श्रीलंका में सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान की गुुरुमाता की कृपा से संपन्न अविस्मरणीय यात्रा !
१. श्रीलंका के मध्य प्रांत में अत्यधिक ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में सीतामाता
द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा का स्थान था तथा इस स्थान के विषय में किसी को भी जानकारी न होना
श्रीलंका में श्रीराम, सीता तथा लक्ष्मण से संबंधित अनेक स्थान हैं । वाल्मिकी रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने जो लिखा, उसके अनुसार घटनाएं होने के श्रीलंका में अनेक प्रमाण हैं । सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा का स्थान, ऐसा ही एक स्थान है । यह स्थान जिस गांव में है, उस गांव का नाम है दिविरुंपोला ! श्रीलंका के मध्य प्रांत में ऊंचे-ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र के ‘नुवारा एलिया’ इस नगर से यह गांव १८ कि.मी. दूरी पर है । श्रीलंका में चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित रामायण इन लंका इस पुस्तक से हमें इस गांव के विषय में जानकारी मिली । श्रीलंका के अनेक हिन्दुआें को भी इस स्थान के विषय में जानकारी नहीं है । इंटरनेट पर भी इस विषय में कोई जानकारी नहीं है ।
२. श्रीलंका में अनेक स्थानों के आसपास ही बौद्ध विहारों
का निर्माण किया जाना तथा उनका दायित्व २-३ बौद्ध भिक्कूआें को दिया जाना
विगत ३० वर्षों में अनेक स्थानों पर हिन्दुआें के मंदिर, तीर्थस्थान तथा रामायण से संबंधित स्थानों में हिन्दू मंदिरों के समीप ही बौद्ध विहार हैं । सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान पर भी बौद्धों ने एक बडे विहार का निर्माण किया है । बौद्ध उनके मंदिरों को ‘महाविहारय’ कहते हैं । ऐसे स्थानों पर हिन्दुआें के मंदिर तथा बौद्ध विहारों का दायित्व २-३ बौद्ध भिक्कुआें को दिया जाता है । अग्निपरीक्षा के स्थान पर निर्मित बौद्ध मंदिर को ‘दिविरुंपोला राजमहाविहारय’ नाम दिया गया है ।
३. इस विहार के बाहर ‘सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा का स्थान’, ऐसा एक भी फलक नहीं है ।
४. सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को देखकर वहां के वृद्ध व्यवस्थापक द्वारा ‘आप कोई दैवीय महिला हैं,
ऐसा लगता है’, ऐसा कहा जाना तथा उनके द्वारा सद्गुरु काकूजी से प्रवेश टिकट के पैसे लेना अस्वीकार किया जाना
सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळकाकूजी के साथ इस स्थान को ढूंढते-ढूंढते हम गुरुकृपा से उस स्थान तक पहुंच गए । बाहर बौद्ध भिक्कू तथा उस मंदिर के वृद्ध बौद्ध व्यवस्थापक से हमारी भेंट हुई । हमने जब उन्हें सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में पूछा, तब उस बौद्ध भिक्कू ने उन वृद्ध व्यवस्थापक से कहा, ‘आप उन्हें वह स्थान दिखाएं’ । वह दादाजी सद्गुरु गाडगीळकाकूजी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आप कोई दैवीय महिला हैं, ऐसा मुझे लगता है । मैं यहां विगत ५० वर्षों से यहां काम कर रहा हूं; परंतु अभीतक हमारे पास आप जैसा कोई नहीं आया था । मैं आपसे प्रवेश टिकट के पैसे नहीं दूंगा । मैं केवल आप के साथ आए लोगों के ही पैसे लूंगा ।’’ यह सुनकर हम आश्चर्यचकित रह गए ।
५. बौद्ध विहार के अंदर की दीवारोंपर संपूर्ण रामायण का चित्रित किया होना तथा वयस्क व्यवस्थापक
द्वारा रामायण की कुछ घटनाएं तथा सीतामाता द्वारा अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी दी जाना
हमने आनंद के साथ दादाजी के साथ उस परिसर में प्रवेश किया । दादाजी ने हमें पहले बौद्ध विहार दिखाया । उस बौद्ध विहार के अंदर बुद्ध के २७ विग्रह (मूर्तियां) थीं । बौद्ध विहार के अंदर की दीवारपर संपूर्ण रामायण चित्रित किया गया है । उस बौद्ध दादाजी ने हमें अंग्रेजी भाषा में रामायण की कुछ घटनाएं तथा सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी दी ।
६. सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के स्थान के मंदिर का प्रवेशद्वार बंद होना, वृद्ध व्यवस्थापक द्वारा सद्गुरु (श्रीमती)
गाडगीळजी से ‘आप साक्षात सीतामाता जैसी दिखाई देती हैं । अतः आप ही वह ताला खोलें ।’, ऐसा कहकर उनके हाथ में बडी चाबी देना
उसके पश्चात दादाजी हमें सीतामाता द्वारा दी गई अग्निपरीक्षा के अश्वत्थ वृक्ष के पास ले गए । उस वृक्ष के पास एक छोटा मंदिर था । उसका प्रवेशद्वार बंद था । उस प्रवेशद्वारपर २ हाथों में न समाए इतने बडे आकार का पुराना ताला था । दादाजी ने कहा, ‘‘माताजी, आप मुझे साक्षात सीतामाता जैसी दिखाई देती हैं । आजतक मैने किसी को भी इस मंदिर की चाबी नहीं दी; परंतु आज मैं यह चाबी आपको दे रहा हूं । अब आप ही यह ताला खोलें ।’’ दादाजी के ऐसा कहते ही हम सभी की भावजागृति हुई । दादाजीने सद्गुरु गाडगीळकाकूजी को वह चाबी सौंपी । वह चाबी इतनी बडी थी कि उसे दोनों हाथों से पकडना लगता था । उस चाबी को हाथ में लेते ही सद्गुरु गाडगीळकाकूजी की आंखों से अनियंत्रित भावाश्रु बह रहे थे ।
७. सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळजी द्वारा प्रवेशद्वार खोले जाने पर वहां चंदन की गंध आना, अंदर सीतामाता की मूर्ति होना,
पिछली दीवार पर सीतामाता की अग्निपरीक्षा का चित्र का होना तथा वहां सभी के द्वारा रामराज्य की स्थापना के लिए प्रार्थना की जाना
हमने मन ही मन श्रीमहाविष्णुजी के श्रीराम रूप से प्रार्थना की और प्रवेश द्वार तक पहुंच गए । सद्गुरु गाडगीळकाकूजी ने चाबी से सीता मंदिर का ताला खोल दिया । (छायाचित्र क्र. १ देखें ।) सद्गुुरु काकूजी द्वारा प्रवेश द्वार खोलते ही सभी को चंदन की सुगंध आई । हम जबतक (आधे घंटेतक) मंदिर में थे, तबतक हम सभी को चंदन की सुगंध आ रही थी । वहां सीतामाता की खडी मूर्ति है । मूर्ति के पीछे दीवार पर सीतामाता द्वारा दी जा रही अग्निपरीक्षा का चित्र है । सद्गरु गाडगीळकाकूजी ने तथा उनके साथ हम सभी साधकों ने उस मंदिर में रामरथी स्तोत्र गाया तथा पृथ्वीपर रामराज्य आने हेतु प्रार्थना की । (छायाचित्र क्र. २ देखें ।)
८. मंदिर के व्यवस्थापक द्वारा सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान पर पहले से ही अश्वत्थ वृक्ष का होना
तथा पहले श्रीलंका में सभी लोग हिन्दू ही होने के कारण उन्हें इस स्थान के विषय में पहले से ही ज्ञात होने की बात कही जाना
उसके पश्चात वे दादाजी हमें मंदिर के पीछे स्थित अश्वत्थ वृक्ष की ओर ले गए । दादाजी ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी मुझे बताते थे, ‘अभी का यह अश्वत्थ वृक्ष बहुत पुराना है; परंतु उसके पहले भी यहां अश्वत्थ वृक्ष था ।’ मेरे दादाजी हिन्दू थे । कालांतर से हम बौद्ध बन गए; परंतु ‘सीतामाता ने इसी स्थान पर अग्निपरीक्षा दी’, ऐसा गांव के पुराने लोग बताते थे । अतः हमें बचपन से ही इस स्थान के विषय में ज्ञात था ।’’ उसके पश्चात सद्गुुरु गाडगीळकाकूजी ने उस अश्वत्थ वृक्ष की ३ परिक्रमाएं कीं । (छायाचित्र क्र. ३ देखें ।)
९. सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान का अवलोकन करने तथा वहां रामराज्य आने हेतु
प्रार्थना करने का सौभाग्य प्राप्त होने के कारण परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी के चरणों में व्यक्त की गई कृतज्ञता !
ऐसा कहते हैं, ‘जहां राम-सीता होते हैं, वहां हनुमानजी तो होते ही हैं ।’ हमें ऐसा लगा कि उन दादाजी के रूप में साक्षात हनुमानजीही हमारी सहायता के लिए आ गए । श्रीलंका से सहस्रों मील दूर रामनाथी आश्रम में रहनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ही यह कृपा है, इसमें कोई संदेह नहीं ! ऐसे पवित्र स्थान पर जाने का अवसर मिलना तथा वहां रामराज्य आने हेतु प्रार्थना करने का अवसर मिलना, यह हम सभी का सौभाग्य ही है । इसके लिए श्रीरामस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में चाहे जितनी भी कृतज्ञता व्यक्त की जाए, वह अल्प ही है ।
– श्री. विनायक शानभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१०.६.२०१८)