नर्इ देहली – संजय लीला भन्साली निर्देशित आगामी चलचित्र ‘बाजीराव मस्तानी’ के प्रदर्शित हुए ट्रेलर, टीजर तथा ‘पिंगा पिंगा’ गाने में इतिहास को विकृत कर प्रस्तुत किया गया है । उक्त गाने में बाजीराव की पत्नी काशीबाई तथा मस्तानी को एकत्रित नृत्य करते हुए दिखाया गया है । वास्तव में पेशवा काल में कुलीन महिलाओं की परंपरा थी । स्त्रियां इस प्रकार अंगविक्षेप कर नहीं नाचती थीं । तत्कालीन राजघराने की स्त्री राजमाता जिजाऊ, रानी लक्ष्मीबाई, ताराबाई, रानी चेन्नम्मा इत्यादि की परंपराआें की थीं । उनके हाथों की तलवारों ने पराक्रम किया है तथा शत्रु को नाच नचाया है । वर्तमान में बॉलीवुड में स्वयं की कन्याओं को नचानेवाले तथा पराए पुरुष का चुंबन लेने हेतु बाध्य करने की परंपरावाले भंसाली द्वारा राजपरंपराओं का अध्ययन किया दिखाई नहीं देता । अधूरी जानकारी से इतिहास में हेरफेर कर भंसाली उसे सिने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम न दें । यह कृत्य स्वयं का गल्ला भरने के लिए मराठों की आदर्श कुटुंब व्यवस्था पर किया गया आघात है । इस चलचित्र के विरोध में हिन्दू जनजागृति समिति ने केंद्रीय चलचित्र परीनिरीक्षण मंडल तथा केंद्रशासन के सांस्कृतिक मंत्रालय में शिकायत की है तथा विकृत इतिहास न हटाने पर ‘बाजीराव–मस्तानी’ चलचित्र पर प्रतिबंध लगाने एवं तेलंगाना शासन द्वारा क्रिसमस के अवसर पर १९५ ईसाई चर्चों के साथ मनाया जानेवाला कार्यक्रम तथा दो लाख ईसाइयों को कपडे वितरित करने का कार्यक्रम निरस्त करने की मांग को लेकर १३ दिसंबर, २०१५ को सुबह ११ से १ बजे जंतर मंतर, दिल्ली में राष्ट्रीय हिन्दू आंदोलन किया गया, जिसमें हिंदु जनजागृति समिति, वैदिक उपासना पीठ और सनातन संस्था के कार्यकर्ता सम्मिलित हुए ।
एक ओर यह कहा जाता है कि भारत का शासन धर्मनिरपेक्ष है; परंतु दुसरी ओर ईसाई त्यौहार शासकीय स्तर पर मनाया जाना संविधान के किन नियमों में आता है । इसके साथ ही शासन एक ओर हिन्दुओं की गोदावरी पुष्कर यात्रा के टिकट के मूल्य में वृद्धि करता है, टिकट पर कर लगाता है और दूसरी ओर ईसाइयों के त्यौहार शासकीय अनुदान देकर मनाया जाना क्या यह दोगलापन नहीं है ? इससे पूर्व शासकीय व्यय से मुसलमानों को २६ करोड रुपयों की भेंट देने की घोषणा की गई थी । एक ही देश में रहनेवाले; परंतु अलग अलग धर्म के लोगों को अलग अलग न्याय क्यों ? इसलिए तेलंगाना शासन का यह निर्णय निरस्त किया जाए तथा धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के लिए जनता की निधि का प्रयोग करने हेतु प्रतिबंध लगाया जाए, यह मांग भी इस अवसर पर की गई ।
मान्यवरों के विचार
१. श्री अभय वर्तक, सनातन संस्था – तेलंगाना सरकार के ईसाईयों को वस्त्र बाँटने के निर्णय का कडा विरोध करते हुए उन्होंने कहा – इसाई तो लुटेरे अंग्रेजों के वंशज थे , जिन्होंने हमारे देश का खज़ाना लूटा था । और आज तेलंगाना सरकार उन्हें ही कपडे बांट रही है । ये इस देश के प्रति गद्दारी है, जिसका हम निषेध करते हैं ।
बाजीराव – मस्तानी फिल्म हिन्दुओं की भावना की प्रतारणा करती है और हिन्दू ही ये चुपचाप देखते हैं । हमारे लिए ये शर्मनाक है । हिन्दुओं की सहिष्णुता का, शांतिदूत होने का ही हम आज ये परिणाम देख रहे हैं ।
२. श्री विनय पानवलकर, हिन्दू जनजागृति समिति – हिन्दू धर्मं की पताका पूरे विश्व में फहराने वाले बाजीराव पेशवा का इतिहास आज की युवा पीढ़ी को प्रोत्साहन देता है । पर बाजीराव मस्तानी फिल्म में उनका और काशीबाई का चित्रांकन किया गया है – वह बहुत ही शर्मनाक है। इसका हर हिन्दू को विरोध करना चाहिए।
तेलंगाना सरकार के इसैओं को कपडे वितरण करने के निर्णय के विरोध में उन्होंने कहा की यदि ये मीडिया और सरकार बार बार ये कहती है की भारत एक सेक्युलर देश है तो हिन्दुओं और ईसाईयों के साथ अलग अलग बर्ताव क्यों किया जाता है ? दिवाली पर गरीब हिन्दुओं को तो वस्त्र नहीं बांटे गए। तो फिर क्रिसमस पर ईसाईयों को क्यों ये वस्त्र बांटे जा रहे हैं ?