नई दिल्ली के दिल में मुख्य मार्ग के तौर पर औरंगजेब रोड का नया नामकरण करते समय संभवत: यही सोचा गया था हाल के वर्षों में लोगों के सर्वाधिक प्रिय, सम्मानित और डॉ. कलाम के नाम पर इस सड़क का नाम नाम रखे जाने से सर्वत्र इसकी प्रशंसा होगी, लेकिन दु:खद है कि ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक वर्ग के कुछ धड़ों, जिसमें संविधान के मूलभूत मूल्यों की दुहाई देनेवालोंने इसका विरोध किया है ।
औरंगजेब रोड का नाम बदलने का विरोध करने वाले तर्क देते हैं कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए और यह इतिहास को विकृत करने का प्रयास है।
आजादी के वक्त से ही भारत के लोग देशभर में सड़कों के नाम बदलते रहे हैं। वस्तुत: इस तरह के परिवर्तन फैशन माने जाते रहे हैं, नतीजतन नई दिल्ली की कई गलियों-सड़कों के नाम बदले गए हैं और अधिकांशत: वे एक राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के प्रतीक पुरुषों के नाम पर रखे गए हैं।
औरंगजेब द्वारा अपनी हिंदू जनता पर किए गए अत्याचार और हिंसा को कोई कैसे भूल सकता है? उदाहरण के लिए ९ अप्रैल, १६६९ को उसने अपने हाकिमों को स्कूलों और हिंदुओं के मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था, जिसकी वजह से बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में कृष्ण मंदिर और सोमनाथ मंदिर क्षतिग्रस्त कर दिए गए। मथुरा में मंदिर को तहस-नहस करने के बाद उसने उस जगह पर एक उत्कृष्ट मस्जिद का निर्माण किया। २ अप्रैल, १६७९ को उसने जजिया कर लगा दिया। यह एक तरह का टैक्स था जो हिंदुओं को अपने धर्म का पालन करते रहने के लिए देना पड़ता था।
औरंगजेब ने सिख गुरुद्वारों को ध्वस्त करने का आदेश दिया, गुरु तेग बहादुर को कैद कर लिया और कई दिनों तक यातनाएं देने के बाद उनकी हत्या कर दी, क्योंकि उन्होंने इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह के समय में उसने सिखों पर क्रूरता जारी रखी और उनके चार बेटों की हत्या कर दी। यह इतिहास पर निर्भीक रुख रखने वाले भारत के कुछ बड़े इतिहासकारों – जदुनाथ सरकार और आरसी मजूमदार के महत्वपूर्ण कामों में से औरंगजेब के जीवन और अपराधों की एक झलक भर है। हमारे औपनिवेशिक इतिहास को रोजाना याद दिलाने से दूर रखने के लिए ब्रिटिश सम्राटों और सूबेदारों के नाम हमारी सड़कों से हटाए गए। यह काम हमारे दिल-दिमाग में इस विचार को बैठाने के लिए भी था कि भारत अब आजाद है। इसी तरह औरंगजेब जैसे लोगों के नाम वाली सड़कों के नामकरण धार्मिक कट्टरता हटाने और पंथनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र के विचार को डालने के लिए बदले जाने चाहिए।
इसलिए सवाल यह नहीं है कि क्यों औरंगजेब रोड का नाम अब डॉ. कलाम के नाम पर रखा गया है। हमें यह जरूर पूछना चाहिए कि भारत सरकार ने इतने वर्षों तक क्यों औरंगजेब को प्रतिष्ठित रखा और इस भयानक विचार के पीछे कौन था ? दरअसल नया नामकरण देश को मध्यकालीन असभ्यता के प्रभाव से निकालकर उन पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और आधुनिक विचारों की ओर ले जाने वाला कदम है जिनके लिए डॉ. कलाम जाने जाते थे। लेकिन इन वर्षों में जिन्होंने भारत को चलाया और भारत के इतिहास में सबसे नृशंस व्यक्तियों में से एक के महिमामंडन की अनुमति दी, वे अब भी औरंगजेब के लिए मत देते लगते हैं।
स्त्रोत : नई दुनिया