विगत ७० वर्षों से अधिक समय से श्रीरामजन्मभूमि की याचिका पर न्यायालय में सुनवाई हो रही है । १९९२ में कारसेवकों ने बाबरी ढांचा गिराया था । इस
प्रकरण में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, कल्याण सिंह एवं मुरली मनोहर जोशी पर षड्यंत्र रचने का अभियोग चलाया गया । इस महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील प्रकरण का संक्षिप्त इतिहास जान लेते हैं ।
क्या है रामजन्मभूमि का प्रकरण ?
- १५ वें शतक में प्रभु श्रीरामचंद्र का मंदिर गिराकर वहां बाबरी का ढांचा खडा किया गया, ऐसा भी आक्षेप है ।
- वर्ष १८८५ में पहली बार यह प्रकरण न्यायालय में गया । महंत रघुबरदास ने फैजाबाद के न्यायालय में राममंदिर के निर्माण हेतु याचिका प्रविष्ट की ।
- २३ दिसंबर १९४९ : मुसलमानों ने नमाज अदा करना बंद किया ।
- ५ दिसंबर १९५० : हिन्दू प्रार्थना करते रहें, इसके लिए महंत रामचंद्रदास ने वहां राम की मूर्ति रखने की मांग की । उस समय ‘बाबरी ढांचा’ शब्द का प्रथम बार प्रयोग हुआ ।
- १७ दिसंबर १९५९ : निर्मोही अखाडा रामजन्मभूमि में अपना भाग लेने न्यायालय में गया ।
- १८ दिसंबर १९५९ : उत्तर प्रदेश का सुन्नी वक्फ बोर्ड मस्जिद के स्वामित्व का अधिकार पाने के लिए न्यायालय में गया ।
- वर्ष १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने और रामजन्मभूमि का स्थान मुक्त कराने के लिए एक आंदोलन चलाया । ‘इस स्थान पर भव्य मंदिर बनाया जाएगा’, यह घोषणा तब की गई ।
- मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी की स्थापना की ।
- वर्ष १९८९ में भारतीय जनता दल ने विहिंप की भूमिका को औपचारिक रूप से समर्थन दिया । इससे मंदिर के शिथिल पडे हुए आंदोलन में उत्साह की लहर दौड गई ।
- जुलाई १९८९ में इस प्रकरण में पांचवां अभियोग प्रविष्ट किया गया ।
- १९९० में भाजपा के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक एक रथयात्रा निकाली ।
- अक्टूबर १९९१ में उत्तर प्रदेश के कल्याण सिंह शासन ने बाबरी ढांचे से लगी २.७७ एकड भूमि का आधिपत्य लिया ।