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हिन्दुओं का संगठ तथा
धर्मप्रेम जागृत करनेवाला

गणेशोत्सव

हिन्दुओं का संगठन तथा धर्मप्रेम जागृत करनेवाला

गणेशोत्सव

गणेशोत्सव संपूर्ण देश में धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है । अनेक परिवार अनेक शताब्दी से घर पर गणेशोत्सव मनाते हैं । सार्वजनिक गणेशोत्सव का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से एक अनोखा संबंध है। गणेश चतुर्थी पर श्री गणेशजी की सार्वजनिक पूजा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य बाळ गंगाधर टिळक को दिया जाता है। उन्होंने इसका उपयोग स्वतंत्रता संग्राम के समय जनता का समर्थन जुटाने के लिए तथा इस आंदोलन के लिए आवश्यक आध्यात्मिक उर्जा प्राप्त करने के लिए किया ।

तथापि, स्‍वतंत्रता के पश्चात के दशकों में गणेशोत्सव के साथ कई प्रकार की कुप्रथाएं जुड गई । इन कुप्रथाओं को दूर करने के लिए हिन्दू जनजागृति समिति प्रयत्नशील है। समिति जागृति अभियान चलाती है और गणेशोत्सव मंडलों को आध्यात्मिक पद्धति से गणेशोत्सव मनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। सार्वजनिक गणेशोत्सव ने स्वराज्य प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और अब इस स्वराज्य को सुराज्य में बदलने का समय आ गया है।

मिट्टी से बनी श्री गणेशमूर्ति – ‘इको फ्रेंडली’ मूर्ति

पानी में घुलकर गीली मिट्टी में बदल जाती है, जिससे नदी की जलधारा अवरुद्ध नहीं होती

जल को प्रदूषित नहीं करती, मानव स्वास्थ्य और जलप्राणियों के लिए हानिकारक नहीं

पानी को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करती है जिससे लोगों और पर्यावरण को लाभ होता है

गणेशोत्सव विरोधी प्रचार

(कागज की लुगदी की मूर्तियां)

मिथ्य

कागज की लुगदी से बनी मूर्तियां पर्यावरण के अनुकूल होती हैं

तथ्य

एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) का कहना है कि, कागज की लुगदी से बनी मूर्तियां प्रदूषण फैलाती हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं

कागज की लुगदी पानी से ऑक्सीजन सोखती है और मीथेन गैस उत्सर्जित करती है, जो जलप्राणियों के लिए हानिकारक है

कागज में स्थित लिग्निन घटक जैविक ऑक्सीजन की मांग को बढाता हैं, जो जलीय जीवों के लिए हानिकारक है

कागज की लुगदी छोटे-छोटे टुकडों में बिखरती है, जो पुन: जलीय जीवों के लिए हानिकारक है

कागज की लुगदी से बनी गणेश प्रतिमाएं नहीं हैं ’इको फ्रेंडली’, न करें इसका उपयोग !

मूर्ति विसर्जन के वैकल्पिक मार्ग

मिथ्य

कुछ गैर सरकारी संगठनों और पर्यावरणवादियों का दावा है कि, मूर्तियों को नदियों में विसर्जित करने से जल प्रदूषण होता है और वे मूर्ति विसर्जन के निम्नलिखित विकल्प का सुझाव देते हैं..

कृत्रिम तालाब में मूर्तियों का विसर्जन

एनजीओ या सरकार को श्री गणेश की मूर्ति दान करना

अमोनियम बाइकार्बोनेट में विघटन

तथ्य

दान की गई मूर्तियों को पत्थर की खदानों और नदियों में फेंककर अनादर किया जाता है।

विसर्जन से आध्यात्मिक लाभ होते हैं, जो मूर्ति को रसायनों में घोलने पर विलुप्त हो जाते हैं

किसी देवता की मूर्ति दान करना या स्वीकार करना, देवताओं का घोर अपमान है; क्योंकि हम मनुष्यों में देवताओं को दान देने या दान स्वीकार करने की क्षमता नहीं है

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार गणेश प्रतिमा को बहते जल में विसर्जित करें !

ढोंगी पर्यावरणवादी

ढोंगी पर्यावरण‍वादी सालभर गहरी नींद में रहते हैं और केवल हिन्दू त्योहारों के दौरान खतरे की घंटी बजाने के लिए जागृत होते हैं । गणेशोत्सव के दौरान इन कथित पर्यावरणप्रेमियों को जल प्रदूषण की बहुत चिंता रहती है ।

मैं प्रतिज्ञा करता हूं…

1

मिट्टी और प्राकृतिक रंगों में बनी गणेश मूर्ति की ही घर में स्थापना करूंगा

2

विचित्र रूप और विशाल आकार की गणेश मूर्तियां स्थापित नहीं करूंगा

3

पारंपरिक परिधान पहनूंगा तथा सात्विक भजन और मंत्र लगाऊंगा

4

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार गणेश मूर्ति को बहते जल में विसर्जित करूंगा

5

श्रीगणेशजी का अपमान करनेवालों का कानूनी मार्ग से विरोध करूंगा

6

सच्चा गणेशभक्त बनकर आदर्श पद्धति से गणेशोत्सव मनाऊंगा

गणेशोत्सव की पवित्रता संजोए रखने लिए
हिन्दू जनजागृति समिति का अभियान

मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए मूर्ति निर्माताओं और गणेशोत्सव मंडलों में जागृति

आदर्श गणेशोत्सव के बारे में जनजागृति निर्माण करने के लिए व्याख्यान और विशेष चर्चाओं का आयोजन

हिन्दू विरोधी प्रचार का षड्यंत्र विफल करने के लिए सोशल मीडिया जागृति अभियान

आध्यात्मिक एवं शास्त्र संबंधी जानकारी देनेवाले पोस्टर, प्रदर्शनी, हस्तपत्रकों का वितरण

अधार्मिक कृत्रिम तालाब तथा मूर्ति दान अभियान पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकारी अधिकारियों को ज्ञापन

समिति ने तथाकथित इको-फ्रेंडली मूर्तियों पर एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मांगी रिपोर्ट

समिति 2002 से ‘पीओपी’ मूर्तियों पर प्रतिबंध लगाने की लडाई में सबसे आगे

मूर्तियों के शांतिपूर्ण और सुनियोजित विसर्जन के लिए समिति के स्वयंसेवकों द्वारा भक्तों और पुलिस प्रशासन की सहायता

समिति के स्वयंसेवक लोगों को सात्विक विसर्जन विधियों का चुनाव करने हेतु आश्वस्त करने में सफल

आदर्श गणेशोत्सव कैसे मनाएं ?

यह करें !

  • सजावट सात्विक और प्राकृतिक सामग्री से करें
  • धर्मशास्त्र के अनुसार मूर्ति मिट्टी की तथा प्राकृतिक रंगों की खरीदें
  • भक्तिपूर्वक चुनिंदा आरतियां गाए तथा प्रार्थना और जप करें
  • नामजप और भाव के साथ प्रसाद बनाए
  • नामजप करते हुए विसर्जन शोभायात्रा निकालें, जो समय पर शुरू और समाप्त हों
  • विसर्जन बहते जल में करें

यह न करें !

  • महंगी लाइटिंग (प्रकाश सज्जा) और थर्माकोल से सजावट
  • प्लास्टर ऑफ पेरिस, विशाल आकार, विचित्र पोशाक, नारियल के छिलके, केले, बर्तन आदि वस्तुओं से बनी मूर्तिया
  • आरती के दौरान हंसी-मजाक, लंबी आरती, फिल्मी संगीत पर आधारित आरती
  • प्रसाद बनाते समय अनावश्यक बातचीत
  • शोभायात्रा में शराब का सेवन, तामसिक गाने, जबरदस्ती रंग लगाना, देर रात में विसर्जन का समापन
  • मूर्ति का दान, अमोनियम कार्बोनेट में विसर्जन, मूर्ति को नाले में फेंक देना

सामान्यत: पूछे जानेवाले प्रश्न

विसर्जन पर श्री गणपति की मूर्तियों में चैतन्य होने के कारण यह पानी को शुद्ध करता है। बहते जल के साथ यह चैतन्य दूर तक पहुंचता है और अनेक लोगों को इसका लाभ होता हैं। इस पानी की भाप बनती है; इसलिए, यह वातावरण को भी सात्विक बनाता है।

शास्त्रों में बताया गया है कि, श्री गणेश मूर्ति का विसर्जन बहते पानी या जलाशय में करना चाहिए। हालांकि, कुछ लोग मूर्ति विसर्जन को जल प्रदूषण, भुखमरी आदि का कारण मानते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए कुछ हिन्दू विरोधी लोग मूर्ति विसर्जन की अपेक्षा उसे दान करने की हास्यास्पद मांग करते हैं। मूर्ति दान अवैज्ञानिक होने के साथ-साथ श्रीगणेश का अपमान है। मूर्ति दान अवैज्ञानिक होने के निम्नलिखित कारण हैं।

  • भाद्रपद माह में श्री गणेश चतुर्थी पर प्रतिष्ठापित मूर्ति का विसर्जन करना शास्त्रों के अनुसार एक धार्मिक अनुष्ठान है।

  • किसी देवता को दान देना या देवता का दान स्वीकार करना देवताओं का घोर अपमान है, क्योंकि हम मनुष्यों में देवताओं को दान देने या उसका दान स्वीकार करने की क्षमता नहीं है।

  • मूर्ति कोई खिलौना या शोपीस नहीं है जिसे अपनी इच्छानुसार उपयोग के बाद त्याग दिया जाए या दान कर दिया जाए।

कुछ क्षेत्रों में विसर्जन के लिए पर्याप्त पानी वाले जलाशय नहीं हैं। कुछ अन्य स्थानों पर, पानी के सभी स्रोत प्रदूषित हैं, जिससे वे मूर्ति के विसर्जन के लिए अनुपयुक्त हैं। इसी प्रकार, किसी स्थान पर अकाल या आपदा के कारण मूर्ति विसर्जन संभव नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति से निम्नलिखित दो पद्धति से मार्ग निकाला जा सकता है:

  • किसी मूर्ति की प्रतिष्ठा करने के स्थान पर एक सुपारी रखें और उसे श्री गणपति मानकर प्रतीकात्मक रूप से पूजा करें। सुपारी को किसी छोटे कुएं या जलधारा में विसर्जित किया जा सकता है।
  • चतुर्थी उत्सव के लिए श्री गणपति की नई धातु की मूर्ति खरीदें और उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर पूजा करें। किंतु नित्य पूजा में गणपति की मूर्ति अवश्य रहती है, लेकिन नई मूर्ति लाने का कारण इस प्रकार है – श्री गणेश चतुर्थी पर गणेश तरंगें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर उतरती हैं। यदि उन्हें हमारी नित्य पूजा में सम्मिलित किया जाए तो मूर्ति अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा से भर जाएगी। संपूर्ण वर्ष सावधानीपूर्वक अनुष्ठान से पूजा के साथ अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा होने वाली ऐसी मूर्ति की पूजा करना कठिन हो जाएगा; क्योंकि इसके लिए कर्मकांड के सक्त नियमों का पालन करना होता है। अत: नई धातु की मूर्ति खरीदनी चाहिए। ऐसी मूर्ति को वास्तव में पानी में विसर्जित करने की आवश्यकता नहीं होती है। विसर्जन के समय मूर्ति की हथेली पर थोडा सा अक्षत रखें और दाहिने हाथ से मूर्ति को थोडा हिलाएं। इसके साथ ही मूर्ति में स्थित तत्त्व का भी विसर्जन कर दिया जाता है। ऐसी मूर्ति की प्रतिदिन पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। अगले वर्ष इस मूर्ति की पुनः प्राण-प्रतिष्ठा एवं पूजा-अर्चना की जा सकेगी।