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सेक्युलर बांग्लादेश में सांप्रदायिकता की आंधी ?

बांग्लादेश में नास्तिक ब्लॉगरों की हाल में हुई हत्याओं ने देश में अभिव्यक्ति की आजादी और सेक्युलर विचारों की सिकुडती जगह को लेकर चिंता बढा दी है।

ऐसा लगता है कि बांग्लादेश एक खतरनाक रास्ते की ओर बढ रहा है।

परंपरागत रूप से सामाजिक शांति वाले इस देश में हाल ही में शिया मुस्लिमों पर हमलों और ईसाई पादरी को मिली मौत की धमकी से जातीय आतंक का डर पैदा हो गया है।

पिछले गुरुवार को देश के उत्तरी हिस्से में बोगरा में एक शिया मस्जिद पर हमला हुआ, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि कई घायल हो गए।

हालांकि हाल के सालों में जिस पैमाने पर इराक़ और पाकिस्तान में शियाओं का कत्लेआम हुआ, उसके मुक़ाबले यह मामूली ही है।

लेकिन इसने पूरे बांग्लादेश में एक डर पैदा कर दिया है।

ऐसा पहली बार हुआ है कि बांग्लादेश में एक मस्जिद में हत्यारे घुसे और लोगों को गोली मार दी।

बंग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड सिक्योरिटी स्टडीज के अध्यक्ष और रिटायर्ड जनरल एएमएम मुनिरुज्जमां कहते हैं, “हमने अपने पूरे इतिहास में ऐसा कभी नहीं देखा।”

इससे कुछ दिन पहले ही ढाका में हुसैनी दलान में एक शिया जुलूस पर बम हमला हुआ था, जिसमें दो लोग मारे गए थे।

इस दरगाह पर ४०० साल से कार्यक्रम होता आ रहा है लेकिन कभी ऐसी घटना नहीं घटी थी।

सालों से बांग्लादेश खुद को इस क़िस्म के सांप्रदायिक भेदभाव से बचाता रहा है।

यहां सुन्नी बहुल समाज और शिया आबादी में झगडे कम ही देखने को मिलते थे।

बच्चे शिया गीतों को अपना मानकर गाते हुए बडे हुए।

शियाओं के आशुरा कार्यक्रम में बडी संख्या में सुन्नी भी भाग लेते रहे हैं।

बोगरा के ग्रामीण शिया मस्जिद के डायरेक्टर अबू जफर कहते हैं, “हम इस इलाक़े में पीढियों से मिलजुल कर रहते आए हैं।”

वो कहते हैं कि होस्नी दलान हमले के बाद वो कुछ सावधान हुए, लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा था कि कोई नमाज पढते लोगों को मस्जिद के अंदर घुस कर मार डालेगा।

देश के ईसाई समुदाय के खिलाफ भी अंदर अंदर नफरत फैलाने वाला अभियान शुरू हो चुका है।

कई धर्मगुरुओं को मैसेज भेजकर जान से मारने की धमकी दी गई।

बीते बुधवार को बोगरा से 100 किलोमीटर दूर रंगपुर में बैप्टिस्ट चर्च के पादरी को धमकी भरा खत मिला।

बार्नाबास हेमरम को मिले खत में लिखा था, “जो लोग ईसाई धर्म का प्रचार करते हैं उन्हें हम एक एक कर मार देंगे। तभी बांग्लादेश की सरकार को देश में मुस्लिमों की मौजूदगी का अहसास होगा।”

हेमरम ने बीबीसी को बताया कि ये खत भेजा तो उन्हें गया था लेकिन इसमें १० अन्य पादरियों के नाम भी लिखे थे।

सुरक्षा विशेषज्ञ अलग धर्म या संप्रदाय से आने वाले आम लोगों को निशाना बनाए जाने का एक ढर्रा देख रहे हैं।

जनरल मुनिरुज्जमां कहते हैं, “शियाओं और ईसाइयों पर हमला बताता है कि देश में धार्मिक और सांप्रदायिक दरार पैदा करने की कोशिश हो रही है।”

इस ढर्रे में इस्लामिक स्टेट का टैग भी लगा है, जिसने शियाओं पर हमले और दो विदेशी नागरिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली है।

इस चरमपंथी संगठन की पत्रिका के हालिया अंक में इन हमलों को ‘बंगाल में जिहाद शुरू होना’ बताया गया है। इसमें अपने समर्थकों को बांग्लादेश में विदेशियों, शियाओं और ईसाइयों पर हमले करने को कहा गया है।

पत्रिका में दावा किया गया है कि बांग्लादेश में विभिन्न इस्लामिक संगठनों ने अपनी तकरार छोड कर अबू बकर अल बग़दादी के नेतृत्व के तले आने का फैसला किया है।

इन घटनाओं से बांग्लादेशी सरकार भी सकते में है। २०१३ से ब्लॉगरों की हत्याएं करने वाले चरमपंथी नेटवर्क को खत्म किया जा सकता है और हत्यारों को सजा दिलाई जा सकती है। एक दर्जन से अधिक संदिग्ध पहले से ही हिरासत में हैं।

लेकिन अगर सांप्रदायिकता को बढने की इजाजत दी जाती है तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।

प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार देश में आईएस की मौजूदगी से लगातार इनकार कर रही है और जिहादी ग्रुपों के सिर पर ठीकरा फोडना पसंद कर रही है, जैसे जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी)।

इस सदी के शुरुआत में वामपंथियों को पीट पीट कर मार डालने और जजों की हत्याएं कर जेएमबी काफी सुर्खियां बटोर चुका है।

सालों पहले देश के ६४ जिलों में लगभग एक साथ बम हमले कर ये संगठन देश को सकते में डाल चुका है।

इसके दो शीर्ष नेता गिरफ्तार किए गए थे और २००८ में उन्हें फांसी दी गई।

अधिकांश जेएमबी चरमपंथियों पर बांग्लादेश की सबसे बडी इस्लामिक पार्टी जमात ए इस्लाम से जुडे होने के आरोप के कारण सरकार भी मानती है कि ये सभी हमले उन्हीं के हैं, जिन्हें अलग अलग नामों से अंजाम दिए गए ताकि बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाई जा सके।

जमात के लगभग सभी शीर्ष नेताओं को १९७१ की आजादी की लडाई में इंसानियत के खिलाफ अपराध करने के लिए मौत की सजा सुनाई दी जा चुकी है, जिसमें तीन को तो फांसी पर लटकाया भी जा चुका है।

सालों तक तो उन्होंने हिंसक और खूनी विरोध प्रदर्शन कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी की।

लेकिन वो सफल नहीं हो पाए और उनके काफी लोग पुलिस झडप में मारे गए।

लेकिन सरकार को इस विरोध पर जीत हासिल करना बाकी है। जमात ए इस्लाम विपक्षी गठबंधन की मुख्य पार्टी है। सरकार इस गठबंधन को तोडने की पूरी कोशिश कर रही है।

परिणास्वरूप आईएस की मौजूदगी को नकारना और हत्याओं जमात से जोडने की कोशिशों को संदेह की नजर से देखा जा रहा है।

हालांकि शियाओं और ईसाइयों के खिलाफ हिंसक वारदातों से हो सकता है कि सरकार आईएस की मौजूदगी के दावे को अधिक गंभीरता से ले।

विश्लेषकों का मानना है कि अल्पसंख्यक समुदायों और देश के सेक्युलर चरित्र को बचाने के लिए सरकार को चरमपंथी ताक़तों पर हमला बोलना होगा।

स्त्रोत : बीबीसी

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