गुरुभक्त संदीपक !
गोदावरी नदी के तट पर महात्मा वेदधर्मजी का आश्रम था । उन्होंने अपने सभी शिष्यों को कहा, ‘‘मुझसे जितना हो सका उतना ज्ञान तुम सबको मैंने दिया है । परन्तु अब मेरे पूर्व जन्म के कर्मों के कारण आगे आनेवाले समय में मुझे कोढ होगा, मैं अंधा हो जाऊंगा, मेरे शरीर में कीडे पड जायेगे, मेरे शरीर से दुर्गंध आने लगेगी । मेरे इस व्याधिकाल में कौन-कौन मेरे साथ आने के लिए तैयार है ?’’ Read more »