साधारण भारतीय समाज सश्रद्ध और आस्तिक है । भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक की धर्मश्रद्धाओं का आदर करना सूचित करता है; परंतु आज नाटक, चलचित्र, वेबसीरीज, विज्ञापन, काव्य, चित्र आदि द्वारा धर्म, धर्मग्रंथ, देवता, संत और राष्ट्रपुरुषों का बडी मात्रा में अनादर किया जा रहा है । देवताओं की मूर्तियां अथवा चित्रों का सार्वजनिक स्थानों पर अनादर कर धार्मिक भावनाएं आहत करना और समाज में तनाव उत्पन्न करना; नास्तिकतावाद, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कला स्वतंत्रता आदि के नाम पर देवताओं का उपहास करना, देवताओं को अनुचित प्रकार से चित्रित करना, सोशल मीडिया में देवताओं के अपमानजनक चित्र प्रसारित करना; वेबसीरीज-चलचित्र-नाटक-विज्ञापनों में देवताओं के पात्र दिखाकर उनके मुख में विनोदी-आपत्तिजनक संवाद दिखाना, उन पात्रों अथवा देवताओं का उपहास करना; देवता, संत, धर्म आदि से संबंधित अनादरात्मक काव्य रचकर विभिन्न समारोहों में प्रस्तुत करना; अनादरात्मक तथा देवताओं के संबंध में अत्यंत निम्न स्तर पर जाकर विकृत और द्वेषपूर्ण लेखन करना आदि अनेक माध्यमों से देवताओं का अनादर खुलकर करना अत्यधिक मात्रा में बढा है । इसके द्वारा बहुसंख्यक आस्तिक सश्रद्ध हिन्दू समाज में असंतोष फैलाया जा रहा है । इस कारण कुछ नागरिकों की देवता-धर्म के प्रति श्रद्धा कम हो सकती है अथवा उनकी श्रद्धा खंडित होकर उनकी धार्मिक भावनाएं आहत की जा रही हैं ।
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हिन्दू देवताओं का अपमान रोकने के लिए तत्काल कठोर ‘ईशनिंदा विरोधी कानून’ बनाएं !
देशभक्त एवं धर्मप्रेमी हिन्दुओं से निवेदन है कि, कृपया नीचे दिए गए ‘Send Email’ इस बटन पर क्लिक कर इस मांग को इ-मेल द्वारा मा. गृहमंत्री एवं मा. कानून मंत्री, भारत सरकार को भेजें ! साथ ही इस इ-मेल की प्रतिलिपि (Copy) हमें [email protected] इस पते पर इ-मेल करें !
(Note : ‘Send Email’ यह बटन केवल मोबाईल से क्लिक करने पर ही कार्य करेगा !)
कनार्टक राज्य के म्हैसूर के हिन्दूद्रोही एवं वादग्रस्त प्राध्यापक के.एस्. भगवान
कनार्टक राज्य के म्हैसूर के हिन्दूद्रोही एवं वादग्रस्त प्राध्यापक के.एस्. भगवान ने करोडों हिन्दुओं के आराध्यदेवता प्रभु श्रीरामचंद्रजी का अपमान कर, जानबूझकर करोडों हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं पुन: एक बार आहत की हैं । कर्नाटक के मंड्या में हुए एक कार्यक्रम में प्रा. भगवान ने, ‘‘भगवान श्रीराम पत्नी सीता के साथ दिनभर शराब पीते थे । राम आदर्श राजा नहीं थे । राम ने 11,000 वर्षे नहीं, अपितु केवल 11 वर्ष राज्य किया ।’’ ऐसे अत्यधिक ही आक्षेपजनक विधान किए ।
इससे पूर्व भी प्रा. भगवान द्वारा प्रभु श्रीरामचंद्र का इसी प्रकार अपमान किए जाने पर कर्नाटक के अनेक भागों में उनके विरोध में संतप्त आंदोलन हुए थे । अनेक पुलिस थानों में अपराध प्रविष्ट किया गया था । उन्हें बंदी भी बनाया गया था । उन्हें ‘पुन: देवताओं के विषय में ऐसे विधान नहीं करेंगे’, ऐसी शर्त रखते हुए जमानत पर छोडा गया था; परंतु उन्होंने इस शर्त का उल्लंघन करते हुए पुन: अक्षम्य अपराध किया है । इसलिए उनकी जमानत तुरंत रद्द कर, हिन्दूद्वेषी प्रा. भगवान को तुरंत बंदी बनाया जाए, ऐसी समिति की मांग है ।
उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य
उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि ‘रामायण में ‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकार ॥’ ऐसे कहा गया है । ऐसी पुस्तकों को अनुमति कैसे मिल जाती है ? इसे तो बहुत पहले ही जप्त हो जाना चाहिए था । इसप्रकार के अवमानजनक चौपाईयां अथवा दोहे समाप्त कर देने चाहिए ।’ ऐसे वक्तव्य करना भी रामायण एवं श्रीरामचरितमानस जैसे धार्मिक ग्रंथों का घोर अनादर है । बिना अध्ययन किए ही केवल राजकीय लाभ के लिए हिन्दू धर्म की अपकीर्ति कर समाजमन में जानबूझकर गलतधारणा फैलाने का काम, समाजवादी पक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य कर रहे हैं । ऐसा वक्तव्य कर वे समाज में फूट डालकर, संघर्ष निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं । इसलिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को उन पर ‘हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करना’, ‘हिन्दुओं के धर्मग्रंथों के विषय में गलतधारणा और द्वेष फैलाना’, इसके साथ ही ‘दो समाज में संघर्ष निर्माण कर देश की एकता संकट में डालना’ इसके लिए अपराध प्रविष्ट कर तुरंत बंदी बनाए जाए ।
बिहार के नालंदा ‘मुक्त विद्यापीठ’के शिक्षामंत्री प्रा. चंद्रशेखर
नालंदा ‘मुक्त विद्यापीठ’के दीक्षांत समारोह में बोलते समय बिहार के शिक्षामंत्री प्रा. चंद्रशेखर ने तुलसीदासजी द्वारा रचित ‘श्रीरामचरितमानस’को ‘द्वेष फैलानेवाला (नफरत फैलानेवाला) ग्रंथ’, ऐसा कहते हुए ‘श्रीरामचरितमानस’ श्रेष्ठ संत द्वारा लिखे पवित्र ग्रंथ का घोर अपमान किया है । इसलिए हिन्दू समाज की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं । इस प्रकरण में उन्होंने इस आक्षेपार्ह वक्तव्य के विषय में क्षमा मांगने से नकार दिया है और अपने के वक्तव्य पर डटे हैं । यह एकप्रकार हिन्दुओं के धर्मग्रंथों का जानबूझकर अनादर कर, उस विषय में समाज में द्वेष फैलाने का प्रकार है । इसलिए हमारी मांग है कि बिहार सरकार तत्काल मंत्रीपद से हटाकर उनपर अपराध प्रविष्ट करे और कठोर कार्यवाही करे ।
इन वक्तव्यों का हिन्दू जनजागृति समिति तीव्र निषेध करती है । हिन्दू देवताओं का ऐसा अनादर करना, यह भारतीय दंडसंहिता के अनुसार अत्यंत गंभीर अपराध है ।
कुल मिलाकर भारी मात्रा में जात-धर्म-पंथ-भाषा आदि के माध्यम से समाज में जानबूझकर फूट डालने का षड्यंत्र रचा जा रहा है । उसमें भी अंग्रेजों की नीति ‘फूट डालो और राज्य करो’ का उपयोग कर विशेषरूप से हिन्दू समाज को तोडने का काम शुरू है । देश की एकता, अखंडता, बंधुता को संकट में डालकर देश की कानून एवं सुव्यवस्था बिगाडी जा रही है । अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर हिन्दुओं के देवी-देवताओं के विषय में आक्षेपार्ह, अश्लील वक्तव्य कर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं आहत कर समाज में तनाव निर्माण किया जा रहा है ।
विद्यमान भारतीय दंड संहिता में ‘धारा 295 (A)’ यह धार्मिक भावना आहत करने के संदर्भ में कानूनी धारा अस्तित्व में है; परंतु दोषियों पर कानूनन कार्यवाही करनी हो, तो राज्यशासन की अनुमति लगती है । सरकार को यदि लगे कि इससे धार्मिक भावना आहत हुईं हैं अथवा कानून-सुव्यवस्था का प्रश्न निर्माण हुआ है, तब ही दोषियों पर कार्रवाई हो सकती है; परंतु ऐसा कभी-कभार ही होता है । इसलिए अपराधियों को दुस्साहस बढता है । इसके परिणामस्वरूप बहुतांशप्रसंग में देवी-देवताओं के अनादर के विषय में कानूनन कार्रवाई करने में अनेक मर्यादाएं आती हैं ।
