राष्‍ट्र के धन का मितव्‍ययता से उपयोग करनेवाले आचार्य चाणक्‍य !

कहते हैं कि आचार्य चाणक्य के पास एक चीनी यात्री आया था । वह जिस समय मिलने आया था, उस समय चाणक्य ( विष्णुगुप्त, कौटिल्य) कुछ लिख रहे थे । Read more »

गंगास्नान से पावन होने के लिए तीर्थयात्रियों में खरा भाव आवश्यक !

काशी में एक बडे तपस्वी शान्ताश्रम स्वामी का ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज से निम्नांकित सम्भाषण प्रस्तुत कथा से हम देखेंगे | Read more »

गुरुकृपा प्राप्त करने के लिए स्वभावदोष-निर्मूलन का अनिवार्य होना !

‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अष्टांगसाधना का महत्त्वपूर्ण अंग है । इन स्वभाव दोषों के त्याग के बिना साधक के लिए गुरुकृपा तक पहुंचना असंभव है । साधना में स्वभावदोष-निर्मूलन का महत्त्व निम्नलिखित कथा से ध्यान में आता है । Read more »

समर्पण

एक साधु द्वार-द्वार घूमकर भिक्षा मांग रहा था । वृद्ध तथा दुर्बल उस साधु को ठीक से नहीं दिखाई देता था । वह एक मन्दिर के सामने खडा होकर भिक्षा मांगने लगा । Read more »

संत सखू

संत सखू का ईश्वर के प्रति जो अपार भक्तिभाव था और उनसे मिलने की जो तीव्र लगन थी यह देखकर स्वयं ईश्वर ही उससे मिलने आए । उसके मुख में सदैव श्रीविठ्ठल का ही नाम रहता था । Read more »

सन्त ज्ञानेश्वर आैर चांगदेव महाराज

चांगदेव महाराज सिद्धि के बलपर १४०० वर्ष जीए थे । चांगदेव को उनके सिद्धि का गर्व था । यह गर्व सन्त ज्ञानेश्वर महाराजजी ने कैंसे दूर किया, इस कथा से देखेंगे । Read more »

व्यवहार में रहकर भी रखना चाहिए अनुसंधान ईश्वर से !

हम व्यवहार में कार्य करते समय इसका अभिनय हमें उत्तम रूप से निभाना चाहिए । परंतु वे भावनाओं को भीतर मन के भीतर ईश्वर से अनुसंधान रखना चाहिए और बाहर प्रपंच का अपना कर्तव्य निभाना चाहिए । प्रस्तुत कथा से यह हम देखेंगे । Read more »