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अंकोर वाट : राजा सूर्यवर्मन (दूसरा) द्वारा निर्मित विश्‍व का सबसे बडा हिन्दू मंदिर !

अंकोर वाट मंदिर का विशाल परिसर

हिन्दुआें की गौरवशाली धरोहर अंकोर वाट मंदिर ! परमविष्णुलोक के नाम से भी कहे जानेवाले इस मंदिर का भावपूर्ण दर्शन करते हैं !

१. हिन्दू राजा यशोवर्मन द्वारा स्थापित अंकोर नगर का नाम यशोधरपुरा होना, आगे जाकर उसी वंश के राजा सूर्यवर्मन (दूसरा) द्वारा नगर के मध्यभाग में विशाल भगवान श्रीविष्णुजी के परमविष्णुलोक मंदिर का निर्माण किया जाना

हिन्दुआें का विश्‍व में सबसे बडा मंदिर हिन्दूबहुसंख्यक भारत में न होते हुए वह कंबोडिया में है । इस मंदिर का नाम है ‘अंकुर वाट !’ मंदिर के दर्शन के लिए हम २५ मार्च को सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ कंबोडिया की राजधानी नोम फेन से विमान से उत्तर कंबोडिया में स्थित सीम रीप नगर पहुंचे । सीम रीप नगर से ६ कि.मी. की दूरीपर यह मंदिर है । मंदिर और उसका परिसर देखने के लिए संपूर्ण एक दिन लगता है ।

९वीं शताब्दी में हिन्दू राजा यशोवर्मन द्वारा स्थापित यह अंकोर नगरी है, जिसका उस समय का नाम ‘यशोधरपुरा’ था । आगे जाकर उसी वंश के राजा सूर्यवर्मन (दूसरा) ने इस नगर के मध्यभाग में भगवान श्री विष्णु का विशाल मंदिर बनवाया । उस मंदिर का मूल नाम था ‘परमविष्णुलोक !’ अब स्थानीय भाषा में उसका नाम ‘अंकोर वाट’ है । अंकोर का अर्थ नगर और वाट का अर्थ वाटिका ! यह मंदिर नगर के मध्यभाग में होने के कारण यह नाम पडा होगा । उस समय हिन्दू राजाआें में यह भाव था कि यह मंदिर विष्णुलोक है और राजा श्रीविष्णुजी का दास होता है तथा वह प्रजा का पालन करता है । इसके अतिरिक्त प्रजा में भी यह भाव बसता था कि राजा विष्णुस्वरूप होता है ।

२. अंकोर वाट मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के मध्यभाग में अष्टभुजावाली श्रीविष्णुजी की मूर्ति, बाईं ओर श्री ब्रह्माजी तथा दाहिनी ओर भगवान शिवजी की मूर्ति का होना

अंकोर वाट मंदिर परिसर का कुल विस्तार ४०२ एकड का विशाल परिसर है । यह मंदिर चारों बाजूआें से पानी से घेरा हुआ है और उसमें २० फीट गहराईवाली खाईयां हैं । मंदिर की पश्‍चिम दिशा की खाईपर निर्मित एक बडे पुल से २०० मीटर पैदल जानेपर मुख्य प्रवेशद्वार है । उसपर मध्यभाग में श्रीविष्णुजी की अष्टभुजा मूर्ति, बाईं ओर श्री ब्रह्माजी की, तो दाहिनी ओर भगवान शिवजी की मूर्ति है । मुख्य प्रवेशद्वार के बाईं ओर तथा दाहिनी ओर २ बडे द्वार हैं, जिन्हें हाथीद्वार कहा जाता है । इस द्वार से हाथियों को ले जाया जाता था ।

अंकोर वाट मंदिर की बाईं ओर स्थित शिव-ब्रह्म ग्रंथालय’
अंकोर वाट मंदिर की दाईं ओर स्थित शिव-विष्णु ग्रंथालय

