हिन्दू संस्कृति के अनुसार वस्त्र परिधान करें !
हम फैशन और परिवर्तन के नामपर हमारी संस्कृति के सात्त्विक वस्त्र पहनना भूल गए है । इसलिए आइए, हम प्रतिदिन हमारे संस्कृति के अनुसार सात्त्विक वेशभूषा करने का निश्चय करें । Read more »
हम फैशन और परिवर्तन के नामपर हमारी संस्कृति के सात्त्विक वस्त्र पहनना भूल गए है । इसलिए आइए, हम प्रतिदिन हमारे संस्कृति के अनुसार सात्त्विक वेशभूषा करने का निश्चय करें । Read more »
प्रतिज्ञाओं को आचरण में लाने से बच्चों में राष्ट्राभिमान उत्पन्न होकर उनका राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु सिद्ध होना | Read more »
बच्चो, ‘हैरी पॉटर’ एक काल्पनिक कथा है जिसका वास्तविकतासे कोई संबंध नहीं है । क्या यह काल्पनिक कथा कभी भी वास्तविक बन पाएगी ? ऐसेमें जो असत्य है (उदा. हैरी पॉटर, टार्जन, अरेबियन नाईटस् आदि कथाएं) उन्हें पढनेमें समय व्यर्थ क्यों गंवाएं ? विदेशी संस्कृतिके साहित्यमें डूबकर हिंदु संस्कृतिकी अनमोल धरोहरको क्यों भुलाएं ? Read more »
बच्चो, परिवार का एक सदस्य होने के नाते आप छोटे-मोटे कार्य करते हैं । उसी प्रकार आप जिस देश में रहते हैं, उस देश के प्रति भी आपके कुछ कर्तव्य होते हैं । इन कर्तव्यों को पूर्ण करना हो तो (साकार करना हो तो), सर्वप्रथम राष्ट्राभिमान जागृत करना चाहिएं । Read more »
आज हमारे भारत देश में हो रहे अनुचित प्रकार एवं घटनाआे का हमें अंतर्मुख होकर विचार करने की आवश्यकता है । इसी विषय को लेकर प्रस्तुत यह लेख… Read more »
अगस्त माह के प्रथम रविवार को युवा वर्गद्वारा ‘फ्रेंडशिप डे’ मनाया जाता है । क्या वास्तव में कोई एक बैंड बांधकर मैत्री में वृद्धि होती है ? Read more »
हमारी भारतीय संस्कृति में, ‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । आचार्यदेवो भव ।’, अर्थात माता, पिता एवं गुरु को देवता समान माना गया है । इसमें भी मां को प्रथम स्थानपर रखा गया है । आर्इए प्रस्तुत लेख से मां की महत्ता देखेंगे । Read more »
शिवजयंती मनाना, अर्थात केवल शौर्यगीत बजाना अथवा किसी गाने का कार्यक्रम करना यहीं तक मर्यादित है क्या ? खरे अर्थों में शिवजयंती मनाना, अर्थात शिवाजी महाराज के गुण आत्मसात करने का निश्चय करना है । Read more »
अपने शरीर तथा मन को स्वस्थ रखना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है ।इस हेतु आयुर्वेद प्राचीन कालसे उपयोग में लाया हुआ परिणामकारा माध्यम है ।
Read more »
संग्रह करने से मनुष्य संकीर्ण वृत्तिका हो जाता है और त्याग करने से वृत्ति उदार बनती है । इसलिए ‘त्याग में ही खरा आनंद है’, यह ध्यान में रखें! Read more »