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महिलाओं को कामुक तरीके से दिखाया तो अब खैर नहीं !

‘यौन शोषण’ या ‘सेक्सप्लॉइटेशन’ (Sexploitation) के दायरे में म‌िडिया में महिलाओं को प्रदर्शित करने का तरीका भी शामिल किया जा सकता है। समाचार माध्यमों यानी इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या वेबसाइट्स में महिलाओं को कामुक तरीके से दिखाया जाता है तो उसे यौन शोषण माना जाएगा।

नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नालसा) ने सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट दी है, जिसमें ‘यौन शोषण’ की परिभाषा में विस्तार करने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इम्‍मोरल ट्रै‌फिक (प्रिवेंशन) एक्ट बने ५० साल से भी ज्यादा हो गए, लेकिन ये कानून वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं का व्यापार रोकने में बुरी तरह विफल रहा है।

रिपोर्ट में मीडिया में महिलाओं को कामुक तरीके से प्रदर्शित करने को ‘यौन शोषण’ के दायरे में शामिल करने की सिफारिश की गई है। सुप्रीम कोर्ट नालसा की सिफारिशें मान लेता है तो मीडिया में महिलाओं के प्रदर्शन के तरीकों में आमूलचूल बदलाव आ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में प्रजावाला ने लगाई याचिका

उल्लेखनीय है कि इम्‍मोरल ट्रै‌फिक (प्रिवेंशन) एक्ट १९५६ में बनाया गया था, उस कानून के तहत ‘वेश्यावृत्ति’ को यौन शोषण के रूप में या किसी महिला (व्यक्ति) का व्यापारिक उद्देश्यों से या पैसे के लिए या किसी अन्य कारण से शोषण के रूप में परिभाषित किया गया था।

हालांकि इस कानून से बहुत फर्क नहीं पड़ा और महिलाओं की खरीद-फरोख्त जारी रही। गैर सरकारी संगठन प्रजावाला ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली और सर्वोच्‍च अदालत का ध्यान इस ओर दिलाया।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के बाद नालसा ने व्यापक अध्ययन किया और एक रिर्पोट तैयार की, जिसमें यौन शोषण रोकने के लिए कई सलाहें और सिफारिशें की गईं थीं। रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट संसद को कहे कि वह यौन शोषण को फिर से परिभा‌षित करे और १९५६ के कानून में जो कमियां रह गई हैं उन्हें समाप्त किया जाए।

सिफारिशों से सरकार भी सहमत

र‌िपोर्ट में कहा गया कि संसद जब तक कानून बनाए तब तक सुप्रीम कोर्ट यौन शोषण के दायरे को और अधिक विस्तृत करे।

ऐसे हालात जिसमें किसी का दुष्कर्म, दबाव में शोषण और मीडिया में कामुक तरीके से चित्रण आद‌ि हों, को यौन शोषण की परिभाषा में शामिल किया जाए।

नालसा की सिफारिशों से केंद्र भी सहमत दिख रहा है। अतिरिक्त महान्यायवादी नीरज किशन कौल ने सप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच, जिसमें ए.आर. दवे, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ ने बताया कि केंद्र ने नालसा की सिफारिशें देखी हैं और अधिकांश से सहमत है। कौल ने बताया कि सेंट्रल एडवाइजरी कमेटी नालसा की सिफारिशों पर ३ सितंबर पर का विचार करेगी।

स्त्रोत : अमर उजाला

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