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भगवान श्री गुरुदेव दत्त के कार्य एवं विशेषताएं

 

अ. वर्णाश्रमधर्म की प्रतिष्ठा को बनाए रखने वाले । (वर्णाश्रम संबंधी जानकारी सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘वर्णाश्रमव्यवस्था’में दी है ।)

आ. गुरुतत्त्व का आदर्श एवं योग के उपदेशक (शांडिल्योपनिषद्) : दत्त के अलर्क, प्रह्लाद, यदु, सहदार्जुन, परशुराम इत्यादि शिष्य प्रसिद्ध हैं ।

इ. तंत्रशास्त्र के आचार्य (त्रिपुरासुंदरी रहस्य)

ई. उन्नतवत् वर्तन करने वाले, (कृष्ण के समान ही) विधिनिषेध रहित (मार्कंडेयपुराण)

उ. स्वेच्छा विहारी एवं स्मर्तृगामी (स्मरण करने वालों को शीघ्र दर्शन देने वाला)

ऊ. दत्त एवं शिव देवता वैराग्य प्रदान करते हैं । (शेष देवता सबकुछ देते हैं ।)

ए. अवधूत (सूत्र ‘२ अ’ देखें ।)

ऐ. समन्वय का प्रतीक

  • शैव एवं वैष्णव : दत्त के गुरु रूप के कारण, इन दोनों संप्रदाय के लोगों को दत्त के प्रति अपनापन लगता है ।

ओ. अतृप्त पूर्वजों द्वारा कष्ट से मुक्ति देने वाला (सूत्र ‘१० क’ देखें ।)

औ. अनिष्ट शक्तियों के कष्ट का निवारण करनेवाला (सूत्र ‘१० ख’ देखें ।)

अं. नित्यक्रम

१. निवास : मेरुशिखर

२. प्रातःस्नान : वाराणसी (गंगातट)

३. आचमन : कुरुक्षेत्र

४. चंदन का उबटन लगाना : प्रयाग (पाठभेद – तिलक लगाना : पंढरपुर, महा.)

५. प्रातःसंध्या : केदार

६. विभूतिग्रहण : केदार

७. ध्यान : गंधर्वपत्तन (पाठभेद – योग : गिरनार, सौराष्ट्र, गुजरात.)

८. दोपहर की भिक्षा : कोल्हापुर

९. दोपहर का भोजन : पांचाळेश्वर (बीड जन., महाराष्ट्र) गोदावरी नदी की तह में

१०. तांबूल भक्षण : राक्षसभुवन, जनपद बीड, मराठवाडा

११. विश्राम : रैवत पर्वत

१२. सायंसंध्या : पश्चिम सागर

१३. पुराणश्रवण : नरनारायणाश्रम (पाठभेद – प्रवचन एवं कीर्तन सुनना : नैमिषारण्य, उत्तरप्रदेश)

१४. निद्रा : माहूरगड, जनपद नांदेड, महाराष्ट्र. (पाठभेद : सह्य पर्वत)

इनमें से २, ८ एवं १४ क्रमांक के स्थान प्रसिद्ध हैं ।

क. दत्त स्वाधिष्ठान चक्र से संबंधित देवता हैं ।

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय