१. माहूर
तहसील किनवट, जनपद नांदेड, महाराष्ट्र.
२. गिरनार
जुनागढके निकट, सौराष्ट्र. यहां १०,००० सीढियां हैं ।
३. कारंजा
श्री नृसिंह सरस्वतीजी का जन्मस्थान । इसका दूसरा नाम है लाड-कारंजे । काशी के ब्रह्मानंद सरस्वतीजी ने इस स्थान पर प्रथम दत्तमंदिर बनाया ।
४. उदुंबर
श्री नृसिंह सरस्वतीजी ने यहां चातुर्मास-निवास किया । यह स्थान महाराष्ट्र के भिलवडी स्थानक से १० कि.मी. की दूरी पर कृष्णा नदी के तट पर है ।
५. नरसोबाकी वाडी
अ. स्थानका महत्त्व : श्री नृसिंह सरस्वतीजीने भगवान दत्तात्रेयके द्वितीय अवतारके रूप जन्म लिया । वे यहांपर बारह वर्षतक रहे । इस क्षेत्रमें अष्टतीर्थ एवं दत्तात्रेयकी उपासना परंपराके सात संतोंकी समाधियां हैं । यह कृष्णा तथा पंचगंगा नदियोंका संगम क्षेत्र है । यह टेंबेस्वामीजीका प्रेरणास्थान है ।
आ. आध्यात्मिक महत्त्व : यहां श्राद्धकर्म आदि विधि करनेसे पितरोंको सद्गति मिलती है । अनेक लोगोंका यह अनुभव है कि यहां साधना करनेसे पिशाचबाधासे पीडित लोग बाधामुक्त हो जाते हैं ।
६. गाणगापुर
यह पुणे-रायचूर मार्ग पर कर्नाटक में है । भीमा एवं अमरजा नदियों का यहां संगम है । यहां श्री नृसिंह सरस्वती जी ने तेईस वर्ष वास किया एवं यहीं पर सर्व कार्य किया । यहीं से उन्होंने श्रीशैल्य के लिए प्रयाण किया ।
७. कुरवपुर
कर्नाटक. रायचूर से मोटर द्वारा पल्लदिनी तक (कुरगड्डी) जा सकते हैं । यह द्वीप कृष्णा नदी में स्थित है । यह श्रीपाद श्रीवल्लभ जी का कार्य स्थान है ।
८. पीठापुर
आंध्रप्रदेश में श्रीपाद श्रीवल्लभ जी का जन्म स्थान, जिसे टेंबे स्वामी जी ने उजागर किया ।
९. वाराणसी
यहां नारद घाट पर दत्तात्रेय मठ है । श्री नृसिंह सरस्वती जी के जो वंशज आज भी यहां हैं, उनका उपनाम ‘काळे’ है । आगे चलकर ‘काळे’ नाम का अपभ्रंश ‘कालिया’ हो गया । आज भी वहां कालिया नामक बाग एवं गली है ।
१०. श्रीशैल्य
भाग्यनगर के (हैदराबाद) निकट है । श्री नृसिंह सरस्वती जी ने वहां गमन किया था ।
११. भट्टगांव (भडगांव)
यह काठमांडू से (नेपाल) ३५ कि.मी. की दूरी पर है ।
१२. पांचाळेश्वर
जनपद बीड, महाराष्ट्र.
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’