अध्यात्म की पहली सीढी : अहंकार का त्याग !

एक नगर में शूरसेन नाम का एक राजा था । शूरसेन अत्यंत पराक्रमी होने के कारण उसे अपने शौर्य, राज्य, सुख-संपत्ति तथा कर्तापन का अत्यंत अहंकार था । एक दिन शूरसेन को अध्यात्म सीखने की इच्छा हुई । शूरसेन ने अपने प्रधान को बुलाकर राज्य में जो भी अध्यात्म सिखानेवाले सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी गुरु है, उनका सम्मान करने और अध्यात्म सिखाने के लिए राजमहल में लाने की आज्ञा दी । Read more »

राजा मोरध्वज की कृष्णभक्ति !

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद अर्जुन को यह भ्रम हो गया की, वह श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं । अर्जुन सोचते थे की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, युद्ध के समय वे मेरे साथ रहे, इसका अर्थ है मैं ही भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूं । अर्जुन यह भूल गए थे की वे तो केवल भगवान के धर्म संस्थापना का माध्यम थे । अर्जुन के मन की बात जानकर भगवान श्रीकृष्णजी ने उनका अहंकार तोडने का निश्‍चय किया । Read more »

महाराज रघु का दान ! 

महाराज रघु अयोध्या के सम्राट थे । वे प्रभू श्रीरामजी के परदादा थे । उनके नामसे ही उनके वंश के क्षत्रिय ‘रघुवंशी’ कहे जाते हैं । एक बार महाराज रघु ने एक बडा यज्ञ किया । जब यज्ञ पूरा हो गया तब महाराज ने ब्राह्मणों तथा दीन-दुखियों को अपना सब धन दान कर दिया । उसके बाद वे मिट्टी के बर्तनों से काम चलाने लगे । Read more »

कोढी पर दया !

एक बार श्री गुरुनानकजी लोगों के कष्टों को दूर करते हुए एक गांव के बाहर पहुंचे और वहां उन्हें एक झोपडी दिखाई दी । गांव से इतनी दूर बाहर बनी उस झोपडी को देखकर उन्हें आश्‍चर्य हुआ । वह उस झोपडी में पहुंचे । उस झोपडी में एक आदमी रहता था, जिसे कुष्ठरोग था । Read more »

प्रामाणिकता का महत्त्व ! (सच्चा लकडहारा) 

एक गांव में मंगल नाम का बहुत सीधा और सच्चा व्यक्ति रहता था । वह बहुत गरीब था । दिनभर जंगल में सूखी लकडी काटता और बाद में उनका गठ्ठर बांधकर बाजार में बेचने के लिए ले जाता था । पूरा दिन परिश्रम करने के बाद उसकी जो भी कमाई होती थी, उसमें वह संतुष्ट रहता था । Read more »

ईमानदार स्वामी विवेकानंद ! 

बचपन से ही स्वामी विवेकानंदजी में एक असाधारण प्रतिभा थी । वह जब बात करने लगते तो प्रत्येक व्यक्ति उन्हें ध्यानमग्न होकर सुनने लगता । एक दिन पाठशाला में उनकी कक्षा में वे अपने मित्रों से बात कर रहे थे । उसी समय उनके शिक्षक उनकी कक्षा में आ पहुंचे और उन्होंने अपना विषय पढाना आरंभ कर दिया । परन्तु नरेंद्र की बात सुन रहे छात्रों को कक्षा में शिक्षक आने का पताही नही चला । वे नरेंद्र को सुनते ही रहें । Read more »

जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्णजी की गुरुदक्षिणा !

छोटी आयु में ही श्रीकृष्णजी और बलराम को शिक्षा प्राप्त करने के लिए उज्जयिनी नगरी में सांदीपनी ऋषि के आश्रम में भेजा गया । शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम अपने गुरु सांदीपनी ऋषि को विनम्रता से वंदन किया और कहा, ‘‘हे गुरुवर, आपने हमें अमूल्य ज्ञान दिया है । हम आपके चरणों में गुरुदक्षिणा अर्पण करना चाहते हैं ।’’ Read more »

अर्जुन को पाशुपत अस्‍त्र की प्राप्ति ! 

महाभारत के युद्ध में अनेक अस्‍त्रों का उपयोग किया गया था, जिसका परिणाम अत्‍यंत भयंकर होता था । धनुर्धारी अर्जुन के पास ऐसा ही एक अस्‍त्र था, जिसका नाम पाशुपत अस्‍त्र था । यह अस्‍त्र अर्जुन ने भगवान शिवजी से प्राप्‍त किया था । आज हम यही कहानी सुनेंगे कि अर्जुन को इस अस्‍त्र की प्राप्‍ति कैसे हुई । Read more »

देवताओं की शक्‍तिद्वारा दुर्गादेवी की निर्मिती !

मां दुर्गा की निर्मिती अनेक देवताओं से हुई है । उनकी देह का प्रत्‍येक अवयव एक-एक देवता की शक्‍ति से बना है । इस देवी की निर्मिती कैसे हुई यह कथा आज हम सुनेंगे । Read more »