नागपंचमी

नागपंचमी के विषय में कुछ कथाएं

१. यमुनाजी में (यमुना नदी में) कालिया नाम का नाग अपने परिवार के साथ रहता था । वह दुष्ट था । उसके कारण वृंदावनवासियों को बहुत कष्ट होते थे । उसकी दुष्टता दूर कर भगवान श्रीकृष्णजी ने उसे उसके पूरे परिवार के साथ रमणिक द्वीप भेज दिया । वह दिन था श्रावण शुक्ल पंचमी ।

२. महाभारत के अनुसार द्वापर युग के अंत में तक्षक नामक नागने पांडव कुल के राजा परीक्षित को दंश किया । इस कारण राजा परीक्षित की मृत्यु हुई । तक्षकद्वारा किए इस अपराध के दंड हेतु राजा परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजयने सर्पयज्ञ आरंभ किया । इस यज्ञ में राजाने सर्व सर्पों की आहुति देनी आरंभ की । तब तक्षक नागने स्वयं को बचाने के लिए देवताओं के राजा इंद्र का आश्रय लिया । यह देखकर राजा जनमेजयने इंद्राय स्वाहा: । तक्षकाय स्वाहा: कहते हुए यज्ञ में इंद्र की भी आहुति डाली । उसी समय पूरे नागवंश का नाश न हो, इसलिए आस्तिक ऋषिने तप आरंभ किया और सर्पयज्ञ करनेवाले राजा जनमेजय को अपनी तपःश्चर्या से प्रसन्न कर लिया । राजा जनमेजयने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा । जिस दिन राजा जनमेजयने सर्पयज्ञ रोका, वह तिथि थी श्रावण शुक्ल पंचमी । कथा का बोध – राजा जनमेजयने तक्षक नाग देवताओं के साथ राजा इंद्र की भी आहुति दी । राजा जनमेजयने अपनी इस कृत्यद्वारा बोध कराया कि, अपराधी के साथ साथ अपराधी की रक्षा करनेवाला अथवा उसे आश्रय देनेवाला भी उतना ही अपराधी होता है । उसे भी अपराधी-समान ही दंड देना चाहिए । उसके साथ अपराधी-समान ही वर्तन करना चाहिए ।

नागपंचमी

१. ‘प्राणीमात्र में ईश्वर है’, यह ज्ञान होनेपर सभी से समानता से आचरण करने के लिए संत ज्ञानेश्वरद्वारा सिखाना : जब संत ज्ञानेश्वर को पैठण के लोगोंने पूछा, ‘‘आप कहते हैं कि प्रत्येक प्राणीमात्र में ईश्वर है । तो सामने से आनेवाला भैंसा वेद बोलेगा क्या ?’’ इसपर संत ज्ञानेश्वर महाराज बोले, ‘‘क्यों नहीं ? जो ईश्वरीय तत्व मुझ में है, वही इस भैंसा में है ।’’ उनके भैंसा के मस्तकपर हाथ रखते ही चमत्कार हुआ । भैंसा वेद बोलने लगा । उस समय ‘ईश्वर प्रत्येक में है’, इसका सभी लोगों को बोध हुआ । संत ज्ञानेश्वरने इस बात से सभी को सिखाया कि ‘किसी भी प्राणीमात्र को कम न आकें’ । उनमें भी ईश्वर है, इस भाव से उनसे व्यवहार करें ।’

२. नागपंचमी की सीख : मित्रो, हम नागपंचमीपर नाग की पूजा करते हैं । इससे ‘महान हिंदू संस्कृति में नाग के ईश्वरीय तत्व की देवतासमान पूजा करते हैं’, यह हमें सीखना है ।

मित्रो, आजकाल हम पढते हैं कि ‘अनेक प्राणियों की जातियां नष्ट हो रही हैं । लोग प्राणियों का अवैध मार्ग से शिकार करते हैं ।’ तो आइए, नागपंचमी के अवसरपर हम सभी यह प्रण करें कि प्राणियों का शिकार न कर हम उनके संवंर्धन का प्रयास करेंगे ।

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.

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