अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति में उत्पन्न हुई सात्त्विकता केवल एक दिन तक ही रहती है । यही कारण है कि, पूजा के अगले दिन ही बहते जल में मूर्ति का विसर्जन करना चाहिए ।
श्रीगणेशजी की मूर्ति को विसर्जित करने से पूर्व उत्तरपूजा की जाती है । यह विधि करने के उपरांत मूर्ति थोडी खिसकायी जाती है । उत्तरपूजा का अर्थ है आदरसहित श्रीगणेश को विदाई देना ।
१. उत्तरपूजा (उत्तर आवाहन)
अ. विधि
यह पूजा गणपति के विसर्जनपूर्व होती है । आगे दिए विशिष्ट मंत्रों के उच्चारणद्वारा पूजा करें –
१. आचमन,
२. संकल्प,
३. चंदनार्पण,
४. अक्षतार्पण,
५. पुष्पार्पण,
६. हरिद्रा (हलदी)-कुमकुमार्पण,
७. दूर्वार्पण,
८. धूप-दीप दर्शन तथा
९. भोग (पाठभेद : चंदन, हलदी तथा कुमकुम एक साथ चढाएं ।)
तदुपरांत आरती कर मंत्रपुष्पांजलि समर्पित करें । उपस्थित भक्त गणपति के हाथोंमें अक्षत रखकर, मूर्ति को दाहिने हाथ से हिलाएं ।
आ. महत्त्व
पूजाका उद्देश्य यह है कि, पूजक गणेशतरंगों से संपृक्त हो जाए । संपृक्तता बढाने हेतु अंतिम चरण है उत्तरपूजा । उत्तरपूजा के समय मूर्तिमें विद्यमान सर्व पवित्रक (श्री गणपति तत्त्व के स्पंदन) एक साथ ही बाहर की ओर प्रक्षेपित होते हैं । उत्तरपूजा संपन्न होने पर मूर्ति को अपने स्थान से हलकासा हिलाते हैं । इससे शेष पवित्रक मूर्ति से निकल जाने पर भी पूजा करनेवाले को उसका लाभ मिल सकता है ।
‘श्री गणेशमंदिर में एक भक्त की महापूजा संपन्न होने पर उत्तरपूजा करते हैं । तदुपरांत अगले भक्त की महापूजा करते हैं । इससे उत्तरपूजाका विशेष महत्त्व ध्यानमें आता है । गणपतिका पुनः आवाहन किया है, वैसे ही उन्हें सम्मान से (विसर्जित) विदा करना महत्त्वपूर्ण है ।
२. विसर्जन
उत्तरपूजा उपरांत जलाशय में मूर्तिविसर्जन करते हैं । विसर्जन के लिए जाते समय गणपति के साथ दही, पोहे, नारियल, मोदक इत्यादि व्यंजन दें । जलाशय के पास पुनः आरती करें तथा मूर्ति को व्यंजनसहित जल में विसर्जित करें । विसर्जन के समय विसर्जन-स्थल की मिट्टी घर लाकर सर्वत्र छिडकने की प्रथा है ।
श्री गणेशविसर्जन के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि, मृत्तिका की मूर्तिमें प्राणप्रतिष्ठाद्वारा लाया गया देवत्व एक दिन से अधिक रह ही नहीं सकता । इसका अर्थ है कि, गणेशविसर्जन कभी भी किया जाए, फिर भी श्री गणेशमूर्ति में विद्यमान देवत्व अगले दिन ही नष्ट हो चुका होता है । इसलिए किसी भी देवता की उत्तरपूजा करने पर उसी दिन अथवा अगले दिन उस मूर्तिका विसर्जन होना सर्वथा इष्ट है । जनन-अशौच अथवा सूतक हो, तो पुरोहितद्वारा ही श्री गणेशव्रत आचरण में लाना इष्ट है । शास्त्रों के अनुसार, घर में प्रसूति इत्यादि की प्रतीक्षा न कर नियोजित समय पर विसर्जन करें ।
ऊपर बताया गया है कि, ‘मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा कर लाया गया देवत्व एक दिन से अधिक समयतक टिक ही नहीं सकता ।’ किसी के भी मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि, प्राणप्रतिष्ठा की गई श्री गणेशमूर्ति में देवत्व एक दिन से अधिक समयतक टिक नहीं पाता, तो गणेशोत्सव में एक दिन से अधिक कालतक पूजी जानेवाली श्री गणेशमूर्ति की उपासना से श्रद्धालुओं को लाभ कैसे मिलता है ? इसका उत्तर यह है कि, मूर्ति में विद्यमान देवत्व निकल जाए, तो भी उस देवता के चैतन्यका प्रभाव मूर्ति में २१ दिनोंतक बना रहता है । साथ ही गणेशोत्सव के काल में मूर्तिका पूजन-अर्चन होने के कारण पूजक के भक्तिभावानुसार मूर्ति में चैतन्य बढ भी सकता है । २१ दिनों के उपरांत मूर्तिका चैतन्य शनैः-शनैः घटने लगता है ।
मूर्ति और पूजा के निर्माल्य को बहते जल में विसर्जित करनेका कारण
बहते जल के साथ मूर्तिका चैतन्य दूरतक पहुंचता है और अनेकों को उनका लाभ मिलता है । ऐसे जलका बाष्पीभवन होने के कारण भी समस्त वातावरण के सात्त्विक बनने में सहायता मिलती है ।
अ. ‘मूर्तिदान’ अशास्त्रीय है तथा ‘मूर्तिविसर्जन’ ही उचित है : श्री गणेशमूर्ति को बहते जल में अथवा जलाशय में विसर्जित करना आवश्यक है, ऐसा शास्त्रोचित होते हुए भी जलप्रदूषण, अवर्षण आदि के कारण कुछ लोगों को ‘मूर्तिविसर्जन’ समस्या प्रतीत होती है । उपायस्वरूप कुछ धर्मद्रोही संगठन मूर्तिविसर्जन की अपेक्षा मूर्तिदानका हास्यास्पद आवाहन कर रहे हैं ।
गणपति की मूर्तिका दान अशास्त्रीय होने के विविध कारण
- भाद्रपद माह में श्री गणेश चतुर्थी पर प्राणप्रतिष्ठित मूर्तिका विसर्जन शास्त्रोचित विधि है ।
- देवताओं को दान में लेना अथवा देना, देवताओंका अपमान है; क्योंकि देवताओं को दान में लेने अथवा देने की क्षमता मनुष्य में नहीं है ।
- श्री गणेश की मूर्ति कोई खिलौना अथवा सजावट की वस्तु नहीं हैं, जिसका उपयोग समाप्त होने पर वह अन्य किसी को दान कर दी जाए ।
यह देखा गया है कि, हिन्दुविरोधी कार्यकर्ता मूर्ति को वहीं पर फेंककर चले जाते हैं अथवा पत्थर की खदानमें फेंक देते हैं । इस प्रकार से वे श्रद्धालुओं के आस्थाकेंद्रका अपमान करते हैं ! क्या ऐसी स्थितिमें धर्मप्रेमियोंद्वारा यह अधर्म होने देना चाहिए ?
‘हिन्दू जनजागृति समिति’ प्रतिवर्ष इस संदर्भमें संबंधित स्थानों पर जनजागरण अभियान चलाते हैं । गणेशभक्तो, आप भी मूर्तिदान न करें तथा धर्मरक्षा हेतु जनजागृति अभियानमें सहभागी हों !
आ. आपातस्थिति में मूर्ति का विसर्जन कैसे करें ? : कभी-कभी कुछ क्षेत्रों में विसर्जन हेतु जल के स्रोत नहीं होते । कुछ स्थानों में जल के सर्व स्रोत इतने प्रदूषित होते हैं कि, उसमें विसर्जन नहीं किया जा सकता । वैसे ही सूखा अथवा बाढ आने के कारण भी कभी-कभी विसर्जन संभव नहीं होता । वैसी परिस्थिति पर निम्नलिखित दो उपाय किए जा सकते हैं :
१. मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करने के स्थान पर, सुपारी रखकर श्रीगणेशजी की प्रातिनिधिक रूप में पूजा करें । सुपारी किसी छोटे कुंए अथवा किसी छोटी नदी में विसर्जित की जा सकती है ।
२. गणेश चतुर्थी हेतु श्रीगणेशजी की धातु की मूर्ति खरीदें तथा प्राणप्रतिष्ठा होने के उपरांत पूजा करें । प्रतिदिन की पूजा में गणेशजी होते ही हैं, तब पुनः नई मूर्ति लाने का कारण इस प्रकार है : गणेश चतुर्थी के दिन पृथ्वी पर श्रीगणेश की तरंगें अत्यधिक मात्रा में आती हैं । यदि उन तरंगों का आवाहन हमारी दैनिक पूजा में हो गया तो मूर्ति अत्यधिक मात्रा में शक्ति से आवेशित हो जाएगी । इस प्रकार अत्यधिक शक्ति से आवेशित मूर्ति का पूरे वर्ष भर अत्यंत सम्मान से नियमपूर्वक धार्मिक विधि करना कठिन हो जाएगा । इसके लिए कर्मकांड के बंधनों का पालन कठोरता से करना होगा । इसलिए, धातु की नई मूर्ति लानी चाहिए । उस मूर्ति को वास्तव में विसर्जित नहीं किया जाता । विसर्जन के समय, मूर्ति की हथेली पर अक्षत रखें और दांए हाथ से थोडा खिसकाएं । ऐसा करने से उस मूर्ति में विद्यमान तत्व विसर्जित हो जाएगी । वैसी मूर्ति की प्रतिदिन पूजा करने की आवश्यकता नहीं होती । अगले वर्ष इसी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा कर पुनः पूजा की जा सकती है ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’