श्री दुर्गादेवी द्वारा शुम्‍भ-निशुम्‍भ का वध

शुम्‍भ और निशुम्‍भ नाम के दो राक्षस थे । १० सहस्र वर्षों तक उन्‍होंने अन्‍न और जल का त्‍याग कर ब्रह्माजी की तपस्‍या की और तीनों लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्‍त किया । शुम्‍भ और निशुम्‍भ से रक्षा करने के लिए देवताओं के गुरु बृहस्‍पतिजी ने ‘देवी जगदंबा’ अर्थात ‘श्री दुर्गादेवी’ का आवाहन किया । Read more »

संपत्ति से भक्‍ति श्रेष्‍ठ

चोलराज और विष्‍णुदास नाम के दो मित्र थे । दोनो भगवान श्रीविष्‍णुजी के भक्‍त थे । चोलराज यह चक्रवर्ती सम्राट था । वह धनवान और दानवीर था । इसके विपरीत विष्‍णुदास एक गरीब परंतु विद्वान ब्राह्मण था । दोनो प्रतिदिन भगवान श्रीविष्‍णुजी के एक मंदिर मे पूजा करने के लिए जाते थे । Read more »

भक्‍त कूर्मदास

पैठण गाव मे कूर्मदास नाम का एक व्‍यक्‍ति था । वह जन्‍म से ही विकलांग था । उसके हाथ और पांव नही थे । एक दिन उसके गाव के मंदिर में कीर्तन था । कीर्तन में विठ्ठल के पंढरपूर क्षेत्र का अलौकिक महीमा बताई । वह सुनकर कूर्मदास ने ‘पंढरपूर जाना ही है’, यह निश्‍चित ही कर लिया । Read more »

गुरू क्‍या होते हैं !

हम स्‍वामी विवेकानंदजी और उनके गुरु स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंस जी की कथा के द्वारा ‘गुरु क्‍या होते हैं’ यह समझ लेते हैं । स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंसजी कैंसर रोग से पीडित थे । उन्‍हें खांसी बहुत आती थी और उस कारण वे खाना भी नहीं खा पाते थे । स्‍वामी विवेकानंद जी अपने गुरु जी की हालत से बहुत दु:खी होते थे । Read more »

गुरु आज्ञापालन का महत्त्व !

समर्थ रामदास स्‍वामीजी के एक शिष्‍य भिक्षा मांगते हुए वह एक घर के सामने आया । घर का दरवाजा खोलकर एक योगी बाहर आया । योगी अहंकारी थे । योगी ने क्रोध से पूछा, ‘‘कौन है ये समर्थ ? तुम्‍हारा इतना दुःसाहस की, मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान कर रहे हो । देखता हूं, कितना समर्थ है तेरा गुरु ? मैं तुम्‍हें शाप देता हूं… Read more »

लालबहादुर शास्‍त्रीजी की प्रामाणिकता !

हम लालबहादुर शास्‍त्रीजी की यह कथा सुनते हैं । इससे पहले हमने उनकी सरल जीवन पद्धति के बारे मे जान लिया था । आज हम उनके जीवन का एक प्रसंग देखते हैं, जिससे हमें प्रेरणा मिलेगी । शास्‍त्रीजी उनकी सत्‍यनिष्‍ठा और प्रामाणिकता के लिए जाने जाते हैं । Read more »

पितृभक्‍त सोमशर्मा

शिवशर्माजी ने अपने छोटे पुत्र सोमशर्मा को अमृत के घडे की रक्षा करने के लिए कहा । अमृत का घडा अपने पुत्र के पास देकर वह स्‍वयं पत्नी के साथ तीर्थयात्रा करने चले गए । दस वर्ष बाद शिवशर्माजी अपने पुत्र के पास लौटे । पुत्र की परीक्षा लेने का विचार उनके मन में आया । Read more »

वीर राजकुमार कुवलयाश्‍व !

एक दिन महर्षि गालव राजा शत्रुजीत के पास आए । महर्षि अपने साथ एक दिव्‍य अश्‍व अर्थात घोडा भी लाए थे । महर्षि ने बताया, ‘‘एक दुष्‍ट राक्षस आश्रम में बार बार आता है और आश्रम को भ्रष्‍ट और नष्‍ट करता है । आपका पुत्र ऋतध्‍वज हमें कष्‍ट देनेवाले असुर का नाश करेगा । इसलिए आप अपने राजकुमार को हमारे साथ भेज दीजिए ।’’ Read more »

भगवान श्रीविष्‍णु का कूर्मावतार

मंथन आरंभ तो हुआ परन्‍तु नीचे आधार ने होने के कारण मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा । सभी देवता और असुरों ने देखा की इतने कठिन प्रयास करने के बाद भी सारे प्रयत्न विफल हो रहे हैं । आगे क्‍या करें यह उनके ध्‍यान में नहीं आ रहा था । तब श्रीविष्‍णुजी समझ गए कि अब देवताओं की रक्षा हेतु उन्‍हें कुछ करना होगा । Read more »