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जैन समाज के ‘संथारा’ प्रथा पर पाबंदी डालने का राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय अन्यायकारक ! – हिन्दू जनजागृति समिति

‘संथारा’ प्रथा पर पांबदी का विरोध करने हेतु जैन समाज पथ पर

राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा संथारा प्रथा पर पाबंदी डालने के पश्चात् समाज में उसकी तीव्र ध्वनि गूंज उठी है । इस पाबंदी का विरोध करने हेतु भाईंदर (जनपद ठाणे) मुंबई, पिंपरी-चिंचवड, संभाजीनगर तथा नासिक में सहस्रों की संख्या में जैन धर्मी पथ पर उतर आए हैं । उस समय उन्होंने शांति से पथ पर न्यायालय के निर्णय का निषेध व्यक्त किया । जैन धर्मी जनप्रतिनिधि भी इस आंदोलन में सम्मिलित हुए थे ।

santhara

मुंबई : हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा श्री. सुनील घनवट ने अपनी भूमिका स्पष्ट करते हुए यह कहा कि ‘हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा जैन समाज की ‘संथारा’ प्रथा पर पाबंदी डाली गई है । वास्तव में ‘संथारा’ तथा ‘सल्लेखना’ ये प्रथाएं जैन समाज की साधना के भाग हैं । ‘सल्लेखना’ एक व्रत है । यह व्रत सहज किसी को प्रदान नहीं किया जाता । उसके भी कुछ नियम रहते हैं, साथ ही इसमें किसी पर भी बल का उपयोग नहीं किया जाता । इस व्रत के कारण कभी भी किसी को भी कष्ट नहीं हुए हैं और ना ही उसके कारण समाज में किसी भी प्रकार का असंतुलन उत्पन्न हुआ है । ‘संथारा’ पूरी तरह से स्वेच्छापूर्वक अपनाने का व्रत है तथा उसमें धीरे-धीरे मृत्यु को स्वीकार किया जाता है । अतः जैन समाज की ‘संथारा’ प्रथा पर पाबंदी डालने का राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय अन्यायकारक है ।

केवल हिन्दू तथा जैन समाज की प्रथा एवं व्रतों को ही लक्ष्य क्यों किया जा रहा है ?’

इस निवेदन में आगे यह प्रस्तुत किया है कि एक ओर जैन समाज की सर्व स्वीकृति प्रथा पर पाबंदी डाली जाती है, उसी समय इस देश में गोहत्या पर पाबंदी नहीं डाली जाती तथा पशुवधगृहों पर भी पाबंदी नहीं डाली जाती । क्या यह दोहरी नीति की भूमिका नहीं है ? मुसलमान खुले आम संपूर्ण पथ, रेलवे प्लेटफॉर्म पर अन्य नागरिकों को होनेवाले कष्ट की ओर अनदेखा कर सामूहिक स्थानों पर नमाजपठन करते हैं । इस नमाज पठन के कारण परिवहन, ध्वनिप्रदूषण, साथ ही अन्य समस्या उत्पन्न होते हुए भी उन पर कभी भी कार्यवाही नहीं की जाती ।

यदि ऐसा कहा जाता है कि इस देश में अधिनियम सभी के लिए समान हैं, तो मुसलमानों के इस कृत्य पर अधिनियमानुसार कार्यवाही क्यों नहीं की जाती ? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्राप्त आदेशानुसार ध्वनिप्रदूषण के संदर्भ में लागू किए गए निर्णय में रात्रि १० से प्रातः ६ बजे तक किसी भी प्रकार का ध्वनिक्षेपक का प्रयोग नहीं होना चाहिए । इस आदेश की कार्यान्विति मस्जिद के भोंगे के संदर्भ में कहीं भी दिखाई नहीं देती । मोहर्रम के समय मुसलमान पथ पर शोभायात्रा का आयोजन कर शरीर पर गंभीर स्वरूप के घाव करते हैं । इसमें किसी की मृत्यु होने की संभावना भी हो सकती है । खुले आम चल रही इस प्रथा के विरोध में पाबंदी डालने का प्रयास किसी भी शासन अथवा न्यायालय द्वारा क्यों नहीं किया जाता ? शासन को हमारी यह विनती है कि ‘भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को उपासना करने की स्वतंत्रता प्राप्त है । ‘संथारा’जैन समाज के लिए एक उपासना पद्धति ही है । राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा प्राप्त निर्णय के साथ हम सहमत नहीं हैं । साथ ही देश में धार्मिक स्वतंत्रता अबाधित रखना ही चाहिए; इसलिए शासन इस निर्णय में त्वरित हस्तक्षेप कर इस निर्णय को अभी परिवर्तित करे तथा समयानुसार उसके लिए अधिनियम पुनर्पारित करें ।’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

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