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सीतामाता तथा हनुमानजी के पदस्पर्श से पवित्र – श्रीलंका की अशोक वाटिका !

सीतामाता तथा हनुमानजी के पदस्पर्श से पवित्र तथा केवल दर्शनमात्र से ही भाव जागृत करनेवाली श्रीलंका की अशोक वाटिका !

सीता नदी के तटपर निर्मित राम, लक्ष्मण तथा सीता का मंदिर और उसके पीछे अशोक वाटिका

१. श्रीलंका के पर्वतीय क्षेत्र में ‘सीता एलिया’ गांव में सीता नदी के तट पर निर्मित राम, लक्ष्मण तथा सीता का मंदिर !

श्रीलंका एक द्वीप है । इस देश के मध्यभाग में ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं । श्रीलंका के भूभाग का विभाग राज्यों के स्थान पर प्रांतों में किया गया है । यहां कुल ९ प्रांत हैं, जिसके मध्य प्रांत में सुंदर पर्वत है । वहां ‘नुवारा एलिया’ नामक एक नगर है, जो समुद्रतल से ६ सहस्र २०० फुट की ऊंचाई पर है । यहां से ५ कि.मी. की दूरीपर ‘सीता एलिया’ गांव है । यहां की नदी का नाम ‘सीता’ नदी है । इस नदी के तट पर ३ सहस्र वर्ष पुरानी राम, लक्ष्मण तथा सीता की मूर्तियां हैं । तदुपरांत यहां मंदिर का निर्माण हुआ ।

२. सीतामाता के चरणस्पर्श से पवित्र ‘अशोक वाटिका’ !

नदीतट पर स्थित राम, लक्ष्मण तथा सीता मंदिर के पीछे घना अरण्य है । वहां कोई नहीं जाता । स्थानीय लोगों को भी वहां जाने की अनुमति नहीं है । इस अरण्य (वन) में जाने का मार्ग भी कठिन है । वहां पर स्थित अनेक वृक्षों में से सबसे विशेष वृक्ष है ‘अशोक वृक्ष’ ! केवल उसकी ओर देखते ही भाव जागृत करनेवाला यह अरण्य सीतामाता के चरणस्पर्श से पवित्र बनी ‘अशोक वाटिका’ है । स्थानीय तमिल हिन्दू अशोक वाटिका को ‘अशोक वनम्’ कहते हैं ।

३. हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका जला देने से वहां की मिट्टी का रंग काला अथवा राख की भांति होना

हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका को जला देने से राख की भांति दिखाई देनेवाली काली मिट्टी

वाल्मिकी रामायण में ‘रामायण के युद्ध के पश्‍चात हनुमानजी ने अशोक वाटिका को जला दिया’, ऐसा उल्लेख मिलता है । अशोक वाटिका की यह विशेषता है कि वहां की मिट्टी काली और राख की भांति है । सीता नदी के उस पार अर्थात अशोक वाटिका की सामने की दिशा में लाल मिट्टीवाली भूमि है । कुल मिलाकर संपूर्ण श्रीलंका में ही सर्वत्र लाल रंग की मिट्टी पाई जाती है ।

४. शोक कर रही सीतामाता को माता का प्रेम प्रदान कर उनके शोक को दूर करनेवाला ‘अशोक वृक्ष’ !

अशोक वृक्ष में आनेवाला लाल रंग का सीता फूल !
सीता का शोक दूर करनेवाले अशोक वृक्ष की नसें स्पष्ट दिखानेवाले पत्ते

वाटिका में जानेपर ‘अशोक वृक्ष’ ध्यान आकर्षित कर लेते हैं । उनके पत्तों में नसें स्पष्टता से दिखाई देती हैं । इस पत्ते को हाथ में लेनेपर ‘शरीर में चैतन्य प्रवेश कर रहा है’, ऐसा प्रतीत होता है । वर्ष में २ बार इन वृक्ष को लाल रंग का फूल आता है, उसे ‘सीता फूल’ कहते हैं । शोक करनेवाली सीतामाता को माता की भांति प्रेम प्रदान कर इस वृक्ष ने उनका शोक दूर किया; इसलिए इस वृक्ष को ‘अशोक वृक्ष’ कहते हैं ।

– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी (९.६.२०१८)

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात