सुभाषित – १
यादृशै: सन्निविशते यादृशांश्चोपसेवते । यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग्भवति पूरूष: ।।
अर्थ : मनुष्य जिस प्रकारके लोगोंके साथ रहता है , जिस प्रकारके लोगोंकी सेवा करता है , जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है , वैसा वह होता है ।
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यादृशै: सन्निविशते यादृशांश्चोपसेवते । यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग्भवति पूरूष: ।।
अर्थ : मनुष्य जिस प्रकारके लोगोंके साथ रहता है , जिस प्रकारके लोगोंकी सेवा करता है , जिनके जैसा बनने की इच्छा करता है , वैसा वह होता है ।
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दत्त एवं उनकी वस्तुओं का क्या अर्थ है ?
दत्त एवं उनके परिवार का क्या अर्थ है ? Read more »
किला बनाना अर्थात क्या ?
छोटे बच्चेही किला क्यों बनाते हैं ?
किला घर के बाहर क्यों बनाते हैं ?
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कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशी के नाम से जानी जाती है । यह दिन एक व्रत के रूप में मनाया जाता है । Read more »
प्राचीन काल में भारतीय शिक्षा-क्रम का क्षेत्र बहुत व्यापक था। शिक्षा में कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थीं कलाओं के सम्बन्ध Read more »
आचमन : इससे अंतर्शुद्धि होती है । देशकाल : देशकाल का उच्चारण करें । संकल्प : संकल्प बिना किसी भी विधि का फल मिलना कठिन होता है । Read more »
वेदव्यास ने साक्षात् श्रीगणेश को ही अपना लेखक बनाया । उन्हें महाभारत लिखाना था । लाख से भी अधिक श्लोकों का प्रचंड महाग्रंथ था महाभारत ! यह प्रचंड ग्रंथ कौन लिखेगा ? Read more »
पाश्चात्यों समान भारत में भी आज ‘फास्ट फूड’ की भोगवादी संस्कृति फैल रही है ।
पिज्जा, बर्गर, चिप्स इत्यादि ‘फास्ट फूड’, कृत्रिम एवं प्रक्रियासे तैयार किया गया अन्न है ! Read more »
हिंदुस्थानका ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्वका वातावरण आतंकवादसे दूषित हो गया है । इस दूषित वातावरण एवं सूक्ष्म जगतकी शुदि्ध करनेके लिए यज्ञसे श्रेष्ठ अन्य कोई उपाय नहीं है । Read more »