धर्मसंस्थापना के लिए सर्वस्व का त्याग करें !
‘गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है । इस दिन प्रत्येक श्रद्धावान हिन्दू आध्यात्मिक गुरु के प्रति कृतज्ञता के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार तन-मन-धन समर्पित करता है । अध्यात्म में तन, मन एवं धन के त्याग का असाधारण महत्त्व है; परंतु गुरुतत्त्व को शिष्य के एक दिन के तन-मन-धन का त्याग नहीं, अपितु सर्वस्व का त्याग चाहिए होता है । सर्वस्व का त्याग किए बिना मोक्षप्राप्ति नहीं होती; इसीलिए आध्यात्मिक प्रगति करने की इच्छा रखनेवालों को सर्वस्व का त्याग करना चाहिए ।
व्यक्तिगत जीवन में धर्मपरायण जीवनयापन करनेवाले श्रद्धावान हिन्दू हों अथवा समाजसेवी, देशभक्त एवं हिन्दुत्वनिष्ठ जैसे समष्टि जीवन के कर्मशील हिन्दू हों, उन्हें साधना के लिए सर्वस्व का त्याग कठिन लग सकता है । इसकी तुलना में उन्हें राष्ट्र-धर्म कार्य के लिए सर्वस्व का त्याग करना सुलभ लगता है । वर्तमान काल में धर्मसंस्थापना का कार्य करना ही सर्वोत्तम समष्टि साधना है । धर्मसंस्थापना अर्थात समाजव्यवस्था एवं राष्ट्ररचना आदर्श करने का प्रयत्न करना । यह कार्य कलियुग में करने के लिए समाज को धर्माचरण सिखाना एवं आदर्श राज्यव्यवस्था के लिए वैधानिक संघर्ष करना अपरिहार्य है । आर्य चाणक्य, छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी धर्मसंस्थापना के कार्य के लिए सर्वस्व का त्याग किया था । उनके त्याग के कारण ही धर्मसंस्थापना का कार्य सफल हुआ था । यह इतिहास ध्यान में रखें ।
इसीलिए धर्मनिष्ठ हिन्दुओ, इस गुरुपूर्णिमा से धर्मसंस्थापना के लिए अर्थात धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए सर्वस्व का त्याग करने की तैयारी करें और ऐसा त्याग करने से गुरुतत्त्व को अपेक्षित आध्यात्मिक उन्नति होगी, इसकी निश्चिति रखें !’
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का गुरुपूर्णिमा निमित्त संदेश
आपातकाल में गुरु का प्रीतिमय कृपाछत्र अनुभव करने के लिए शिष्य बनें !
‘साधक के जीवन में गुरु का महत्त्व असाधारण है । साधकावस्था का अगला आध्यात्मिक चरण है शिष्यावस्था प्राप्त करना ! आज्ञापालन और तन-मन-धन का त्याग किए शिष्य का योगक्षेम गुरु ही संभालते हैं । ऐसे शिष्य पर किसी भी संकट का परिणाम नहीं होता; क्योंकि उस पर गुरु की प्रीतिमय कृपा होती है । वर्तमान आपातकाल में साधकों को गुरु का प्रीतिमय कृपाछत्र अनुभव करने का स्वर्णिम अवसर है । आगामी काल में बडे-बडे संकट हमें पार करने हैं । यह ध्यान में रखकर आपातकाल में रक्षा होने के लिए अनन्य भाव से श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी की शरण लें और उनका खरा शिष्य बनने के लिए साधना हेतु पराकाष्ठा के प्रयत्न करें ।’
– (श्रीसत्शक्ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ
धर्मसंस्थापना के दैवी कार्य में सम्मिलित होकर जीवन का कल्याण करें !
पृथ्वी पर अधर्म फैलने पर ईश्वर अवतार लेते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं । ‘न मे भक्तः प्रणश्यति ।’ (मेरे भक्त का नाश नहीं होता ।) ऐसा भगवान श्रीकृष्ण ने भक्तों को वचन दिया है । श्रीराम-श्रीकृष्ण आदि अवतारों ने अनेक लीलाएं कर भक्तों की रक्षा की । प्रभु श्रीरामचंद्र ने समस्त जीवों के कल्याण हेतु रामराज्य स्थापित किया । भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट कौरवों को पराजित कर धर्मराज्य स्थापित किया । कलियुग में भी श्रीमन्नारायणस्वरूप परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने धर्मसंस्थापना का महान कार्य आरंभ किया है । जिस प्रकार श्रीराम के कार्य में सहभागी होकर वानरसेना ने स्वयं का उद्धार किया, उसी प्रकार परात्पर गुरु डॉक्टरजी के धर्मस्थापक दैवीय कार्य में सहभागी होकर जीवन का कल्याण कर लें !’
– (श्रीचित्शक्ति) श्रीमती अंजली गाडगीळ