श्रीलंका के मध्य प्रांत में ऊंचे-ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में स्थित ‘नुवारा एलिया’ नगर से ५१ कि.मी. की दूरी पर ‘एल्ला’ नामक छोटा नगर है । इस नगर को ‘रावण एल्ला’ भी कहते हैं । यहां रावण से संबंधित कुछ स्थान हैं ।
१. रावणा फॉल्स
एल्ला नगर से २ कि.मी. की दूरी पर ‘रावणा फॉल्स’ नामक एक जलप्रपात है । उसे यहां के लोक रावणा फॉल्स कहते हैं । (छायाचित्र क्र. १ देखें ।) थोडी दूरी पर स्थित गुफा को ‘रावण की गुफा’ कहते हैं । ये जलप्रपात और गुफा पर्वतीय क्षेत्र में हैं ।
रावण गुफा के प्रवेश द्वार के स्थान पर पत्थर पर अंकित राक्षस का बडा मुख, साथ ही गुफा के अंदर अनेक पत्थरों पर अंकित भयानक मुख हैं ।
२. रावण द्वारा अपनी मायावी शक्ति से विभिन्न नगर बसाए
जाना तथा इन नगरों तक पहुंचने के लिए पहाड से सुरंगों द्वारा मार्ग बनाए जाना
रावण अनेक विद्याआें में निपुण था । वह एक शक्तिशाली असुर होने से उसके पास मायावी शक्ति थी । रावण ने अपनी मायावी शक्ति से लंका की प्रजा पर राज्य किया । उसने अपनी मायावी शक्ति से प्रजा के लिए विविध नगर बसाए थे । इन नगरोंतक पहुंचने के लिए पहाडों में सुरंगों द्वारा मार्ग बनाए थे । ये सुरंगें इतनी चौडी थीं कि एक ही समय में ४ बैलगाडियां जा सकें । एक सुरंग में प्रवेश करने पर अंदर उसकी अनेक शाखाएं थीं तथा अलग-अलग स्थानों को जाने के लिए अलग-अलग मार्ग थे । युद्ध के समय छिपने के लिए भी इन सुरंगों का उपयोग किया जाता था ।
३. रावण की गुफा
अ. गुफा के अंदर ३०० फुट के आगे जाने पर प्रतिबंध होना तथा गुफा के प्रवेश द्वार के स्थान पर राक्षस का बडा मुख अंकित होना
इस गुफातक पहुंचने के लिए ७०० सीढियां चढनी पडती हैं । (छायाचित्र क्र. २ देखें ।)
इन सीढियों को चढकर पार करने के पश्चात हम गुफा के प्रवेशद्वार तक पहुंच जाते हैं । इस गुफा के प्रवेशद्वारा की ऊंचाई ३ मंजिला इमारत जितनी है । प्रवेशद्वार के सामने पहुंचनेपर उसके अंदर इतनी बडी सुरंग हो सकती है, ऐसा नहीं लग रहा था । (छायाचित्र क्र. ३ देखें ।)
रावण द्वारा निर्मित इस गुफा के अंदर हम २०० मीटरतक ही जा सकते हैं । उसके आगे जाने के लिए प्रतिबंध है । वहां प्रशासन ने बडी शिला रखकर प्रवेश को रोक दिया है । स्थानीय लोगों ने बताया कि अब इस गुफा में चमगादड, हिंस्र प्राणी तथा विषैले सांप होते हैं । गुफा के प्रवेशद्वार के स्थानपर पत्थरपर राक्षस का बडा मुख अंकित हुआ है । गुफा के अंदर अनेक पत्थरोंपर भयानक मुख तथा आंखें अंकित हैं, जो ऐसी प्रतीत होती हैं मानो हम पर ही दृष्टि गढाए हैं । (छायाचित्र क्र. ४ तथा ५ देखें ।)
आ. गुफा के अंदर जानेपर हुए अनुभव
१. गुफा के अंदर जानेपर तीव्र दबाव प्रतीत हुआ, मितली आने लगी और सिर में वेदना होने लगी । हम सभी जब तक गुफा में थे प्रभु श्रीरामचंद्र की जय जयघोष कर रहे थे । जयघोष करते समय हमारे शरीरपर रोमांच उठ रहे थे । २. अनेक स्थानीय लोग भी वहां जाने से घबराते हैं । हमे श्रीरामजी की कृपा से एक अच्छा मार्गदर्शक (गाईड) मिला, जिससे हमें गुफा में प्रवेश करना सरल हुआ । वह कहने लगा, यहां आनेवाले लोग इस स्थान पर १० मिनट के लिए भी नहीं रुकते । कुछ लोग तो प्रवेशद्वार से ही वापस लौट जाते हैं ।
३. त्रेतायुग में रावण का राज्य था । इसका अर्थ इस घटना को अब लाखों वर्ष बीत गए; परंतु रावण द्वारा निर्मित प्रत्येक बातों में उसी प्रकार के तरंग प्रतीत होते हैं । गुफा में जानेपर हमें तीव्रता से प्रतीत हुआ कि गुरुकृपा का कवच हमारी निरंतर रक्षा कर रहा है । हमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति अपार कृतज्ञता प्रतीत हुई ।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात