रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थान पर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी । २३ सहस्र ३०० वर्ष पूर्व राजा अशोक की सुपुत्री संघमित्रा के कारण श्रीलंका में बौद्ध पंथ का प्रवेश हुआ । आज वहां के ७० प्रतिशत लोग बौद्ध हैं । ऐसा होते हुए भी श्रीलंका में श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण से संबंधित अनेक स्थान हैं । वाल्मिकी रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने जो लिखा, उसके अनुसार ही आगे घटित हुआ, इसके श्रीलंका में अनेक प्रमाण मिलते हैं । श्रीलंका में श्रीराम, सीता, हनुमानजी, लक्ष्मण, रावण तथा मंदोदरी से संबंधित अनेक स्थान, तीर्थ, गुफाएं, पर्वत तथा मंदिर हैं । भक्त तथा कुछ आध्यात्मिक संस्थाआें द्वारा उनमें से ४७ स्थानों की जानकारी खोजी गई है । ‘इन सभी स्थानों की जानकारी मिले तथा संपूर्ण विश्व के हिन्दुआें को उसे बताया जाए’, इसके लिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ ४ छात्र-साधकों ने १ मास (महिना)तक श्रीलंका की यात्रा की । ऐसा कहा जा सकता है कि यह यात्रा रामायण से संबंधित अध्ययनयात्रा थी । ये जानकारी यहां प्रस्तुत कर रहे है ।
वनवास की कालावधि में रावण द्वारा सीतामाता का अपहरण कर उन्हें लंका ले आने पर महारानी मंदोदरी के महल में रखा । गुरुलूपोथा गांव से डेढ कि.मी. अंदर अरण्य में महारानी मंदोदरी का महल है । स्थानीय लोग महारानी मंदोदरी के महल को ‘सीता कोटुवा’ कहते हैं ।
रावण द्वारा निर्मित इस गुफा के अंदर जानेपर तीव्र दबाव प्रतीत हुआ, मितली आने लगी और सिर में वेदना होने लगी । त्रेतायुग में रावण का राज्य था । इसका अर्थ इस घटना को अब लाखों वर्ष बीत गए; परंतु रावण द्वारा निर्मित प्रत्येक बातों में उसी प्रकार के तरंग प्रतीत होते हैं ।
‘नुवारा एलिया’ नगर के एक क्षेत्र में वर्ष १९७० में मुरुगेसू सिद्धर् नामक संत द्वरा स्थापित किया हुआ ‘गायत्रीपीठ’ नामक एक आध्यात्मिक आश्रम है । इस आश्रम के अंदर ‘श्रीलंकाधीश्वर’ नामक शिवजी का मंदिर तथा गायत्रीदेवी का मंदिर है । ऐसा कहा जाता है कि गायत्रीपीठवाली यह भूमि रावणपुत्र मेघनाद की तपश्चर्या भूमि है ।
अशोक वाटिका के ३५ कि.मी. पहले हनुमानजी, जहां विश्राम के लिए रुके थे, वह स्थान है आज का रामबोडा पर्वत ! यहां हनुमानजी कुछ समय श्रीरामजी का स्मरण करते हुए ध्यान लगाए बैठे थे । रावण की सेना ने रामबोडा पर्वत के सामनेवाले पर्वत पर अपना शिविर लगाया । इसलिए उसे रावणबोडा पर्वत कहा जाता है ।
वाल्मिकी रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने जो लिखा, उसके अनुसार घटनाएं होने के श्रीलंका में अनेक प्रमाण हैं । सीतामाता दी गई अग्निपरीक्षा दिया गया स्थान, ऐसा ही एक स्थान है । यह स्थान जिस गांव में है, उस गांव का नाम है दिविरुंपोला !
नदीतट पर स्थित राम, लक्ष्मण तथा सीता मंदिर के पीछे घना अरण्य है । वहां पर स्थित अनेक वृक्षों में से सबसे विशेष वृक्ष है ‘अशोक वृक्ष’ ! केवल उसकी ओर देखते ही भाव जागृत करनेवाला यह अरण्य सीतामाता के चरणस्पर्श से पवित्र बनी ‘अशोक वाटिका’ है । अशोक वाटिका की यह विशेषता है कि वहां की मिट्टी काली और राख की भांति है ।