । अन्य समय हम कभी भी रात्री में कचरा बाहर नहीं फेंकते हैं ।

२ ऊ. बलीप्रतिपदा (कार्तिक शु. प्रतिपदा)


बलीप्रतिपदा

बलीप्रतिपदा

२ ऊ १. बलीराजा के समान ईश्वर को सर्वस्व अर्पण करें : इस दिन हम दानवीर बलीराजा एवं उनकी पत्नी विंध्यावली की पूजा करते हैं । दान सदायोग्य व्यक्ति को ही देना चाहिए; परंतु बलीराजाने वैसा न कर जो कोई कुछ मांगेगा, उसे दान दिया । कुछ अपात्र लोगों के हाथों धन जाने से वे अन्यों को यातना देने लगे । अंत में भगवान विष्णूने वामन अवतार धारण कर बली को पाताल में भेज दिया । बलीने वामन अवताररूपी श्रीविष्णू को सर्वस्व अर्पण किया एवं वह पूर्ण रूप से ईश्वर की शरण में गया । मित्रों, हमपर भी ईश्वर की शरण में जाने से कृपा होती है ।

२ ए. भाईदूज (कार्तिक शु. द्वितीया)

२ ए १. जीन्स-पैंट एवं टी-शर्टकी अपेक्षा बहन को पंजाबी पोशाख अथवा लहंगा-चोली भेंट दें : भाईदूज के दिन भाई बहन के यहां आनेपर बहन ने उसकी आरती उतारना चाहिए । भाई न हो, तो किसी भी एक पुरुष को भाई मानकर उसकी आरती उतारें । इस दिन पतिने अपने पत्नी के हाथ का भोजन न खाकर बहन के यहां भोजन के लिए जाना चाहिए । बहन को वस्त्र भेंट देते समय जीन्स-पैंट एवं टी-शर्ट देंगे क्या ? उसकी अपेक्षा उसे पंजाबी पोशाख, साडी अथवा बहन छोटी हो तो लहंगा-चोली दें ।

‘हमें अपनी हिंदू  संस्कृति की रक्षा करनी है’, इस भाव से उस दिन कुर्ता-पजामा अथवा धोती-कुर्ता पहनकर बहन के यहां जाएं । इस समय बहन को काले रंग के कपडे न दें ।

३. बिजली के तथा तेल के दीपक की सजावट करने से होनेवाली हानि एवं लाभ

बिजली के दीपक की सजावट तेल के दीपको की सजावट
१. वातावरण में विद्यमान देवताओं का चैतन्य चैतन्य आकर्षित करने की क्षमता न होने से कोई लाभ न होना वातावरण से देवताओं का चैतन्य मिलकर उत्साह प्रतीत होना
२. आकर्षण क्षमता आंखों को केवल आकर्षित करना; परंतु मन को आनंद प्रतीत न होना मन को समाधान एवं शांति मिलना
३. बहिर्मुखता/ अंतर्मुखता बहिर्मुखता बढकर स्वयं के दोषों का अभ्यास करने की अपेक्षा अन्यों के दोषों की ओर ध्यान जाना तथा तनाव बढना अंतर्मुखता बढकर स्वयं के दोषों का अभ्यास कर पाना
४. राष्ट्रीय संपत्ति की बचत न होना होना

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.