अत: ऐसी असंख्य घटनाओं में अभिव्यक्ति एवं कला स्वतंत्रता के नाम पर कोई भी कार्रवाई नहीं होती । फिर हिन्दुओं की आहत हुई भावनाओं का क्या ? इसका विचार सरकार करेगी या नहीं ? भारत के संविधान में भी प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, उसके आधार पर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं संजोने की स्वतंत्रता है । समाज में फूट डालनेवाली इन प्रवृत्तियों पर नियंत्रण लाने के लिए उपाय के तौर पर एक कठोर ‘ईशनिंदा विरोधी कानून’की आवश्यकता है । इसलिए शासन ऐसे आक्षेपार्ह वक्तव्य, पुस्तक, नाटक, चलचित्र, विज्ञापन, काव्य, चित्र आदि द्वारा हिन्दू धर्म, धर्मग्रंथ, देवता, संत एवं राष्ट्रपुरुषों का होनेवाला अनादर रोकने के लिए कठोर कानून बनाए, ऐसी मांग हम कर रहे हैं ।
कानून की आवश्यकता दर्शानेवाले कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र और प्रचलित व्यवस्था की त्रुटियां
बारंबार ऐसे प्रसंग हो रहे हैं और उन पर सरकार अथवा पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने के कारण बारंबार ऐसी घटनाएं हो ही रही हैं । अब पुनः यह विषय उठाने का महत्त्वपूर्ण कारण है वर्तमान में विवादित सिद्ध हुई वेबसीरीज ‘तांडव’ और ऐसी वेबसीरीज का खुलकर प्रसारण करनेवाला ‘अमेजन प्राइम’ का ओटीटी प्लेटफॉर्म ! देवताओं का अनादर करना अब एक फैड बन गया है । किंबहुना धर्मनिरपेक्ष कहलवाने की वह एक कसौटी बन गई है । परिणामस्वरूप समाज में असहिष्णुता बढने लगी है । हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मीय इस बाबत अत्यंत जागरूक होने के कारण उनके संबंध में ऐसी घटनाएं अत्यल्प घटती हैं । यदि कुछ होता है, तो पुलिस तुरंत हस्तक्षेप करती है; परंतु हिन्दू धर्म के संबंध में ऐसा कुछ होने पर कार्रवाई होते हुए दिखाई नहीं देती । इसलिए हिन्दू धर्मविरोधी, नास्तिकतावादी, कम्युनिस्ट आदि लोग नित्य ऐसा कर सामान्य हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं पैरों तले रौंद रहे हैं । यह अत्यंत गंभीर है ।
इस पृष्ठभूमि पर भारत में देवताओं का अनादर करनेवालों पर धाक जमे और सामाजिक शांति, धार्मिक सौहार्द्र, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कठोर कानून की आवश्यकता प्रतीत हो रही है । इसलिए हम मांग कर रहे हैं कि इस संदर्भ में दोषियों पर कठोर कार्यवाही करनेवाला ‘ईशनिंदाविरोधी कानून’ बनाया जाए । इस कानून की आवश्यकता दर्शानेवाले कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र और प्रचलित व्यवस्था की त्रुटियां निदर्शन में ला रहे हैं –
१. विद्यमान भारतीय दंड संहिता की ‘धारा २९५(अ)’ में धार्मिक भावनाएं आहत करने के संदर्भ में धारा अस्तित्व में है; परंतु इस धारा के अनुसार दोषियों पर कानूनी कार्यवाही करनी हो, तो राज्यसरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है । यदि सरकार को लगता है कि इस कारण धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं अथवा कानून-व्यवस्था का प्रश्न उत्पन्न हुआ है, तो दोषियों पर कार्यवाही हो सकती है; परंतु ऐसा बहुत कम होता है । इसलिए अपराधियों को अभय मिलता है । परिणामस्वरूप अधिकांश प्रसंगों में देवताओं के अनादर करने के संबंध में कानूनी कार्यवाही करने में मर्यादा आती है ।
पुलिस भी इस संदर्भ में शिकायतें स्वीकार करने में टालमटोल करती है अथवा यदि शिकायत प्रविष्ट करती भी है, तो वह असंज्ञेय प्रविष्ट करते हैं । इसलिए दोषियों को भय नहीं लगता ।
२. वर्तमान में वेबसीरीज के माध्यम से अनेक अयोग्य बातें प्रसारित की जा रही हैं । लॉकडाउन की अवधि में वेबसीरीज की भरमार हो गई है । अत्यंत अश्लील दृश्य, अशोभनीय भाषा-संवाद, अनैतिकता की भरमार, आक्रामक ‘एक्शन सीन’, संस्कृतिहीन पटकथा, देशविरोधी विचारों का उदात्तीकरण, देवताओं का अनादर, सेना का अपमान, झूठे और अतिशयोक्ति से भरी हुई पटकथाओं से समाज को भ्रमित करना आदि अनेक बातों के कारण निरंतर विवादित वेबसीरीज बिना किसी नियंत्रण के प्रसारित हो रही हैं । इससे समाजमन कलुषित हो रहा है । कानून भंग हो रहा है । देशविरोधी भावनाओं का प्रसार हो रहा है । इन पर सेन्सर बोर्ड न होने के कारण वे अनिर्बंध और निडरता से चल रही हैं । इसके लिए भी सेन्सर जैसे तंत्र की आवश्यकता है ।
३. ‘ओ माइ गॉड’, ‘पीके’, ‘बहन होगी तेरी’, ‘पद्मावत’, ‘३ देव अंडरकवर भगवान’ आदि अनेक चलचित्रों में हिन्दू देवताओं का बडी मात्रा में अपमान किया गया है । तब-तब अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने बडी मात्रा में आंदोलन किए, शिकायतें की; परंतु अभी तक यह अनादर नहीं रुका है ।
४. ‘वस्त्रहरण’, ‘बिघडले स्वर्गाचे दार’, ‘यदा-कदाचित’ आदि नाटक तो केवल देवताओं का उपहास करने के कारण ही बहुत प्रसिद्ध हुए । उनके विरोध में भी अनेक शिकायतें होकर भी कार्यवाही नहीं हुई । इसलिए अभी भी व्यवसायिक ही नहीं, विविध स्तरों के नाटकों में देवताओं का खुलकर अपमान हो रहा है ।
५. कुछ वर्षों पूर्व केरल के वामपंथी विचारधारा की प्रा. दुर्गा मलाठी ने स्वयं के फेसबुक खाते पर करोडों हिन्दुओं के आस्थाकेंद्र भगवान शिव, त्रिशूल और अन्य आस्थाकेंद्रों का पुरुष के लिंग के स्वरूप में चित्र बनाकर प्रसारित किया था । उनके विरोध में विभिन्न स्थानों पर शिकायतें प्रविष्ट की गईं; परंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई; क्योंकि उन चित्रों में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, ऐसा पुलिस ने बताया ।
६. हिन्दूद्रोही चित्रकार म.फि. हुसेन ने तो हिन्दू देवताओं के अनेक अश्लील एवं आपत्तिजनक चित्र बनाए, अनेक देवी-देवताओं को नग्न रूप में चित्रित किया, भारतमाता का भी नग्न चित्र बनाया; उनपर १२०० से अधिक परिवाद (शिकायतें) किए गए; ४ स्थानों पर एफआईआर दर्ज हुए, फिर भी उनपर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई । इससे संवैधानिक मार्ग से एवं लोकतंत्र द्वारा दिए गए संविधान प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करके भी कुछ साध्य नहीं होता, यह उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट हुआ । हुसेन ने अंत में भारत के बाहर पलायन किया और कतार की नागरिकता ली, उनका अंत भी वहीं हुआ; परंतु उनपर कुछ भी कार्रवाई नहीं हुई ।
७. विविध उत्पादों के प्रसार के लिए बनाए जानेवाले विज्ञापनों में भी देवताओं का उपयोग किया जाता है, निंदा की जाती है, देवताओं का अनादर होगा, ऐसे वक्तव्य खुले आम किए जाते हैं । उदा. ‘झंडू बाम’, ‘टीवीएस’ आदि द्वारा ऐन गणेशोत्सव में श्री गणेश का अनादर किया गया था । उनपर भी कोई भी कार्रवाई नहीं हुई ।
८. विद्रोही काव्य सम्मेलनों में देवताओं का अनादर करनेवाली कविताएं पढी जाती हैं, विद्रोही लेखक देवताओं के विषय में अत्यंत निचले स्तर का लेखन कर देवताओं का अनादर करते हैं, वह सोशल मीडिया में बडी मात्रा में वायरल होती हैं । विविध हिन्दूविरोधी लेखक देवता एवं संतों का अनादर करनेवाली पुस्तकें प्रकाशित कर समाज का धार्मिक वातावरण कलुषित करने का प्रयत्न करते हैं, इस बारे में भी अनेक परिवाद प्रविष्ट हुए होंगे, तब भी किसी पर भी कोई भी कार्रवाई अब तक नहीं हुई है ।
इसके विपरीत अन्य धर्मीयों की भावनाएं आहत करनेवाली एक भी घटना घटित हो, तो कार्यवाही होती है, यह वास्तव है । उदा. ‘मुहम्मद द मेसेंजर’ नामक आगामी चलचित्र आने से पहले ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने उस पर प्रतिबंध लगाने की केंद्र के पास मांग की; ‘विश्वरूपम्’ चलचित्र मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत करनेवाला है, इसलिए तमिलनाडु सरकार द्वारा उस पर प्रदर्शन से पूर्व ही प्रतिबंध लगाया गया; ‘द दा विंची कोड’ चलचित्र ईसाईयों की धार्मिक भावनाएं आहत करनेवाला है, यह कहकर गोवा सरकार ने उसके प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाया; अनेक चलचित्रों पर अन्य धर्मीयों द्वारा आक्षेप लेने पर प्रदर्शित हुए चलचित्र पीछे लेकर उसमें परिवर्तन किए गए; परंतु हिन्दुओं ने कितना भी विरोध किया, फिर भी अब तक एक भी चलचित्र पर प्रतिबंध नहीं लगा अथवा प्रदर्शित हुआ चलचित्र पीछे नहीं लिया गया । इन सभी प्रसंगों के कारण हिन्दू समाज में हिन्दुओं पर अन्याय हो रहा है, ऐसी भावना प्रबल होती जा रही है । यह भावना बढकर उसका क्षोभ होने की राह शासन न देखे ।
उपरोल्लेखित कुछ घटनाएं हिमनग कर एक सिरा है । प्रत्यक्ष में देवताओं के उपहास की सैकडों घटनाएं विभिन्न माध्यमों से घटित होती हैं । अभिव्यक्ति स्वतंत्रता एवं कला स्वतंत्रता के नाम पर धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात किया जा रहा है । संविधान के ही कुछ शब्दों का उपयोग कानूनी कार्यवाही से बचने के लिए किया जाता है और हिन्दुओं की श्रद्धा पर आघात किया जा रहा है । यह अत्यंत गंभीर और संविधान विरोधी है । संविधान ने अभिव्यक्ति स्वतंत्रता दी है, फिर भी अन्य किसी की भावनाएं आहत न करने की मर्यादा भी संविधानकर्ताओं ने ही डालकर दी है । आज कानून का भय न होने के कारण अनेक लोग इस प्रकार देवताओं का उपहास करने का साहस कर रहे हैं । इसलिए शीघ्रातिशीघ्र शासन नाटक, चलचित्र, विज्ञापन, वेबसीरीज, काव्य, व्याख्यान, लेखन, चित्र आदि द्वारा हो रहा देवताओं का अनादर रोकने के लिए ‘ईशनिंदाविरोधी कानून’ बनाए और केवल संबंधित व्यक्तियों के विरुद्ध ही नहीं, अपितु उसका प्रसारण करनेवालों पर भी कठोर कार्रवाई की व्यवस्था इस कानून में हो, ऐसी मांग हम कर रहे हैं । यदि ऐसा कानून नहीं बना, तो समाजमन का उद्वेग होने की संभावना नाकारी नहीं जा सकती । अतः आप हमारी धार्मिक भावनाओं की ओर निश्चित ही ध्यान देकर उचित कार्रवाई करेंगे, ऐसा विश्वास है ।