श्रेष्ठ ईश्वरभक्ति

एक बार देवर्षि नारदमुनि को अपनी भक्तिपर बडा गर्व हुआ । उन्हें लगा, हम सदैव ‘नारायण नारायण’का जाप करते रहते हैं, इसलिए हमारी बराबरी में भगवानजी का खरा एवं प्रिय भक्त इस त्रिखंड में कोई नहीं है । अंतर्ज्ञान से भगवान श्री विष्णु इस भ्रम को समझ गए । Read more »

भगवान के अतिरिक्त अपना कोई नहीं ! (द्रौपदी वस्त्रहरण)

द्युत में (जुए में) हारने के पश्चात दुर्योधन ने द्रौपदी को राज्यसभा में लाने का आदेश दिया । अत: दुःशासन उसे घसीटता हुआ राज्यसभा में लेकर आया । ऐसा न करने हेतु द्रौपदी निरंतर विनती कर रही थी; किंतु उनपर उसका कुछ भी परिणाम नहीं हुआ । Read more »

संत ज्ञानेश्वरजी : भागवत धर्म की स्थापना !

निवृत्ति, ज्ञानेश्वर, सोपान एवं मुक्ताबाई पैठण (महाराष्ट्र)के आपेगांव में रहनेवाले कुलकर्णीजी की संतानें थी । चारों बच्चे भगवानजी के परमभक्त थे । उनके पिता ने संन्यास की दीक्षा ली थी । परंतु अपने गुरु की आज्ञा से उन्होंने पुन: गृहस्थाश्रम में आगमन किया । Read more »

गोवर्धन पर्वत

भगवान श्रीकृष्ण को सब जानते हैं ना ? वे गोकुल में रहते थे । वहां गोवर्धन नाम का एक बडा पर्वत था । गोकुल में श्रीकृष्ण के साथ सारे गोप-गोपी आनंद से रहते थे । हर वर्ष अच्छी बारिश हो, इस हेतु वे इंद्रभगवान की पूजा करते थे । Read more »

भक्त प्रल्हाद

बच्चो, प्रल्हाद की नामसाधना से भगवान नारायण ने प्रत्येक समय प्रल्हाद की सुरक्षा की । यदि हम भी नामस्मरण करें तो आपातकाल में प्रभु हमारी रक्षा करेंगे ! यह इस कथा से हम देखेंगे । Read more »

गणपति काे ‘चिंतामणि’ नाम कैसे मिला ?

बच्चो, गणपति ज्ञान के देवता हैं । ये हमारे बुदि्धदाता हैं । इन्हें सारे विघ्न दूर करनेवाले भगवान अर्थात `विघ्नहर्ता ‘ भी कहते हैं । आज देखते हैं, उनके दूसरे अनेक नामों में ‘चिंतामणि’ नाम उन्हें कैसे मिला । Read more »

सत्सेवा का महत्त्व !

सेवा का अर्थ है, भगवान को जो अच्छा लगे वह काम करना; भगवान के कार्य में सम्मिलित होना, यही भगवान की सेवा है । यदि हम काम में मां का हाथ बटाएं, तो मां को अच्छा लगेगा या नहीं ? तब मां हमें मिठाई देगी तथा हमें प्यार करेगी । उसी प्रकार हमने भगवान की सेवा की, तो भगवान भी हमें प्यार करेंगे । Read more »

लोकमान्य तिलक !

‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है तथा मैं वह अवश्य प्राप्त करूंगा’ इस सुपरिचित वाक्य के कारण हम उन्हें ‘लोकमान्य ‘के नाम से जानते हैं; परंतु तिलकजी की वृत्ति बाल्यावस्था से ही निर्भयी एवं तेजस्वी किस प्रकार थी, यह हम इस कथा से समझ लेते हैं । Read more »

संत मच्छिंद्रनाथजी का जन्म

एक बार शिवजी क्रोधवश कैलाश पर्वत एवं गौरी को छोडकर एक घनघोर जंगल में आकर रहने लगे तथा वहीं समाधिस्थ हो गए । गौरी ने बहुत ढूंढा; परंतु शिवजी नहीं मिले । अचानक नारदमुनि वहां आए । Read more »