Menu Close

देश के सबसे गरीब जिले नहीं है मुस्लिम बहुल

स्वयं को गरीब माननेवाले अल्पसंख्यकों काे मिलनेवाली सुविधाएं सरकाने अब बन्द करनी चाहिए – सम्पादक, हिन्दूजागृति

नई दिल्ली – तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली पार्टियां भले ही मुस्लिम बहुल इलाकों को सबसे ज्यादा वंचित बताएं लेकिन हकीकत यह है कि देश के सबसे निर्धन २० जिलों में एक भी मुस्लिम बहुल नहीं है। देश के सर्वाधिक गरीब जिले आदिवासी बहुल हैं। ये जिले ऐसे हैं जहां आधे से अधिक परिवारों के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है। यह खुलासा जनगणना-२०११ के धार्मिक आंकड़ों के विश्लेषण से हुआ है। सरकार ने हाल ही में ये आंकड़े जारी किए हैं।

जनगणना-२०११ के अनुसार देश के ६४० में से २० जिले ऐसे हैं, जहां ५० फीसद से अधिक परिवारों के पास कुछ भी संपत्ति नहीं है। कहने का मतलब कि उनके पास रेडियो या ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, कंप्यूटर या लैपटॉप, साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोपेड, कार, जीप, वैन, मोबाइल और टेलीफोन जैसी कोई चीज नहीं है। साथ ही वे कच्चे मकान या घासफूस की झोपड़ी में रहते हैं। पीने के शुद्ध पानी की सुविधा भी नहीं है।

कुल मिलाकर २० निर्धन जिलों में १.५३ करोड़ आबादी है, जिनमें से ८३.२३ फीसद हिंदू हैं, जबकि मुस्लिम मात्र ४.४५ फीसद हैं। उल्लेखनीय है कि देश की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी १४.२३ फीसद है। हालांकि निर्धन जिलों में ईसाइयों की आबादी ९.३२ प्रतिशत है। इसकी वजह है कि नगालैंड के मोन, लोंगलेंग, त्यूनसांग और किपरे, मेघायल का वेस्ट खासी हिल्स और अरुणाचल प्रदेश के ईस्ट कामेंट और कुरुंग कुमेय जिले ईसाई बहुल हैं।

“डिस्ट्रिक्ट लेवल डिप्राइवेशन इन न्यू मिलेनियम” के सह लेखक और अर्थशास्त्री लवीश भंडारी का कहना है कि इसमें कोई दोराय नहीं कि देश के सबसे गरीब इलाके आदिवासी बहुल हैं। इसके बाद अनुसूचित जातियों और फिर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों का नंबर आता है।

आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं। इसलिए विकास कार्यक्रमों के केंद्र में आदिवासी होने चाहिए।

स्त्रोत : नर्इ दुनिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *