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धर्म

धर्माचरण का अर्थ क्या है ?

आचरणमें सरल परधर्मकी अपेक्षा स्वधर्म ही श्रेष्ठ है, भले ही वह सदोष क्यों न हो । स्वधर्ममें रहते हुए मृत्युको प्राप्त होना अच्छा है, (क्योंकि) परधर्मको स्वीकार करनेमें बडा भय होता है ।

हिन्दू धर्म की रक्षा करना, प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य !

१. धर्मरक्षाका महत्त्व अ. आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे अ. ‘धर्मका विनाश खुली आंखोंसे देखनेवाला महापापी है, जबकि धर्मरक्षाके लिए प्रयास करनेवाला मुक्तिका अधिकारी बनता है’, यह धर्मवचन…

धर्मरक्षा का इतिहास

भगवानने युगों-युगोंसे अवतार धारण कर ‘सनातन वैदिक धर्म’पर, अर्थात ‘हिन्दू धर्मपर आक्रमण करनेवाले राक्षसोंका संहार कर धर्मरक्षा का आदर्श निर्माण किया है । श्रीराम, श्रीकृष्ण और परशुराम, ये अवतार तो विशेषरूपसे प्रसिद्ध हैं ।

धर्म एवं भारत का महत्त्व

समाजव्यवस्था उत्तम रखना, प्रत्येक प्राणिमात्रकी ऐहिक और पारलौकिक उन्नति होना, ये बातें जिससे साध्य होती हैं, वह धर्म है’, ऐसी धर्मकी व्याख्या आदि शंकराचार्यजीने की है । धर्म केवल समझनेका विषय नहीं है, अपितु आचरणमें लानेका विषय है; क्योंकि धर्मके आचरणसे ही धर्मकी अनुभूति होती है ।