३. मंदिर परिसर में शिव-ब्रह्म ग्रंथालय तथा शिव-विष्णु ग्रंथालय का होना, उस समय ग्रंथालयों में भक्तों के लिए वेद, वेदों से संबंधित ग्रंथ तथा उपासना से संबंधित सभी पुस्तकों का अध्ययन हेतु प्रबंध किया जाना

मुख्य प्रवेशद्वार से और १०० मीटर आगे पैदल जानेपर बाईं ओर १ और दाहिनी ओर १, ऐसे २ ग्रंथालय हैं । बाईं बाजू के ग्रंथालय को शिव-ब्रह्म ग्रंथालय, तो दाहिनी बाजू के ग्रंथालय को शिव-विष्णु ग्रंथालय कहा जाता है । उस समय में इन दोनों ग्रंथालयों में भक्तों के लिए वेद, वेदों से संबंधित अन्य ग्रंथ तथा मंदिर की उपासना से संबंधित पुस्तक अध्ययन के लिए रखे जाते थे । संक्षेप में कहा जाए, तो यह स्थान एक वेदपाठशाला और गुरुकुल ही था ।

४. मंदिर के निकट श्रीविष्णुजी की विशाल मूर्ति का लुटेरों द्वारा तोडे गए सिर को दैवीय संचार होनेवाले व्यक्ति द्वारा बताए जानेपर पूर्ववत बिठानेवाली कंबोडिया की सरकार !

वर्ष १९८४ में कुछ लुटेरों ने श्रीविष्णुजी की मूर्ति का सिर तोड दिया और उस सिर को वर्ष २००४ तक संग्रहालय में रखा गया था । वर्ष २००४ में इस मूर्ति का सिर पुनः बिठाया गया और उसके पश्‍चात यहां आनेवाले पर्यटकों की संख्या बढ गई । कंबोडिया सरकार किसी आध्यात्मिक अधिकारवाले व्यक्तिद्वारा बताए जानेवाले उपाय तुरंत करती है; परंतु भारत में निधर्मीवाद के नामपर संत-महंतों द्वारा बताए जानेवाले उपायों की उपेक्षा की जाती है, यह भारत सरकार के लिए लज्जाप्रद है !

भारत में यदि ऐसा कुछ किया गया, तो आधुनिकतावादी उस व्यक्ति को तुरंत कारागृह में डालने की मांग किए बिना नहीं रहेंगे । प्रत्येक बात के पीछे विद्यमान अध्यात्मशास्त्र को जान लेना जाहिए, साथ ही राष्ट्रहित के लिए क्या आवश्यक है ?, इसका विचार केवल सरकार को ही नहीं, अपितु सभी को करना चाहिए । तभी वास्तव में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।

अंकोर वाट मंदिर में अष्टभुजा श्रीविष्णुजी का दर्शन करते हैं !

‘अंकोर वाट’ मंदिर के पश्‍चिम द्वार की बाजू में स्थित मुख्य प्रवेशद्वारपर स्थित ३ गोपुरों में से दाहिनी बाजू के गोपुर में आज भी श्रीविष्णुजी की विशाल अष्टभुजा मूर्ति है । स्थानीय जानकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष १८८० में यहां खुदाई करनेवाले फ्रान्स के पुरातत्व विभाग को यह मूर्ति मिली । वर्ष १९८४ में कंबोडिया में हुए नागरी युद्ध (सिविल वॉर) के समय कुछ लुटेरों ने इस मूर्ति का सिर तोडकर उसे ले जाने का प्रयास किया । इस आक्रमण में यह सिर भूमिपर गिर गया; परंतु आश्‍चर्य की बात यह कि उन लुटेरों को मूर्ति का सिर भूमि से उठाना संभव नहीं हुआ; इसलिए वे उस सिर को वही छोडकर चले गए । आगे जाकर वर्ष २००४ तक इस सिर को यहां के संग्रहालय में रखा गया था ।

अंकोर वाट मंदिर में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है । ऐसे ही एक वार्षिक उत्सव में शरीर में दैवीय संचार होनेवाले एक व्यक्ति ने बताया कि यहां की श्रीविष्णुजी की मूर्ति का सिर पुनः यथास्थिति में बिठाना होगा । बिनासिरवाली मूर्ति वैसी ही खडी होने से राष्ट्रपर देवता की अवकृपा हुई है । अतः स्थानीय नागरिकों की मांग के अनुसार कंबोडिया सरकार ने श्रीविष्णुजी की मूर्ति का सिर मूर्ति के धडेपर पुनः बिठा दिया और उसके अगले ही वर्ष अर्थात वर्ष २००५ में कंबोडिया में २० लाख पर्यटक आए । उससे पहले पर्यटकों की संख्या बहुत अल्प थी । स्थानीय नागरिकों में यह श्रद्धा है कि मूर्ति का सिर पुनः बिठाए जाने से सबकुछ अच्छा होना प्रारंभ हुआ ।

अंकोर वाट मंदिर की विशालता को दर्शानेवाले रेखाचित्र ! इस रेखाचित्र से मंदिर के परिसर की व्यापकता ध्यान में आती है ।

५. मंदिर के चारों प्रांगणों की दीवारोंपर अनेक शिल्पों का अंकित किया जाना

मंदिर परिसर में स्थित ग्रंथालय के आगे २०० मीटर पैदल चलनेपर मुख्य मंदिर आता है । यह मंदिर का पश्‍चिम द्वार है । यहां मंदिर का पहला प्राकार (प्रांगण) आरंभ होता है । इस प्राकार की चारों बाजुआें में ४ प्रांगण हैं । इन चारों प्रांगणों की दीवारें तथा ४ कोने, साथ ही चारों दिशाआें में स्थित ४ प्रवेशद्वारों की दीवारोंपर देवताआें के अनेक शिल्प अंकित किए गए हैं । इन शिल्पों में विद्यमान देवताआें के आभूषणों की नक्काशी अत्यंत विशेषतापूर्ण है । उसमें विविध प्रकार की केशरचनाएं भी देखने के लिए मिलती हैं । प्रवेशद्वारोंपर अलग-अलग फूलों की नक्काशी अंकित की गई हैं । प्रत्येक प्रवेशद्वार, साथ ही गर्भगृह की सीढीयां सामान्य पद्धति वक्राकार न होकर खडी हैं । उस समय के लोग प्रतिदिन मंदिर में जाकर पूजा कैसे करते होंगे ?, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । मंदिर निर्माण के लिए लाखों बडे पत्थरों का उपयोग किया गया है । ये सभी पत्थर वहां से ७० कि.मी. की दूरीपर स्थित महेंद्र पर्वत से नदी के मार्ग से लाए गए हैं, ऐसा मार्गदर्शक ने बताया ।

गर्भगृह में जाने के लिए पहले की सीढीयां । इन सीढीयों की विशेषता यह कि वो खडे आकार में हैं । (छायाचित्र क्र. १)

६. अंकोर वाट मंदिर की चारों बाजुएं तथा उनपर अंकित शिल्प

अ. दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) कोना : यहां की शिल्पो में समुद्रमंथन का दृश्य, यम द्वारा दंडित किए जाने का, साथ ही स्वर्ग एवं नरक के दृश्य अंतर्भूत हैं ।

आ. मंदिर का दक्षिण-पश्‍चिम कोना (नैऋत्य) : यहां अनेक शिल्प अंकित किए गए हैं । उनमें श्रीकृष्णजी की लीलाएं, वाली का वध करते हुए श्रीरामजी, रावण द्वारा कैलास पर्वत को उठाते समय का प्रसंग, समुद्रमंथन का दृश्य, प्रभु श्रीरामजी द्वारा मारिच राक्षस का पीछा करते समय का दृश्य, दक्षिणामूर्ति के रूप में भगवान शिवजी का शिल्प, गोवर्धन पर्वत को उठाते हुए श्रीकृष्णजी, कामदेव का वध करते हुए भगवान शिवजी, ध्यानस्थ भगवान शिवजी, वैकुंठलोक में भगवान अन्य देवताआें से स्तुति सुनते हुए श्रीविष्णुजी जैसे अनेक शिल्प हैं ।

