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नासिक के सिंहस्थपर्व में पुलिस की दादागिरी से श्रद्धालु अप्रसन्न !

सिंहस्थपर्व का दूसरा राजयोगी स्नान !

. . . और पुलिस की दादागिरी !

स्नान करने हेतु जानेवाले भाविकोंपर दादागिरी करनेवाली पुलिस

त्र्यंबकेश्‍वर-नासिक : यहां सिंहस्थपर्व के लिए देश-विदेश से आए श्रद्धालुओंको पुलिस के विषय में कटु अनुभव हुआ। कुछ स्थानों पर पुलिस ने श्रद्धालुओंकी सहायता की, परंतु अनेक स्थानोंपर उन्होंने साधु-महंत और श्रद्धालुओंके साथ बुरा व्यवहार किया। इस से आज भी श्रद्धालु पुलिस से अप्रसन्न हैं।

दर्शनार्थियोंको मंदिर से निकालने के लिए पुलिसकर्मी उनसे कह रहे थे कि, दर्शन करने में १० से १२ घंटे लगेंगे। स्थान-स्थान पर श्रद्धालु पुलिस के अशिष्ट आचरण के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। ऐसे लग रहा था कि, सिंहस्थपर्व में पुलिस श्रद्धालुओंपर जादा से जादा दबावतंत्र का प्रयोग कर रही है। (ऐसे पुलिसकर्मिर्योंको हिन्दू टैक्स देकर क्यों पालें ? ऐसे पुलिसकर्मियों के विरुद्ध पुलिस अधीक्षक, पुलिस आयुक्त अथवा सरकार के मेलामंत्री को लिखित परिवाद देना चाहिए। – संपादक)

पुलिस के विषय में श्रद्धालुओंको आये हुए कटु अनुभव !

१. पुलिस में आपसी समन्वय का अभाव और दोषपूर्ण नियोजन !

त्र्यंबकेश्‍वर में – कुशावर्त, लक्ष्मी नारायण चौक, अंबेडकर चौक के पुलिसकर्मी श्रद्धालुओंसे धक्का-मुक्की कर रहे थे। पुलिस का आपस में समन्वय न होने से तथा त्रुटिपूर्ण नियोजन के कारण दूसरे दिन के पर्व स्नानपर महादेव मंदिर के पास श्रद्धालुओंकी प्रचंड भीड हो गयी। इससे भगदड जैसी दुर्घटना हो सकती थी। उस समय मंदिर का द्वार बंद कर दिया गया। भीड होनेपर, तत्काल दर्शन के लिए २०० रुपये लिए जा रहे थे। मंदिर अब बंद हो गया है, यह बताकर, पुलिस ने वहां से श्रद्धालुओंको हटा दिया। वहां की पुलिस उद्घोषणा कर रही थी कि अखाडे के साधु मंदिर की बाहर से प्रदक्षिणा कर तथा श्रद्धालु ‘कलश दर्शन’ कर, यहां से लौट जाएं।

२. पुरुष पुलिसकर्मियोंकी महिला श्रद्धालुओंसे धक्कामुक्की !

स्थान-स्थान पर नियुक्त कुंभव्यवस्था के पुलिसकर्मियोंने श्रद्धालुओंसे धक्कामुक्की की। पुरुष पुलिसकर्मियोंने महिला श्रद्धालुओंके हाथ पकडकर उन्हें बाहर ढकेल दिया। वास्तविक, नियमानुसार महिलाओंको पुरुष पुलिसकर्मी नहीं छू सकते, क्यों कि ऐसा करना अपराध है। अनेक स्थानोंपर महिला पुलिसकर्मियोंकी संख्या अल्प थी। महिलाओंके लिए महिला पुलिस की नियुक्ति करना आवश्यक था, परंतु प्रशासन ने आवश्यकता होनेपर भी ऐसा नहीं किया।

३. ध्वनिप्रदूषण फैलाकर कानून का स्वयं ही उल्लंघन करनेवाली पुलिस !

किसी-किसी स्थान की पुलिस अकारण ही सीटियां बजा रही थी। इस से कुशावर्त और अन्य स्थानोंपर ध्वनिप्रदूषण हो रहा था। इस प्रकार पुलिस ही सरकार के नियम को तोडकर अपराध कर रही थी। जब भी पुलिस की कोई बात सुनकर श्रद्धालु वैसा आचरण करने लगते थे, तब महिला पुलिसकर्मी एक-दूसरे को ताली देकर हंसते थे। इस से पता चलता है कि वे श्रद्धालुओंको मूर्ख बनाने का प्रयास करते थे। एक स्थानपर कुछ श्रद्धालुओंने वहां के पुलिसकर्मियोंको चाय और अल्पाहार (जलपान) लाकर दिया। इस के पश्‍चात पुलिसकर्मियोंने उन श्रद्धालुओंको स्नान करने के लिए दो-तीन बार कुशावर्ततीर्थ में जाने दिया।

पोलीस कर्मचारियों में समन्वय के अभाव से अव्यवस्था !

पुलिस, नामजप करने के लिए श्रद्धालुओंको कुशावर्त में नहीं बैठने दे रही थी। इस से श्रद्धालु क्षुब्ध हो गए थे। सिंहस्थपर्व में लाखों श्रद्धालु आते हैं, इस की पहले से जानकारी पुलिस और प्रशासन को थी। फिर भी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों में तालमेल नहीं था। सिंहस्थपर्व में किन बातोंका पालन होना चाहिए और परिस्थिति को ठीक से कैसे संभालना चाहिए, इस विषय में अनुभवहीन होमगार्ड और राज्य के आरक्षित पुलिस बल के कर्मचारियोंको अधिक संख्या में लगाया गया था। अनुभवहीन और अप्रशिक्षित पुलिसकर्मियोंको परिस्थिति पर नियंत्रण करना नहीं आया। पुलिस अधिकारी भी मेलाव्यवस्था के पुलिस कर्मचारियोंको अलग-अलग आदेश देते थे, इस से वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें और क्या न करें !

एक पवित्र स्थानपर तो, एक पुलिसकर्मी धुम्रपान कर रहा था !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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