वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। वन्दे मातरम् ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।। वन्दे मातरम् ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे
मातरम् ।। ३ ।। वन्दे मातरम् ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।। वन्दे मातरम् ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।। वन्दे मातरम् ।

– बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी)

(`वन्दे मातरम्’ यह  गीत रविवार, कार्तिक शुद्ध नवमी, शके १७९७ (७ नोव्हेंबर १८७५) इस  दिन  पूरा हुआ.)

वन्दे मातरम्’की प्रस्तावना

हे माते, मैं तुम्हें वंदन करता हूं ।

         जलसमृध्द तथा धनधान्यसमृध्द दक्षिण के मलय पर्वत के ऊपर से आनेवाली वायुलहरों से शीतल होनेवाली तथा विपुल खेती के कारण श्यामलवर्ण बनी हुई, हे माता !

         चमकती चांदनियों के कारण यहांपर रातें उत्साहभरी होती हैं, फूलों से भरे हुए पौधों के कारण यह भूमि वस्त्र परिधान किए समान शोभनीय प्रतित होती है । हे माता, आप निरंतर प्रसन्न रहनेवाली तथा मधुर बोलनेवाली, वरदायिनी, सुखप्रदायिनी हैं !

         तीस करोड मुखों से निकल रही भयानक गरजनाएं तथा साठ करोड हाथों में चमकदार तलवारें होते हुए, हे माते आपको अबला कहने का धारिष्ट्य कौन करेगा ? वास्तव में माते, आप में सामर्थ्य हैं । शत्रुसैन्यों के आक्रमणों को मुंह-तोड जवाब देकर हम संतानों का रक्षण करनेवाली हे माता, मैं आपको प्रणाम करता हूं ।

         आपसे ही हमारा ज्ञान, चरित्र तथा धर्म है । आपही हमारा हृदय तथा चैतन्य हैं । हमारे प्राणों में भी आप ही हैं । हमारी कलाईयोंमें (मुठ्ठी में) शक्ति तथा अंत:करण में काली माता भी आपही हैं । मंदिरों में हम जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठापना करते हैं, वे सभी आप के ही रूप हैं ।

         अपने दस हाथों में दस शस्त्र धारण करनेवाली शत्रुसंहारिणी दुर्गा भी आप तथा कमलपुष्पों से भरे सरोवर में विहार करनेवाली कमलकोमल लक्ष्मी भी आपही हैं । विद्यादायिनी सरस्वती भी आप ही हैं । आपको हमारा प्रणाम है । माते, मैं आपको वंदन करता हूं । ऐश्वर्यदायिनी, पुण्यप्रद तथा पावन, पवित्र जलप्रवाहों से तथा अमृतमय फलों से समृद्ध माता आपकी महानता अतुलनीय है, उसे कोई सीमा ही नहीं हैं । हे माते, हे जननी हमारा तुम्हें प्रणाम है ।

         माते, आपका वर्ण श्यामल है । आपका चरित्र पावन है । आपका मुख सुंदर हंसी से विलसीत है । सर्वाभरणभूषित होने के कारण आप कितनी सुंदर लगती हैं ! सच में, हमें धारण करनेवाली तथा हमें संभालनेवाली भी आपही हैं । हे माते, हमारा आपके चरणों में पुन:श्च प्रणिपात ।

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