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पुणे : एम्आयटी के ‘सर्वधर्मतीर्थ’ डालने के अभियान को साधु-संतों के साथ शंकराचार्य का भी विरोध

सर्वधर्मोंका तीर्थ एकत्रित कर वह मंदिर में अथवा कुशावर्त में डालना, यह सनातन हिन्दू धर्म के विरुद्ध है। यह एक प्रकार का पाखंडीपन है। ‘ऐसा’ तीर्थ केवल मंदिर में ही डाला जाता है; किंतु किसी मस्जिद अथवा चर्च में डालने के लिए अनुमति नहीं है – श्री महंत नरेंद्रगिरीजी महाराज

श्री महंत नरेंद्रगिरीजी महाराज

त्र्यंबकेश्वर-नासिक (महाराष्ट्र) : अखिल भारतीय अखाडा परिषद के अध्यक्ष श्री महंत नरेंद्रगिरीजी महाराजद्वारा यह मांग की गई कि, ‘सर्व स्थानोंका तीर्थ विशेषरूप से एकत्रित कर वह मंदिर में फेंकने की कोई भी कृती हिन्दू धर्म में नहीं बताई गई है। यह कृती करना अनुचित बात है।’

अतः शासन को विख्यात श्री काळाराम मंदिर, पवित्र रामकुंड तथा त्र्यंबकेश्वर के पवित्र कुशावर्त में फेंके जानेवाले सर्वधर्मतीर्थ पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

पुणे के एम.आय.टी. इस शिक्षण संस्थाद्वारा सर्वधर्मतीर्थ एकत्रित कर वह २५ सितम्बर २०१५ को यहां के विख्यात श्री काळाराम मंदिर, साथ ही कुशावर्त में डाला जाएगा।

इस संदर्भ में श्री महंत नरेंद्रगिरीजी महाराज ने अपना मत व्यक्त किया।

उन्होंने आगे बताया कि, सर्वधर्मोंका तीर्थ एकत्रित कर वह मंदिर में अथवा कुशावर्त में डालना, यह सनातन हिन्दू धर्म के विरुद्ध है। यह एक प्रकार का पाखंडीपन है। ‘ऐसा’ तीर्थ केवल मंदिर में ही डाला जाता है; किंतु किसी मस्जिद अथवा चर्च में डालने के लिए अनुमति नहीं है। सभी सर्वधर्म का आदर करते हैं; किंतु यह बात अनुचित है कि, कुछ लोगोंद्वारा हम सर्वधर्मसमभाव के हैं; यह प्रदर्शित करने का दीन प्रयास किया जाता है।

अखाडा परिषद के माध्यम से ऐसी बातोंपर प्रतिबंध लगाना हमारा कर्तव्य है; इस लिए हम शासन की ओर यह मांग कर रहे हैं कि, यह तीर्थ श्री काळाराम मंदिर, रामकुंड अथवा कुशावर्त में डालने के लिए प्रतिबंध लगाएं।

म्लेंच्छ स्पर्शित तीर्थ से गंगा दूषित होती है; इस लिए वह गंगा में भी एकत्रित न करें ! – जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

सर्वधर्मतीर्थ के संदर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय एक श्लोक का प्रमाण देते हुए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बताया कि, ‘गंगा नदी सर्व पावनी है। म्लेच्छों के स्पर्श से दूषित होती है; अतः सर्वधर्मतीर्थ कुशावर्त में डालने से गंगा (अर्थात् गोदावरी) दूषित हो सकती है; इस लिए वह गंगा नदी में नहीं डालें। इस बात के लिए हमारा विरोध है।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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