ज्ञानेश्वरी की विशेषताएं

‘ज्ञानेश्वरी’ ग्रंथ महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर ने बारहवीं शताब्दी में लिखा । शक १२१२(इ.स.१२९०)में प्रवरा तटपर स्थित नेवासे गांव के मंदिर में एक खंभे का आधार लेकर संत ज्ञानेश्वर ने भगवत गीता का भाष्य किया….. Read more »

पंढरपुरमें पांडुरंगकी मूर्तिकी स्थापना

`‘हे पांडुरंग, आपके चरण समचरण हैं । उनमें द्वैत नहीं है । ऐसे स्वरूपमें आप इन दो इंटोंपर (द्वैतपर) अद्वैत स्वरूपमें खडे हैं ।’’ Read more »

असुरों के विनाश हेतु सर्वस्व का त्याग करनेवाले ऋषि दधीचि !

वृत्रासुर का नाश करने के लिए दधीचि ऋषि ने अपने प्राण सहजता से दे दिए । इससे ध्यान में आता है कि ऋषि मुनि कितने महान थे। Read more »

श्रीगुरु की आज्ञापालन हेतु स्वयं को झोंक देनेवाला शिष्य आरुणी !

प्राचीन समय में धौम्य नामक मुनि का एक आश्रम था । उस आश्रम में उनके अनेक शिष्य विद्याभ्यास के लिए रहते थे । उनमें आरुणी नामक एक शिष्य था । एक समय धुंआधार वर्षा होने लगी । Read more »

शिवाजी महाराज की गुरुभेंट

समर्थ रामदास स्वामीजी की ख्याति सुननेपर छ.शिवाजी महाराज को उनके दर्शन की लालसा निर्माण हुई । उनसे मिलने के लिए वे कोंढवळ को गए । वहां भेट होगी इस आशा से सायंकालतक रुके, तब भी महाराज की स्वामीजी से भेंट नहीं हुई । Read more »

दानवीर कर्ण

बालमित्रों, कर्ण दुर्योधन का घनिष्ठ मित्र था । वह एक महान दानी के रूप में प्रसिद्ध था । वह अपने पास आए किसी भी याचक को कभी खाली हाथ नहीं लौटाता था, ऐसी उसकी कीर्ति थी । Read more »