आचरणमें सरल परधर्मकी अपेक्षा स्वधर्म ही श्रेष्ठ है, भले ही वह सदोष क्यों न हो । स्वधर्ममें रहते हुए मृत्युको प्राप्त होना अच्छा है, (क्योंकि) परधर्मको स्वीकार करनेमें बडा भय होता है ।
१. धर्मरक्षाका महत्त्व अ. आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे अ. ‘धर्मका विनाश खुली आंखोंसे देखनेवाला महापापी है, जबकि धर्मरक्षाके लिए प्रयास करनेवाला मुक्तिका अधिकारी बनता है’, यह धर्मवचन…
भगवानने युगों-युगोंसे अवतार धारण कर ‘सनातन वैदिक धर्म’पर, अर्थात ‘हिन्दू धर्मपर आक्रमण करनेवाले राक्षसोंका संहार कर धर्मरक्षा का आदर्श निर्माण किया है । श्रीराम, श्रीकृष्ण और परशुराम, ये अवतार तो विशेषरूपसे प्रसिद्ध हैं ।
समाजव्यवस्था उत्तम रखना, प्रत्येक प्राणिमात्रकी ऐहिक और पारलौकिक उन्नति होना, ये बातें जिससे साध्य होती हैं, वह धर्म है’, ऐसी धर्मकी व्याख्या आदि शंकराचार्यजीने की है । धर्म केवल समझनेका विषय नहीं है, अपितु आचरणमें लानेका विषय है; क्योंकि धर्मके आचरणसे ही धर्मकी अनुभूति होती है ।