धर्मो रक्षति रक्षित:
धर्म की रक्षा
तथा संरक्षक के लिए संगठित हों !
पवित्र भगवद्गीता में एक श्लोक है – “धर्मो रक्षति रक्षित:” (धर्म की रक्षा करनेवालों की धर्म रक्षा करता है) । वर्तमान समय में धर्म की रक्षा केवल धर्म को संरक्षित और उसे अमल में लाने तक सीमित नहीं है, अपितु इसका अर्थ विभिन्न आक्रमणों से धर्म की रक्षा करना भी है। इसमें से एक आक्रमण है, हिन्दू श्रद्धास्थानों का नित्य अपमान और उपहास। अनादर का अर्थ है किसी वस्तु को अपमानजनक पद्धति से प्रदर्शित करना, जो उसके मूल रूप से भिन्न हो। आध्यात्मिक स्तर पर, इसके परिणामस्वरूप मूल रज और तम स्पंदनों के कारण प्रदूषण बढता है। इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि, हम इस अधर्म का सामना करने के लिए अपने सभी वैध मार्गों का उपयोग करें।
इस भाग में आप विभिन्न प्रकार के अनादर को देखेंगे और साथ ही समाज में धार्मिक मूल्यों को संरक्षित करने तथा इन अपमानों को रोकने का प्रयास कर रही हिंदू जनजागृति समिति के प्रयासों को भी देखेंगे।
अनादर के परिणाम
आस्था के साथ जुडी भावनाएं आहत होती हैं।
भविष्य की पीढियों के लिए अनचाहे उदाहरण स्थापित करता है।
ईश्वर की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न करता है ।
धार्मिक प्रथाओं के बहिष्कार का कारण बनकर कुछ महत्वपूर्ण प्रथाओं को धीरे-धीरे समाप्त करने को पोषण देता है।