भगवान दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए । इन रंगोलियों से दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित होने के कारण वातावरण दत्तात्रेय-तत्त्व से पूरित होने के कारण भक्तों को उससे लाभ होता है ।
‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उनकी शक्तियों का सहअस्तित्व होता है’, अतः रंगोली के रूप और रंग में अल्प सा भी परिवर्तन करने पर रंगोली के स्पंदन (शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद और शांति) किस प्रकार से परिणत होते हैं, यह आगे दर्शाई रंगोलियों से समझ में आएगा ।
भगवान दत्तात्रेय से संबंधित व्यक्त भाव जागृत करने वाली तथा दत्ततत्त्व प्रक्षेपित करने वाली रंगोली
भगवान दत्तात्रेय का मूर्ति रूप में पूजन करते समय आगे दी रंगोली बनाएं । इस रंगोली में आगे बताए अनुसार रंग भरने से दत्तात्रेय के प्रति भाव जागृत होता है ।
अव्यक्त भाव निर्मित करने वाली और दत्ततत्त्व प्रक्षेपित करने वाली रंगोली
पादुका अथवा उदुंबर के रूप में भगवान दत्तात्रेय का पूजन करते समय यह रंगोली बनाएं । मूर्ति की अपेक्षा पादुका अथवा उदुंबर के स्थान पर दत्ततत्त्व है, इस भाव से उपासना करने से अव्यक्त भाव जागृत होता है । व्यक्त भाव की अपेक्षा अव्यक्त भाव श्रेष्ठ है ।
शांति के स्पंदन आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली रंगोली
भाव और आनंद निर्मित करने वाली रंगोली की दिशा परिवर्तित करने पर उसमें शांति के स्पंदन आकर्षित होते हैं । इस रंगोली में प्रयुक्त रंग, भाव और आनंद के स्पंदनों से युक्त रंगोली में प्रयुक्त रंगों के समान ही हैं ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘सात्त्विक रंगाेलियां‘ एवं ‘भगवान दत्तात्रेय’