नई दिल्ली : बिना किसी शोर शराबे के कर्नाटक के कारवार में नौसेना का नया स्टेशन आईएनएस वज्रकोष सेना में शामिल हो गया। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने वज्रकोष को स्थापित किया। इस नौसेना बेस का निर्माण भारत सरकार की ओर से १९८५ में शुरू किए गए प्रोजेक्ट “सीबर्ड” यानी समुद्र चिडिया का दूसरे चरण के तहत हुआ है। देश के पश्चिमी तट पर स्थित दोनों बेस को मिलाने से यह भारत समेत पूर्वी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा नौसेना बेस बन गया है।
बेस की खासियत
- २० किलोमीटर है आईएनएस कदंब और वज्रकोष के बीच की दूरी
- ०१ हजार एकड़ में फैला यह बेस पश्चिम तट पर बढ़ाएगा नौसेना की ताकत
- ०६ सौ एकड़ में बना है वज्रकोष
नहीं दिखेगी पनडुब्बी
पनडुब्बी के लिए कारवार भूमिगत बेस बना हुआ है, जिससे समंदर में उतरने से पहले ये दुश्मनों की सैटेलाइट की नजरों से बची रहेंगी। बॉम्बे बेस पर पनडुब्बी खुले में खड़ी रहती हैं, जिससे सैटेलाइट से उनकी स्थिति जानी जा सकती है।
दोगुनी नौसेना ताकत
नौसेना का दावा है कि इससे उनकी ताकत दोगुनी हो जाएगी। यहां विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य और स्वदेशी पोत आईएनएस विक्रांत तैनात होंगे। अभी कारवार में विक्रमादित्य और ३० नौसेना जहाज तैनात मौजूद हैं। पश्चिमी तट पर स्थित दो अन्य बेस बॉम्बे और कोच्चि बंदरगाह पर व्यवसायिक जहाजों का जमावड़ा रहता है। इन हालात में कारवार पश्चिमी तट पर नौसेना का सबसे महत्वपूर्ण बेस बन गया है।
स्त्रोत : पत्रिका