श्रीधरस्वामी कृत रामविजय, अध्याय १३, पंक्ति २१ का भावार्थ : दत्त गुरुतत्त्व का कार्य करते हैं, इस कारण जब तक सभी लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक दत्त का कार्य चलता ही रहेगा ।
दत्त ने प्रमुख रूप से कुल सोलह अवतार धारण किए । प.पू. वासुदेवानंद सरस्वती कृत ‘श्री दत्तात्रेय षोडशावताराः ।’ में इन अवतारों की कथाएं हैं ।
श्रीपाद श्रीवल्लभ एवं श्री नृसिंह सरस्वती संप्रदाय
श्रीपाद श्रीवल्लभ दत्त के प्रथम अवतार हैं । महाराष्ट्र में इन्होंने दत्तोपासना का आरंभ पंद्रहवीं शताब्दी में किया । श्री नृसिंह सरस्वती इनके दूसरे अवतार हुए । श्री गुरुचरित्र में श्रीपाद श्रीवल्लभ एवं श्री नृसिंह सरस्वती, इन दोनों अवतारों की जानकारी दी है ।
ऐतिहासिक काल में श्रीपाद श्रीवल्लभ, श्री नृसिंह सरस्वती, माणिक प्रभु, ये तीन अवतार एवं चौथे श्री स्वामी समर्थ महाराज थे । ये चार पूर्ण अवतार थे । अंशात्मक अवतार तो अनेक हैं । इनमें श्री वासुदेवानंद सरस्वती(टेंबेस्वामी) भी समाविष्ट हैं ।
लोगों द्वारा दिए जाने वाले कष्ट से बचने हेतु श्री नृसिंह सरस्वती अपने शिष्यों को बता कर कर्दलीवन में चले गए । वहां तपश्चर्या करते समय उनके शरीर पर चींटियों ने बमीठा बनाया, जिससे उनका संपूर्ण शरीर ढक गया । अनेक वर्ष उपरांत एक लकडहारा उस जंगल में लकडी काटने आया । लकडी काटते समय उसकी कुल्हाडी का वार बमीठे पर पडा । कुल्हाडी पर रक्त लगा देख वह घबरा गया और उसने बमीठे को कुरेदा । उसमें से अक्कलकोट स्वामी जी के रूप में नृसिंह सरस्वती निकले । अक्कलकोट के वर्तमान मठ में, उदुंबर के नीचे स्वामीजी का वास्तव्य है । इस संप्रदाय के कुछ प्रमुख अवतारों की जानकारी अगले पृष्ठपर प्रकाशित सारणी में दी है ।
अवतारद्वारा धारण किया गया नाम | पिताजी का नाम | माताजी का नाम | जन्मकाल | मूल गांव | कार्यक्षेत्र | सर्वसंगपरित्याग | समाधिकाल |
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१. श्रीपाद श्रीवल्लभ | आपळराज | सुमति / सुमता | शक १२४५ | पीठापुर (आंध्रप्रदेश) | आंध्रप्रदेश | ७ वें वर्ष में | आश्विन कृष्ण पक्ष १२, शक १२७५ |
२. श्री नृसिंह सरस्वती | माधवराव | अंबा | शक १३३९ | कारंजा (विदर्भ) | गाणगापुर (कर्नाटक) | १२ वें वर्ष में | माघ शुक्ल पक्ष ३, शक १३८० |
३. श्री माणिकप्रभु | मनोहरपंत | भायम्मा | शक १७३९ | लाडवंती (कर्नाटक) | माणिकनगर | बचपन में | मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष १०, शक १७८७ |
४. श्री स्वामी समर्थ (अक्कलकोट) | अज्ञात | अज्ञात | अज्ञात | अज्ञात | अक्कलकोट (जन. सोलापुर) | अज्ञात | चैत्र कृष्ण पक्ष १३, शक १८०० |
५. श्री भालचंद्र महाराज | परशुराम | आनंदीबाई | शक १८२५ | म्हापण | कणकवली (जन. सिंधुदुर्ग) | २२ वें वर्ष में | मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष १०, शक १८९९ |
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’