इ. पश्‍चिम-उत्तर (वायव्य) कोना : बाणासुरपर विजय प्राप्त करते हुए श्रीकृष्णजी, साथ ही युद्ध में असुरोंपर विजय प्राप्त करते हुए श्रीविष्णुजी, जैसे दृश्योंवाले शिल्प हैं ।

ई. उत्तर-पूर्व (ईशान्य) कोना : सीताजी की अग्निपरीक्षा, रावणवध के पश्‍चात प्रभु श्रीरामजी के अयोध्या लौटने के समय; राम-लक्ष्मण तथा विभीषण के संवाद के समय, हनुमानजी द्वारा सीताजी को श्रीरामजी द्वारा दी गई अंगूठी सौंपते समय, शेषपर लेटे हुए श्रीविष्णुजी के पास अपनी समस्याएं रखते हुए देवता तथा देव-असुर युद्ध, राम एवं लक्ष्मण सुग्रीव से संवाद करते हुए, राम-लक्ष्मण का कबंध नामक असुर के साथ युद्ध करते समय, सीता स्वयंवर जैसे अनेक शिल्प यहां अंकित किए गए हैं ।

७. ‘अंकोर वाट’ मुख्य मंदिर तथा गर्भगृह

गर्भगृह में जाने के लिए बहुत ऊंची-ऊंची सीढीयां चढनी पडती हैं । अब वहां जाने के लिए बनाई गई सीढीयां !

अंकोर वाट मंदिर के दूसरे प्रांगण से अंदर जाकर उपर चढना पडता है, तब हम अंतिम प्रांगण में पहुंच जाते हैं । वहां ५ गोपुरों जैसा शिखरवाला मुख्य मंदिर दिखाई देता है । ये ५ शिखर पवित्र मेरू पर्वत के ५ शिखर हैं । (हमारे गाईड ने हमें बताया कि अंकोर वाट मुख्य मंदिर के ५ शिखर, मंदिर की चारों बाजुआें में स्थित ४ शिखर तथा मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार में स्थित ३ शिखरों को मिलाकर कुल १२ शिखर होते हैं तथा वो १२ ज्योतिर्लिंग के प्रतीक हैं । मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के पास स्थित ये ३ शिखरों का आज अस्तित्व नहीं है ।) इन ५ शिखरोंवाले मंदिर के मध्यभाग में गर्भगृह है । ५वां शिखर गर्भगृह के उपर है । गर्भगृह में जाने हेतु बहुत ही ऊंची-ऊंची सीढीयां चढनी पडती हैं । (छायाचित्र क्र. १ देखें ।) गर्भगृह से हमें पश्‍चिम में ७५० मीटर दूरीपर स्थित मुख्य प्रवेशद्वार दिखाई देता है । गर्भगृह से मंदिर की विशालता तथा मंदिर परिसर का जो बहुत बडा विस्तार दिखाई देता है, उसका हम शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते ।

८. खमेर साम्राज्यपर किए गए विदेशी आक्रमण का प्रतीक बना अग्नेयास्र की गोलीयां झेल चुका कंबोडिया के अंकोर वाट का शिल्प !

अग्नेयास्र से छूटी गोलियों को झेल चुका अप्सरा का शिल्प ।

अभीतक कंबोडिटापर अनेक साम्राज्यों ने आक्रमण किए हैं । कंबोडिया के बाजू में स्थित श्याम देश (आज का थाईलैंड) तथा चंपा देश (आज का विएतनाम) ने खमेर राजाआें के अहंकार तथा आंतरिक कलह का लाभ उठाकर अनेक बार खमेर साम्राज्यपर आक्रमण किए हैं । १५वीं शताब्दी में यह साम्राज्य नष्ट हुआ । १२वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दीतक यहां के शिल्पों ने भी कई आक्रमण झेले हैं । इसका एक उदाहरण है अंकोर वाट के मंदिर में अग्नेयास्र से छूटी गोलियों को झेल चुका अप्सरा का शिल्प ।’

– श्री. विनायक शानभाग (मार्च २०१८)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात