Menu Close

सिंहस्थपर्व का मुख्य स्थान : नासिक जनपद का श्रीक्षेत्र कावनई !

कपिलतीर्थ के स्थान पे गोमुख

नाशिक से लगभग ४७ कि.मी. दूरी पर श्रीक्षेत्र कावनई नामक अतिप्राचीन गांव है । इस पवित्र क्षेत्र को अनेक धार्मिक तथा ऐतिहासिक संदर्भ हैं । मुख्य बात यह है कि, सत्ययुग से वर्ष १७७० तक इसी स्थान पर सिंहस्थपर्व का आयोजन किया जाता था । कानवई के श्री फलाहारीबाबा ने दैनिक सनातन प्रभात के प्रतिनिधी श्री. शैलेश पोटे को यह जानकारी प्रदान की । सिंहस्थपर्व के समय ६ सितम्बर को प्रात: यहां राजयोगी (शाही) स्नान का आयोजन किया गया था । इस राजयोगी स्नान के उपलक्ष्य में साधु-महंतों की शोभायात्रा आयोजित की गर्इ । सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा साधु-महंतों का कृतज्ञताभाव से स्वागत किया गया । राजयोगी स्नान की पाश्र्वभूमि पर इस पुण्यभू क्षेत्र का माहात्म्य तथा जानकारी के संबंध में सारांश में परिचय करेंगे ।

श्रीक्षेत्र कावनई का महात्म्य

१. देव तथा असुर में हुए समुद्रमंथन मे देवताओं को जो अमृतकुंभ प्राप्त हुआ, वह अमृत देवताओं ने इसी स्थान पर प्राशन किया था ।

२. सत्ययुग से वर्ष १७७० तक इसी स्थान पर सिंहस्थ मेले का आयोजन किया जाता है । वास्तव में देखा जाए, तो सिंहस्थपर्व का कावनई ही मुख्य स्थान है ।

३. ७०० वर्ष पूर्व संत ज्ञानेश्वर महाराज ने यहां के तीर्थ से एक मृत बालक को जीवित किया था ।

४. सत्ययुग के २४ अवतारमें से १ अवतारवाले महामुनी श्री कपिल का जन्म यहां हुआ था । वे ५ वर्ष के थे, उस समय उन्होंने अपनी मातोश्री देवहुती को सांख्यशास्त्र का उपदेश किया था ।

५. महामुनी कपिल के नाम से यहां कपिलतीर्थ है । यहां के एक गोमुख द्वारा इस तीर्थ की जलधारा निकलती है । यह तीर्थ पवित्र माना जाता है । कावनई के कपिलतीर्थ के दक्षिण की ओर असुरों के गुरु शुक्राचार्य का आश्रम था । सहस्त्रावधी वर्ष पूर्व दंडकारण्य को शाप प्राप्त होकर वहां का निसर्ग सुनसान हुआ था । प्रभु श्रीरामचंद्र के वनवास समय में इस दंडकारण्य में उनका  पदस्पर्श हुआ तथा यह निसर्ग पुनः हराभरा हुआ ।

६. रामायण कालावधी में युद्ध करते समय लक्ष्मण शर से चोट पहुंचने के कारण मूच्र्छित हुआ था । उस समय संजीवनी बुटी लाने के लिए निकले श्री हनुमान ने इसी स्थान के एक ऊंच पर्वत पर रहनेवाले काळनेमी असुर की हत्या की थी ।

७. महर्षि दुर्वास ने एक शापित मगर का उद्धार कर उसे पुनश्च गंधर्व रूप प्रदान किया था ।

८. लगभग १ सहस्त्र ८०० वर्ष पूर्व चीन के ह्यु आन त्संग ने भारतभ्रमण करते समय कावनई के कपिलतीर्थ परिसर में स्थित ‘सांख्ययोग गुरुकुल’ में भ्रमण किया था । उस समय प्रभावित होकर इस गुरुकुल की शिक्षा पद्धति का चिनी भाषा में अनुवाद किया गया था ।

९. श्री समर्थ रामदासस्वामी ने इसी कपिलतीर्थ पर तपश्चर्या की थी ।

१०. श्री गजानन महाराज ने भी इस स्थान पर एक गुंफा में १२ वर्ष तपश्चर्या कर दैवी सिद्धी प्राप्त की थी । इसी तीर्थ द्वारा उन्होंने अनेक पीडितों को व्याधीमुक्त किया था ।

११. ऐसे पुण्यभू क्षेत्र में प्राचीन समय से सिंहस्थपर्व कालावधी में कुंभमेले का आयोजन किया जाता है । श्री कपिलमुनी द्वारा यह वरदान प्राप्त हुआ है कि, ‘यहां आनेवाले लोगों को प्राचीन कालावधी के सुखद अनुभव प्राप्त होते हैं । साथ ही आत्मिक सुख की भी प्राप्ति होती है ।’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *