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‘सेक्यूलरिजम’ एवं हिन्दू राष्ट्र

‘भारतीय संविधान ‘सेक्यूलर’ होने से भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना असम्भव है’, ऐसा प्रसार बुद्धिवादी करते है । इस दुष्प्रचार का उन्मूलन करने के लिए सर्वप्रथम हमें ‘सेक्यूलरिजम’ इस शब्द का इतिहास एवं उसकी वास्तविकता’, समझनी होगी ।

भारतीय संविधान के ‘सेक्यूलर’वादसंबंधी अनुचित धारणाएं एवं वास्तविकता : आज ‘सेक्यूलर’ शब्द का अर्थ सीधे-सीधे ‘धर्मनिरपेक्षता’ ऐसा लगाया जाता है । ‘संविधान के अनुसार भारत धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए ‘सार्वजनिक जीवन में हिन्दू धर्म को स्थान प्राप्त होना’, धर्मनिरपेक्षता के अर्थात संविधान के विरुद्ध है’, इस प्रकार का दुष्प्रचार निरंतर किया जा रहा है । वास्तव में भारत सरकार ने राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर से प्रकाशित किए भारतीय संविधान के हिन्दी संस्करण में कहीं भी ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है । ‘सेक्यूलर’ शब्द का अनुवाद ‘पंथनिरपेक्ष’ किया गया है । राजकाज करते समय किसी भी पंथ का आधार न लेना पंथनिरपेक्षता है !

‘आज भारत के सभी राजनीतिक दल पंथों के आधार पर मत मांगते हैं; किंतु स्वयं को ‘सेक्यूलर’ कहते हैं’, यह बडा पाखंड है ।

केवल हिन्दुआें को ही जातिवादी कहनेवाला भारत का पक्षपाती ‘सेक्यूलरवाद’ !

१. (कहते हैं) उपराष्ट्रपति भवन में ईद मनानेवाले भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अन्सारी सेक्यूलर हैं !

भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अन्सारी पूरे वर्ष में केवल ईद के दिन ही उपराष्ट्रपति भवन में दावत देते थे । वे हिन्दूबहुल भारत के उपराष्ट्रपति होने पर भी दीपावली, बिहू अथवा पोंगल जैसे त्योहार नहीं मनाते थे । केवल ईद की दावत देते थे, तब भी उन्हें किसी भी प्रसारमाध्यम ने कभी जातिवादी नहीं कहा ।

२. (कहते हैं) योगदिवस का पालन न करनेवाले ईसाई एवं मुसलमान सेक्यूलर हैं !

२१ जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योगदिन’ के रूप में मनाया जाता है । इसके विरोध में भारत के पादरी और मौलाना सडक पर उतरे थे । उनका कहना था कि ‘हम ईसा मसीह और अल्लाह को छोडकर अन्य किसी के सामने नहीं झुकेंगे । सूर्यनमस्कार, सूर्य की पूजा है, इसलिए हम योगदिन नहीं मानेंगे ।’ योग शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए किया जाता है । इसमें सूर्य की पूजा कहां होती है ? फिर भी भारत के किसी भी प्रसारमाध्यम ने उन्हें जातिवादी नहीं कहा ।

३. ‘सेक्यूलर’ शब्द का अर्थ धर्मनिरपेक्षता करने से हिन्दुआें पर हुए गंभीर परिणाम !

आज भारत में ‘सेक्यूलर’ शब्द का अर्थ धर्मनिरपेक्षता कर, हिन्दुआें को अपमानित किया जा रहा है । उन्हें प्रसारमाध्यम और बुद्धिवादी बार-बार कहते हैं, ‘आप धर्मनिरपेक्ष हैं ।’ परिणामस्वरूप हिन्दू धर्मनिरपेक्ष बन गए और धीरे-धीरे अपने धर्म को भूलते चले गए । ‘सेक्यूलरिजम’की बलि चढकर कोई भी मुसलमान शुक्रवार की नमाज नहीं भूला, कोई भी ईसाई रविवार के दिन चर्च में जाना नहीं भूला । परंतु हिन्दू अपनी संस्कृति, अपनी परंपरा को भूल गए । तिलक लगाने से भी घबराने लगे । मंदिर में आरती के लिए खडे रहने में लज्जित होने लगे । ‘जय श्रीराम’ कहने में असमर्थ होने लगे ।

१. यूरोप में ईसाई पंथ के कैथोलिक, प्रोटेस्टंट आदि अनेक उपपथों में होनेवाला भीषण रक्तपात रोकने के लिए ‘सेक्यूलरिज्म’ का जन्म !

पहले पूर्ण यूरोप में तथाकथित पवित्र ईसाई साम्राज्य था । तब यूरोप में ईसा मसीह को ‘ईश्‍वर का दूत’, बाइबल को ‘धर्मपुस्तक’ और पोप को ‘ईश्‍वर का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि’ मानना अनिवार्य था; अन्यथा मृत्युदंड दिया जाता था । यूरोप के ईसाई लोग ‘कैथेलिक’, ‘प्रोटेस्टंट’, ‘प्रिस्बेरियन’, ‘ऑर्थोडॉक्स’ आदि विविध उपपंथों में विभाजित हुए हैं । उस समय यूरोप के विविध देशों के राजा विविध ईसाई उपपंथों को राजमान्यता देते थे । इसके कारण राजा जिस उपपंथ का समर्थक होगा, वह अन्य उपपंथों के विरोध में षड्यंत्र रचकर, उन्हें नष्ट करने का प्रयत्न करता था । इ.स. १३ वीं शताब्दी से १७ वीं शताब्दी तक करोडों महिला, पुरुष एवं बच्चे इस षड्यंत्र के कारण मारे गए । महिलाआें पर बलात्कार हुए । अनेक लोगों को जीवित जला दिया गया ।

इस आपसी युद्ध का अन्त दिखाई न देने पर, वर्ष १६४८ में यूरोप में सभी ने आपसी शांति की संधि की । यह संधि ‘वेस्टफेलिया की शांति संधि’के नाम से पहचानी जाती है । इसी से ‘सेक्यूलरिज्म’का प्रारंभ हुआ । इस संधि के अनुसार ‘शासक अपने राज्य में राजमान्यता रहित, अन्य ईसाई उपपंथ के नागरिकों की हत्या नहीं करेगा अथवा पंथ परिवर्तन के लिए उनपर दबाव नहीं डालेगा’, यह निश्‍चित हुआ । इस संधि के पश्‍चात भी विभिन्न पंथों में आदर-सम्मान आज भी दिखाई नहीं देता । इस संधि के पश्‍चात केवल राजा एवं चर्च की धार्मिक सत्ता अलग-अलग हुई । ‘चर्च केवल दिव्यता से संबंधित (पारलौकिक) नियम बनाएगी और राजा जीवन से संबंधित विवाह, शिष्टाचार, अपराध आदि संबंधी (लौकिक विषयों के संदर्भ में) कानून बनाएगा’, ऐसा विभाजन हुआ ।

२. यूरोप में हुए सांस्कृतिक आंदोलन के प्रभाववश चर्च के विरोध में ‘सेक्यूलर’ शब्द का उद्गम

वर्ष १८५१ में अंग्रेज लेखक जॉर्ज जैकब होलीओक ने ‘सेक्यूलरिजम’ का उल्लेख ‘चर्च के उपदेश एवं अनुशासन से मुक्त जीवन’, इस अर्थ में किया था । ‘रेनेसां’ अर्थात मध्यकाल में यूरोप में आए सांस्कृतिक आंदोलन के प्रभाववश, चर्च के विरोध में इस अवधारणा का उद्गम हुआ । इस धारणा का विस्तार आगे दिए अनुसार है ।

अ. समाज का संचालन चर्च अथवा पादरी के आदेश से न होकर कुछ सामान्य और व्यापक नियमों के अंतर्गत राज्यकर्ताआें के लिए करना संभव हो । चर्च के आदेश एवं बंधन से राज्यकर्ता मुक्त हों । राजसत्ता और धर्मसत्ता भिन्न हों । दोनों एक-दूसरे के अधिकारक्षेत्र में हस्तक्षेप न करें ।

आ. सेक्यूलर यूरोप के प्रत्येक राज्य ने ईसाइयों के किसी न किसी उपपंथ को विशेष संरक्षण दिया है । कोई न कोई ईसाई उपपंथ ‘यूरोपीय नेशन स्टेट’का राजधर्म है ही । इसके विपरीत भारत ने स्वयं को सेक्यूलर घोषित करते समय किसी भी धर्म को राजमान्यता नहीं दी; परंतु देश के अल्पसंख्यकों को (ईसाई एवं इस्लाम को) संवैधानिक संरक्षण देकर तथा बहुसंख्यक हिन्दुआें को नकारकर, ‘सेक्यूलर’ एवं ‘समानता’ इन तत्त्वों का घोर उल्लंघन किया है ।

भारतीय सनातन धर्मपरंपरा के अनुसार ‘सेक्यूलरिजम’ की निरर्थकता !

यूरोप की राजसत्ता एवं पंथसत्ता में कलह से भारतीय परम्परा का अनोखापन एवं महत्त्व ध्यान में आता है ।

१. भारत में धर्म व्यक्ति के सर्वांगीण जीवन में व्याप्त है, उदाहणार्थ विवाह, शिष्टाचार, अपराधी को दंड अथवा प्रायश्‍चित्त आदि सभी के संबंध में धर्मबोध बताया गया है । इसलिए भारत में धर्म एवं सामाजिक जीवन अलग हो ही नहीं सकते ।

२. ‘भारत में राजसत्ता अनियंत्रित न हो’, इसलिए पहले से राजसत्ता पर धर्मसत्ता का अंकुश है, उदा. हमारे यहां राजा अलग और धर्मगुरु अलग, ऐसी व्यवस्था थी । भारत में सम्राट चंद्रगुप्त राजा था, तब आचार्य चाणक्य थे । प्रभु श्रीराम, महाराजा युधिष्ठिर आदि के जीवन में राजगुरुआें का स्थान महत्त्वपूर्ण था । सनातन धर्मानुसार राज्याभिषेक के समय राजदंड राजा के मस्तक पर रखकर राजगुरु कहते थे, ‘आज से तुम राजा बन रहे हो, तुम्हें सर्व समाज को दंड देने का अधिकार है; परंतु यह न भूलो कि तुम्हें दंड देने का अधिकार यह राजदंड हमें देता है ।’ भारत की परंपरा में राजा को भी दंडित करने का अधिकार था । इसलिए ‘हमें यूरोप की स्थिति के आधार पर बने एवं भारत के धर्म से कोई भी संबंध न रखनेवाले ‘सेक्यूलर’वाद की क्या आवश्यकता है ?’, यह प्रश्‍न आज सरकार से करना चाहिए ।

भारत में ‘सेक्यूलर’ शब्द का उदय

१. आपातकाल के समय षड्यंत्रपूर्वक संविधान में ४२ वां संशोधन !

वर्ष १९७६ के आपातकाल के समय जब विपक्ष कारागृह में था (अर्थात लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं था) देशद्रोही साम्यवादियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को प्रभावित कर शासनकर्ताआें के पाशवी बहुमत के बलपर ‘सेक्यूलर’ शब्द संविधान में जोडा गया । इसके लिए भारतीय संविधान में ४२ वां संशोधन कर, संविधान के उद्देश्य में ‘India is Socialist (समाजवादी) and Secular (पंथनिरपेक्ष) Republic (गणतंत्र)’, ऐसे शब्द जोडे गए ।
आपातकाल के समय जिस समय जनताद्वारा चुना हुआ शासन नहीं था, उस समय भारत ‘सेक्यूलर’ देश बना । वास्तव में आजतक ‘सेक्यूलर’ शब्द की व्याख्या संविधान में परिभाषित नहीं की गई है ।

२. भारत को ‘हिन्दू रिपब्लिक’ क्यों घोषित नहीं किया गया ?

भारत के विभाजन के पश्‍चात पाकिस्तान को ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान’ और पाकिस्तान से स्वतंत्र होने के पश्‍चात बांग्लादेश को ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश’के नाम से पहचाना जाने लगा । तब शेष भारत को ‘हिन्दू रिपब्लिक’ क्यों घोषित नहीं किया गया ?

भारत की राजनीति में एक विचित्र बात होती है । किसी भी नेता ने विदेशी अवधारणा के संबंध में कुछ बताया, तो अन्य नेता उस अवधारणा को दृढता से पकड लेते हैं । उस अवधारणा के प्रति विदेश में क्या मत है ? अथवा ‘भारत के विद्वान उस संबंध में क्या कहते हैं ?’, इसका वे अध्ययन नहीं करते । वर्ष १९७६ तक भारतीय राज्य ‘सेक्युलर’ नहीं था, अपितु हिन्दू राष्ट्र ही था !

भारत स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र !

१. अनादि काल से भारत हिन्दू राष्ट्र !

भारत अनादि काल से हिन्दू राष्ट्र ही था । त्रेतायुग के राजा हरिश्‍चंद्र और प्रभु श्रीराम, द्वापरयुग के महाराजा युधिष्ठिर, कलियुग के राजा हर्षवर्धन, अफगानिस्तान के राजा दाहीर, मगध के सम्राट चंद्रगुप्त, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज आदि का राज्य कभी ‘सेक्यूलर’ नहीं था, अपितु ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही था । वर्ष १९४७ में भी ५६६ राजसंस्थान हिन्दू राज्य थे ।

२. हिन्दू राजाआें के बल पर भारत में राज्य करनेवाले मुगल !

हमें इतिहास में पढाया जाता है कि ८०० वर्ष मुसलमानों ने और १५० वर्ष अंग्रेजों ने भारत पर राज्य किया । इसका अर्थ यह नहीं है कि सर्वत्र अंग्रेजों अथवा मुसलमानों का राज्य था, उदाहरणार्थ महाराणा प्रताप के विरोध में लडने के लिए अकबर की ओर से राजा मानसिंह गया था । छत्रपति शिवाजी महाराज से लडने के लिए औरंगजेब ने मिर्जा राजे जयसिंह नामक हिन्दू राजा को भेजा था । उस समय भी मुगलों का शासन सर्वत्र नहीं था । राजस्थान में मुगलों के आक्रमण के काल में हिन्दू राजा मुगल राज्यकर्ताआें से बिना लडे, सुरक्षा के नाम पर उनके साथ शस्त्रसंधि करते थे ।

३. अंग्रेजों के काल में भी भारत में ५६६ हिन्दू राजा !

तत्पश्‍चात अंग्रेजों ने आक्रमण किया; परंतु उनका भी राज्य संपूर्ण भारत में नहीं था । भारतीय भूभाग पर एक ही समय ‘ब्रिटिश इंडिया’ और ५६६ राजसंस्थान स्वतंत्ररूप से कार्यरत थे । इसलिए अंग्रेजों के जाने के पश्‍चात सरदार वल्लभभाई पटेल ने विविध राजसंस्थानों को भारत में विलीन कर लिया । कश्मीर, बडोदा, त्रावणकोर, कलिंग आदि ५६६ हिन्दू राज्य और २ मुसलमान राज्य भारत में सम्मिलित हुए थे । इसका अर्थ है कि भारत में हिन्दू राजाआेंका ही राज्य था; तत्पश्‍चात अकस्मात हम ‘सेक्युलर’अर्थात ‘धर्मनिरपेक्ष’ कैसे बन गए ?

भारत ने सदैव शरणार्थी बनकर आए हुए अहिन्दू पंथियों को आश्रय दिया था । जब पर्शियापर मुगलों ने आक्रमण किया था, तब ईरानी लोगों को भारत ने आश्रय दिया था । यहूदियों को भी भारत नेे आश्रय दिया । रतन टाटा जो पारसी हैं, आज वे भारत के सब से बडे उद्योगपति हैं । भारत का कोई भी नागरिक यह नहीं कहता कि, आप पर्शिया से आए हैं, आप पारसी हैं ! हम कहते हैं कि हम भारतीय हैं, रतन टाटा भी भारतीय हैं । भारत की परंपरा सबको अपने साथ लेकर चलनेवाली है । इसलिए किसी को हमें ‘सेक्युलरिज्म’ सिखाने की आवश्यकता नहीं है ।

धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र की मांग क्यों ?

वर्ष १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के पश्‍चात, यहां भारतीय संविधान लागू हुआ । स्वतंत्र का क्या अर्थ है ? स्वयं का तंत्र अर्थात व्यवस्था ! क्या वास्तव में आज भारत स्वतंत्र है ? हिन्दू धर्मानुसार आदर्श राज्यव्यवस्था के अनेक सफल उदाहरण होते हुए भी, आज हम विदेशी अवधारणा पर आधारित राज्यव्यवस्था द्वारा अपना देश चला रहे हैं । क्या इसे स्वतंत्र अर्थात स्व-व्यवस्था कहेंगे ?

शिक्षा व्यवस्था

अंग्रेजों के भारत में आने से पूर्व गुरुकुल परंपराद्वारा शिक्षा दी जाती थी । अंग्रेजों ने कानून बनाकर गुरुकुल बंद किए और उनकी ‘मेकाले शिक्षा प्रणाली’ भारत में लाए । दुर्भाग्यवश स्वतंत्र भारत में आज भी यह शिक्षा-व्यवस्था चल रही है । इस शिक्षा पद्धति में पहले ‘डोनेशन’, तत्पश्‍चात ‘एडमिशन’ एवं अंत में ‘एज्युकेशन’ दिया जाता है । यह शिक्षा व्यवस्था भारतीयों को ‘बिल गेट्स’ बनना नहीं सिखाती, अपितु उनके ‘सीईओ’, अर्थात कार्यकारी अधिकारी बनना सिखाती है । हमारी ‘आइआइटी’से बाहर निकलनेवाले सर्व युवक कुछ विदेशी कंपनियों के ‘पैकेज’के गुलाम बनते हैं । इसके विपरीत गुरुकुल में १४ विद्याएं और ६४ कलाएं सिखाई जाती थीं । इसलिए विद्यार्थी सर्वांग से सक्षम बनते थे । यह शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी और विद्यार्जन के पश्‍चात गुरुदक्षिणा के रूप में गुरु विद्यार्थियों से कुछ महान कार्य करने का आश्‍वासन लेते थे । अब हमें निश्‍चित करना है कि, कौनसी व्यवस्था अच्छी है, गुरुकुल की अथवा आज की ?

न्यायव्यवस्था

आज भी भारत में ‘इंडियन पीनल कोड १८६०’ का कानून चल रहा है । मूलतः यह कानून अंग्रेजों ने भारतमें पुनः १८५७ के समान विद्रोह न हो, इसलिए क्रांतिकारियों पर अंकुश लगानेके लिए बनाया था । इस कानून ने गांधी, नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस आदि को अपराधी घोषित किया था । यही कानून आज भी चालू रखना आश्‍चर्यजनक है । भारत में कानून बनानेवाली संसद में अनपढ और अपराधी लोगों का चयन होता है, इसलिए नए कानून भी दोषपूर्ण बनते हैं । प्राचीन काल में राजा, प्रधान, सेनापति तक्षशिला और नालंदा के विश्‍वविद्यालयों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के पश्‍चात, राज्यके कारोबार में सम्मिलित होते थे । आज जनप्रतिनिधि बनने के लिए कोई भी शैक्षिक पात्रता नहीं देखी जाती, यह गंभीर है ।

राज्यव्यवस्था

स्वतंत्रता के पश्‍चात देश चलाने के लिए संविधान की निर्मिति की गई । प्रथम विश्‍वयुद्ध के पश्‍चात, अंग्रेजों ने ‘इंडिया गवरनेन्स एक्ट १९३५’ बनाया था । आगे जाकर इसी को ‘इंडिया इण्डिपेन्डेन्स एक्ट’ के रूप में भारत के संविधान के रूप में स्वीकारा गया । अंग्रेजों ने भारत को यह कहकर मूर्ख बनाया कि ‘देश चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है ।’ प्रत्यक्ष में आज भी इंग्लैंड में स्वयं का लिखित संविधान नहीं है ।

निर्वाचन पद्धति : वर्तमान लोकतन्त्र में राज्यकतार्र्आेंको चयनित करने की पद्धति भी हमारी अपनी नहीं है । पहले भारत में ‘सिलेक्टेड’ अर्थात योग्य व्यक्ति के हाथ में सत्ता जाती थी । अब ‘इलेक्टेड’ अर्थात बहुमत द्वारा चयनित व्यक्ति के हाथ में सत्ता जाती है । पहले राजगुरु, धर्माचार्य और विद्वान निश्‍चित करते थे कि राज्य करने का अधिकार किसका है ? धृतराष्ट्र बडे थे; परंतु जन्मांध होने के कारण, उन्हें राज्य नहीं सौंपा गया । मगध का राजा नंद जनता पर अन्याय करने लगा, तब आर्य चाणक्य ने विरोध कर, सम्राट चंद्रगुप्त को राज्य चलाने के लिए बैठाया । इस प्रकार भारत की परंपरा में उन्मत्त राजा को पदसे हटाने की व्यवस्था भी थी । आज भ्रष्ट अथवा हत्यारे नेता के ५ वर्ष पूर्ण हुए बिना, हम उसे पदच्युत नहीं कर सकते । ‘राइट टू रिकॉल’का अधिकार जनता को नहीं है । लालूप्रसाद यादव भ्रष्ट होते हुए भी, संसद में बैठते हैं । भारत की संसद में जनहित के कानून बनानेवाले सांसदों में से ३४.५ प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि से हैं ।

ना कानून, ना शिक्षाप्रणाली, ना संविधान, ना राज्यव्यवस्था ! कुछ भी अपना नहीं है, तब भी हम कहते हैं कि हम स्वतंत्र
हैं । इसमें से कुछ भी भारत का नहीं है । अंग्रेजों ने दी और हमने उसे स्वीकार कर लिया । इसे हम स्वतंत्रता कैसे कह सकते हैं ?
‘धर्माधारित हिन्दू राष्ट्र का प्रारूप बतानेवाली राज्यव्यवस्था से संबंधित विपुल ग्रंथसंपदा भारत में है’, यह ध्यान रखें !
जब ‘हिन्दू राष्ट्र’पर चर्चा प्रारंभ होती है, तब प्रसारमाध्यम पूछते हैं कि, हिन्दू राष्ट्र का प्रारूप (ब्लू-प्रिंट) क्या है ? ऐसों को अपनी तेजस्वी परंपरा का स्मरण कराना चाहिए । राज्य चलाने की पर्याप्त जानकारी हमारे धर्मग्रन्थों में है । ४ वेद तो सभी को ज्ञात हैं; परंतु ४ उपवेद भी हैं ।

१. धनुर्वेद : इसमें युद्धकला और राज्य चलाने की जानकारी है ।

२. शिल्पवेद : स्थापत्यकला, अर्थात नगरों की रचना कैसी होनी चाहिए ? मार्ग कैसे होने चाहिए ? आदि बातें इसमें विस्तृत रूप से दिखाई देती हैं ।

३. गांधर्ववेद : संगीतशास्त्र के विषय में जानकारी

४. आर्युवेद : स्वास्थ्य संबंधी जानकारी

५. कौटिल्य अर्थशास्त्र : अंग्रेजों के भारत में आने के पूर्व से हमारे देशमें कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्रसिद्ध है उसमें लिखा है कि जलाशय में रहनेवाली मछलियां पानी कब पीती हैं, यह पता नहीं चलता । उसी प्रकार शासन में कार्य करनेवाले व्यक्ति पैसे कब खा जाते हैं पता नहीं चलता । ऐसों को दण्ड देने के लिए आर्य चाणक्य ने ‘प्रदेष्टा’, अर्थात आज की भाषा में ‘भ्रष्टाचारविरोधी विभाग’ (एन्टी करप्शन ब्यूरो) स्थापित करने के संबंध में सूचित किया था । उस काल में सामान्य व्यक्ति के भ्रष्टाचार के लिए १ वर्ष का दंड होता, तो ‘प्रदेष्टा’का पदभार संभालनेवाले अधिकारी के भ्रष्टाचार के लिए १० वर्षों का दंड घोषित किया जाता था । यदि न्यायाधीश भी भ्रष्टाचार करे, तो उसकी सर्व संपत्ति राजसात कर, उसे देशसे निकाल देने की आज्ञा दी थी । गंभीर अपराध में तो फांसी का भी दंड देने का प्रावधान था ।
स्वतंत्रता के पश्‍चात ७ दशकों में न्यायदान के क्षेत्रमें प्रचंड भ्रष्टाचार होते हुए भी, केवल एक न्यायाधीश पर कार्यवाही हुई
है । अनेक न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार की जानकारी होते हुए भी उन पर कार्यवाही नहीं की जाती । यह कैसी व्यवस्था है ?

६. शास्त्र और तांत्रिक ज्ञान : हमारे पास न्यायशास्त्र, राज्यशास्त्र जैसे शास्त्र; आचार्य भारद्वाज निर्मित विमानशास्त्र का तांत्रिक ज्ञान आदि शास्त्र और तांत्रिक ज्ञानकी विशाल परंपरा है ।

इतनी विशाल विरासत हिन्दू राष्ट्र चलाने के लिए सक्षम है ।

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए हिन्दुआें की संवैधानिक मांगें पूर्ण करें ! : संसार के सर्व देश बहुसंख्यक जनसंख्या के कल्याण का विचार करते हैं । भारत में केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों का विचार किया जाता है । अब समय आ गया है कि हिन्दू अपने अधिकारोंकी मांग करें । यह अधिकार ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना’का होगा ।

प्राप्त परिस्थिति को देखते हुए हिन्दू समाज की अपेक्षा है कि संसद में हिन्दुआें की निम्नांकित मांगे पूर्ण की जाएं ।

१. संविधान में ‘सेक्यूलरिज्म’का भारतीय अर्थ विस्तृतरूप से परिभाषित किया जाए । हिन्दू द्रोहियों को ‘सेक्यूलरवाद’की आड में कोई भी सुरक्षा न मिले । ‘सेक्यूलरिज्म’की आड में हिन्दुआें के आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र की हानि पहुंचाने का कार्य कोई न कर पाए ।

२. संविधान में अल्पसंख्यकों को जो संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है, वही बहुसंख्यकों को भी प्रदान की जाए; क्योंकि यह संविधान के समानता के तत्त्व के अनुसार है ।
हिन्दू धर्म को भारतीय संविधान का कोई संरक्षण न होने के कारण, १०० करोड की संख्यावाला हिन्दू समाज दोयम श्रेणी का जीवनयापन कर रहा है । हिन्दुआें का परम हित साध्य करने के लिए भारत को संविधानद्वारा ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना अपेक्षित है ।

पंथनिरपेक्षता हिन्दुआें के रक्त में ही है !

अनादि काल से आध्यात्मिक भारतभूमि के रक्त में ही पंथनिरपेक्षता है । ५ सहस्र (हजार) वर्षपूर्व हमने शांतिपाठ के माध्यम से घोषणा की थी, कि विश्‍व के सभी लोग सुखी और रोगमुक्त हों, सभी मंगलमय घटनाआें के साक्षी बनें और किसी भी व्यक्ति के भाग्य में दुःख न आए ।

वक्ता : श्री. रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति