दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने कहा कि झंडा कमेटी के अध्यक्ष प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने भगवा ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज मानने का सुझाव दिया था लेकिन तुष्टीकरण के चक्कर में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने उनका सुझाव नहीं माना।
उन्होंने यह भी कहा कि यह बात पूरी तरह से निराधार है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आजादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था।
सिन्हा के मुताबिक, यह कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष वादियों और विदेशी कृपा पर काम करने वाले कथित इतिहासकारों का दुष्प्रचार है। वह रविवार को सिटी मांटेसरी स्कूल में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की केंद्रीय गुरुदक्षिणा कार्यक्रम में बोल रहे थे।
व्यक्ति नहीं राष्ट्र को महत्वपूर्ण मानें संघ
इस आंदोलन में डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में दस हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था। संघ के स्वयंसेवकों को समाज के सामने पूरे तथ्य रखने की जरूरत है।
स्वयंसेवकों को राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रीय ध्वज में अंतर समझना चाहिए। साथ ही लोगों को इस बारे में बताना भी चाहिए। राष्ट्र ध्वज हमारी संस्कृति का तो राष्ट्रीय ध्वज हमारे राष्ट्र की संप्रभुता का प्रतीक है।
राष्ट्र ध्वज भगवा ही है लेकिन राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है। सिन्हा ने कहा, संघ के स्वयंसेवकों को हमेशा यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उनके लिए व्यक्ति नहीं राष्ट्र ही महत्वपूर्ण है।
इसीलिए संघ ने प्रारंभ से ही किसी व्यक्ति को अपना गुरू मानने या बनाने के बजाय राष्ट्र ध्वज अर्थात विशिष्ट प्रकार के भगवा ध्वज को ही अपना गुरू मानकर काम शुरू किया। यही वजह है कि दूसरे संगठन समय के साथ बुजुर्ग हो रहे हैं लेकिन संघ जवान होता जा रहा है।
स्त्रोत : अमर उजाला