सब धन धूली समान !

राजा कृष्‍णदेवराय के राज्‍य में संत पुरंदरदास नामक संत रहते थे । संत पुरंदरदास जी का जीवन सादगी भरा था । वे ईश्‍वर के भक्‍त होने के कारण लोभ से भी मुक्‍त थे । राजाने अपने गुरु व्‍यासराय के मुख से संत पुरंदरदास जी की प्रशंसा अनेक बार सुनी थी । तब राजा के मन मे संत पुरंदरदास जी की परीक्षा लेने का विचार आया । Read more »

अर्जुन का भाव !

अर्जुन भगवान श्रीकृष्‍ण के निस्‍सिम भक्‍त थे । महाभारत युद्ध के बाद भगवान् श्रीकृष्‍ण और अर्जुन द्वारिका जा रहे थे, तबरथ अर्जुन चलाकर ले गए । द्वारका पहुंचकर अर्जुन बहुत थक गए थे, इसलिए विश्राम करने अतिथि भवन में चले गए । रुक्‍मिणीजी ने श्रीकृष्‍णजी को भोजन परोसा । तब वे बोले, अर्जुन हमारे अतिथि हैं, जब तक वह भोजन नहीं करते, तब तक मैं अर्जुन के बिना भोजन कैसे कर सकता हूं ? Read more »

भक्‍त कृष्‍णाबाई !

एक गांव में कृष्‍णा बाई नाम की बूढी माताजी रहती थी.. वह भगवान श्रीकृष्‍ण की परमभक्‍त थी । वह घर-घर जाकर झाडू, पोछा, बर्तन मांजना और खाना बनाना ऐसे काम करती थी और अपना भरण-पोषण करती थी । एक रात श्रीकृष्‍ण जी ने अपनी भक्‍त कृष्‍णाबाई से कहा कि कल बहुत बडा प्रलय आनेवाला है.. पूरा गांव पानी में डूबनेवाला है । तुम यह गांव छोडकर दूसरे गांव चली जाओ । Read more »

सकारात्‍मक सोच !

एक गांव में दो किसान रहते थे । दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोडी थोडी खेती की जमीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत से खेती कर के अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे । कुछ समय पश्‍चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्‍यु हो गई । यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए । भगवान ने उन्‍हें देखा और उनसे पूछा.. Read more »

अर्पण का महत्त्व !

यह उस समय की बात है जब श्री टेंबेस्‍वामीजी नृसिंहवाडी में थे । गांव में रामदास नाम का एक दर्जी रहता था । रामदास बहुत अच्‍छा कारीगर था, परंतु कोई भी उसके यहां कपडे सिलवाने के लिए नहीं आता था । कई बार ऐसे भी होता था कि कोई ग्राहक उसके दुकान की सीढी तक आता था और वहीं से वापस लौट जाता था । Read more »

शरणागत की पुकार !

जब रामलगनजी आठ वर्ष के थे, उनकी माता उन्‍हें हनुमानजी के द्वारा लंका दहन की कथा सुना रही थी । उसी समय लगभग पंद्रह – सोलह डाकू घर में घुस आए । तब रामलगनजी ने हनुमानजी का स्‍मरण किया और शरणागति से पुकारा, ‘हनुमान जी ! मेरे हनुमान जी ! हमारी रक्षा करें ! Read more »

चराचर में भगवान का अस्‍तित्‍व !

संत नामदेव महाराजजी गांव-गांव जाकर प्रवचन करते थे । एक दिन महाराज अपने शिष्‍यों को ज्ञान-भक्‍ति का प्रवचन दे रहे थे । उस समय श्रोताओं में बैठे एक शिष्‍य ने पूछा, ‘‘गुरुदेव, आप कहते हैं कि ईश्‍वर सृष्‍टि के कण कण में ईश्‍वर का वास होता है; परंतु वह हमें कभी दिखाई क्‍यों नहीं देते?’, ‘हम कैसे मान लें कि ईश्‍वर सचमुच हैं’ और यदि हैं, तो ‘हम उन्‍हें कैसे प्राप्‍त कर सकते हैं ? Read more »

उचित दान का महत्त्व !

एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती भ्रमण पर निकले । रास्‍ते में उन्‍होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्‍चे तैर रहे थे । सभी तालाब के किनारे से छलांग लगाकर तैरने का आनंद ले रहे थे । उसी तालाब के किनारे एक पेड के नीचे एक बच्‍चा अत्‍यंत उदास मुद्रा में बैठा था । Read more »

श्री विष्‍णु का हयग्रीव अवतार !

हयग्रीव नाम का एक महापराक्रमी दैत्‍य था । उसका सिर घोडे के समान था । उसने सरस्‍वती नदी के तट पर जाकर भगवती महामाया को प्रसन्‍न करने के लिएकठोर तपस्‍या की । वह बहुत दिनों तक बिना कुछ खाए भगवती के एकाक्षर बीजमंत्र का जाप करता रहा । Read more »

कन्‍हैया की मुरली !

भगवान श्रीकृष्‍णजी की पूजा करनेवाले पुजारी अपने पुत्र के साथ वहीं रहते थे । पुजारी प्रतिदिन श्रीकृष्‍णजी की सेवा मंदिर में बडी श्रद्धा भाव से करते थे । उनका पुत्र भी धोती कुर्ता पहनकर सिर पर छोटी सी चोटी करके पुजारीजी के साथ आता था और उनको सेवा करते हुए देखता था । Read more »