१. गायत्रीपीठ : संत मुरुगेसू सिद्धर् द्वारा स्थापित तथा श्रीलंकाधीश्वर नामक शिवजी तथा गायत्रीदेवी के मंदिरवाला आश्रम
‘नुवारा एलिया’ नगर के एक क्षेत्र में वर्ष १९७० में मुरुगेसू सिद्धर् नामक संत द्वरा स्थापित किया हुआ ‘गायत्रीपीठ’ नामक एक आध्यात्मिक आश्रम है । इस आश्रम के अंदर ‘श्रीलंकाधीश्वर’ नामक शिवजी का मंदिर तथा गायत्रीदेवी का मंदिर (छायाचित्र क्र. १ देखें ।) है । ऐसा कहा जाता है कि गायत्रीपीठवाली यह भूमि रावणपुत्र मेघनाद की तपश्चर्या भूमि है । श्रीराम-लक्ष्मण के साथ युद्ध के लिए जाने से पहले रावणपुत्र मेघनाद तपश्चर्या करने बैठता है । वह भगवान शिवजी की उपासना करता है । युद्ध में जाने से एक दिन पहले शिवजी जहां प्रकट हुए थे, उसी स्थानपर आज का श्रीलंकाधीश्वर मंदिर है ।
२. नर्मदा नदी से किसी अज्ञात द्वारा चोरी कर जर्मनी ले जाए हुए
१०८ बाणलिंगों को संत मुरुगेसू सिद्धर् द्वारा श्रीलंका लाकर उनको गायत्रीपीठ में रखा जाना
गायत्री पीठ के संस्थापक संत मुरुगेसू सिद्धर्जी को उनके जर्मनी स्थित भक्तों से यह जानकारी मिली कि नर्मदा नदी से अज्ञात व्यक्ति द्वारा १०८ बाणलिंगों को चुराकर जर्मनी ले जाया गया है । इसके पश्चात संत मुरुगेसू सिद्धर् ने जर्मन सरकार की सहायता से इन सभी बाणलिंगों को श्रीलंका लाकर उन्हें गायत्रीपीठ में रखा ।
३. संत मुरुगेसु सिद्धर् की समाधि
वर्ष २००७ में मुरुगेसु सिद्धर्जी ने अपना शरीर त्याग दिया । इस स्थानपर उनकी समाधि बनाई गई है । (छायाचित्र क्र. २ देखें ।) संत मुरुगेसू महर्षि द्वारा महासमाधि लेने से आगे जाकर उनके भक्त इन बाणलिंगों की प्रतिष्ठापना करनेवाले हैं । इस स्थानपर मुरुगेसू महर्षिजी को सिद्ध पुरुषों और हिमालय के तपस्वियों द्वारा प्राप्त बहुमूल्य वस्तुआें का जतन किया गया है ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात