सत्संग का महत्त्व !
एक बार देवर्षि नारदजी वैकुंठलोक में भगवान श्री विष्णुजी के दर्शन करने के लिए पहुंचे । वहां उन्होंने भगवान को भावपूर्ण नमस्कार किया और बोले, ‘हे प्रभो, कृपया मुझे सत्संग का महत्त्व बताइए । Read more »
एक बार देवर्षि नारदजी वैकुंठलोक में भगवान श्री विष्णुजी के दर्शन करने के लिए पहुंचे । वहां उन्होंने भगवान को भावपूर्ण नमस्कार किया और बोले, ‘हे प्रभो, कृपया मुझे सत्संग का महत्त्व बताइए । Read more »
एक गांव में एक निर्धन व्यक्ति रहता था । वह अपनी निर्धनता से ग्रस्त होकर बहुत दु:खी रहता था । उसने संत कबीरदासजी का बहुत नाम सुना था । उस व्यक्ति को लगा कि, संत कबीरजी के मार्गदर्शन से उसके दु:ख दूर हो जाएंगे । वह अपना दु:ख उन्हें बताने के लिए उनके पास गया । Read more »
आदि शंकराचार्यजी जिस गंगातट पर जाते थे, उसके दूसरे किनारे पर एक तेजस्वी युवक था। उसके मन में शंकराचार्यजी के प्रति आदर निर्माण हुआ तथा उसने वहीं से उन्हें प्रणाम किया । श्रीमत् आदि शंकराचार्यजी ने भी उसका प्रणाम स्वीकार किया और उसे अपने हाथ से संकेत कर अपने पास बुलाया । इस कथा में देखते है, उस युवक ने गुरु-आज्ञापालन कैसे किया। Read more »
वाल्मीकि ऋषि का नाम रत्नाकर था । रत्नाकर ऋषि बनने से पहले एक बहुत क्रूर डाकू था, वह घने जंगल में छुपकर बैठता था । जंगल से आने-जानेवाले राहगीरों को रोककर उनकी धन-संपत्ति लूट लेता था तथा उन्हें मार डालता था और उस संपत्ति से अपनी पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण करता था । रत्नाकर को लोग वाल्या डाकू के नाम से जानते थे । Read more »
गुरु नानकजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर एक चबूतरा (चौरा) बनाने के लिए कहा । शिष्य ने गुरु की आज्ञा से चबूतरा बना दिया । गुरु नानकजी ने उस चबूतरे को देखा और अपने शिष्य को उस चबूतरे को तोडने की आज्ञा दी । इस प्रकार गुरु नानकजी अपने शिष्य से बार-बार चबूतरा बनाने को कहते और बार-बार तुडवा देते थे । Read more »
गुरु गोविंदसिंहजी मुगलों के साथ आजादी की लडाई लड रहे थे । जब युद्ध चल रहा था, तो ये दोनों लडके अपने पितासे बिछड गए । उस समय जोरावरसिंह केवल ८ वर्ष और फतेहसिंह केवल ५ वर्ष के थे । पिता से बिछडने पर इन्हें दुष्ट औरंगजेब के दुष्ट सूबेदार वजीरखान ने पकड लिया और बन्दी बना लिया । Read more »
एक भिक्षुक बहुत गरीब था । वह दिनभर बहुत नामजप करता था । भगवान उसके द्वारा किए गए नामजप से प्रसन्न हो गए । एक दिन उसके सामने प्रकट हो गए और भगवान उस भिक्षुक से बोले, ‘मैं तुम्हारे द्वारा किए जानेवाले नामजप से बहुत प्रसन्न हूं । तुम्हें जो चाहिए, वह मांग लो ।’ भिक्षुक को लालच आ गया और उसने सोने की मुद्राएं मांग लीं । Read more »
राजा प्रतिदिन भगवान शिव के लिए सोने की थाली में भोग चढाता था । वह ईश्वर के लिए दानधर्म करता था । उसी मंदिर में एक पुजारी रहता था । वह पुजारी भी अत्यंत श्रद्धा और भक्ति-भाव से भगवान शिवजी की पूजा एवं सेवा करता था । इस कथा से देखते है की भगवान का खरा भक्त कौन था । Read more »
गुरु द्रोणाचार्यजी कौरवों एवं पाण्डवों को धनुर्विद्या अर्थात धनुष्य बाण चलाने की विद्या सिखा रहे थे । इस विद्या में उनके शिष्य धीरे-धीरे पारंगत अर्थात निपुण हो रहे थे, तब गुरु द्रोणाचार्य के मन में विचार आया कि मेरी शिक्षा को इन्होने कितना ग्रहण किया है ये जानने के लिए क्यों न इन कौरव और पांडवों की परीक्षा ली जाए । Read more »
गोपाल के पांच बेटे थे; परंतु वे प्रतिदिन आपस में झगडते रहते थे । अपने बेटों को रोज इस प्रकार झगडते देखकर गोपाल बहुत दु:खी रहता था । उसने अपने बेटों को बहुत समझाया; किन्तु उसका कुछ भी समझाना व्यर्थ हो जाता था । गोपाल समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे ? एक दिन उसे एक तरकीब सूझी । Read more »