१. वर्णाश्रमोचित आचारधर्म का यथातथ्य पालन
२. योगमार्ग एवं शक्तिपात दीक्षा के अनुसार
३. सांप्रदायिक अनुशासन महत्त्वपूर्ण
४. अत्यंत कठोर अनुष्ठान एवं कायाक्लेश
५. पवित्र वस्त्र इत्यादि नियमों का कठोर अनुपालन
६. पहले मूर्ति प्रायः एकमुखी होती थी। आजकल त्रिमुखी मूर्ति अधिक प्रचलित हो रही है। कुछ स्थानों पर पूजा के लिए सगुण मूर्ति के स्थान पर पादुका एवं उदुंबर वृक्ष की भी पूजा की जाती है।
७. दत्तभक्त गुरुचरित्र का वाचन, पाठ एवं श्रवण बडे भक्तिभाव से करते हैं।
८. सत्यदत्त पूजा (सत्यनारायण पूजा के समान)
९. भगवान श्री दत्तात्रेय पूजा आरंभ करने से पहले भगवान दत्तात्रेय से संबंधित सात्विक रंगोली : दत्तात्रेय की पूजा से पूर्व तथा श्री दत्त जयंती के दिन घर पर अथवा देवालय में दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए। इन रंगोलियों से दत्तात्रेय-तत्त्व आकर्षित और प्रक्षेपित होने के कारण वातावरण दत्तात्रेय-तत्त्व से आवेशित होकर भक्तों को उससे लाभ होता है।
१० भगवान श्री दत्तात्रेय की पूजा से संबंधित कुछ दैनिक अनुष्ठान
प्रत्येक देवता का विशिष्ठ उपासना शास्त्र है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक देवता की उपासना के अंतर्गत प्रत्येक कृत्य विशिष्ट प्रकार से करने का शास्त्राधार है। ऐसे कृत्य के कारण ही उस देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ होने में सहायता होती है। भगवान श्री दत्त उपासना के अंतर्गत नित्य के कुछ कृत्य निश्चित रूप से किस प्रकार करने चाहिए, इस संदर्भ में सनातन के साधकों को ईश्वर से प्राप्त ज्ञान यहां प्रस्तुत सारणी में दिया है।
उपासना का कृत्य | कृत्यविषयक ईश्वर द्वारा प्राप्त ज्ञान |
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१. भगवान श्री दत्तात्रेय के पूजन से पूर्व उपासक स्वयं को कौन सा तिलक कैसे लगाए ? | श्री विष्णु समान खडी दो रेखाओं का तिलक लगाए। |
२. भगवान श्री दत्तात्रेय को चंदन किस उंगली से लगाएं ? | अनामिका से |
३. पुष्प चढाना
अ. कौन से पुष्प चढाएं ? |
जाही एवं रजनीगंधा |
४. अगरबत्ती से आरती उतारना
अ. तारक उपासना के लिए किस सुगंध की अगरबत्ती ? |
चंदन, केवडा, चमेली, जाही एवं अंबर |
५. इतर (इत्र) किस सुगंध की अर्पण करें ? | खस |
६. भगवान श्री दत्तात्रेय की न्यूनतम कितनी परिक्रमाएं करें ? | सात |
११. सांप्रदायिक साधनामंत्र
भगवान श्री दत्त गुरुदेव (आध्यात्मिक गुरु)हैं। उनकी उपासना गुरु स्वरूप में ही करनी होती है।
पूजा के विभिन्न रूपों, उदाहरण के लिए – पूजा, आरती, भजन (भक्ति गीत) आदि देवता के सिद्धांत के लाभ प्रदान करते हैं। यद्यपि, इन सभी की अपनी सीमाएं हैं, इसलिए इनसे प्राप्त होनेवाले लाभ भी सीमित हैं। देवता सिद्धांत से निरंतर लाभ के लिए, देवता की पूजा भी निरंतर होनी चाहिए। केवल नामजप ही निरंतर होनेवाली पूजा का रूप है। भगवान श्री दत्तात्रेय के कई नाम हैं। ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का मंत्र सबसे अधिक प्रचलित है। भगवान श्री दत्त के भक्तों को इस नाम का जप निरंतर करना चाहिए।
देवता सिद्धांत का अधिकतम लाभ प्राप्त करने हेतु, मंत्र का सस्वर पाठ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उपयुक्त होना चाहिए।
१२. श्री दत्तजयंती
एक सांप्रदायिक जन्मोत्सव। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र पर सायंकाल भगवान श्री दत्त का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन श्री दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है। श्री दत्तजयंती मनाने संबंधी शास्त्रोक्त विशिष्ट विधि नहीं पाई जाती। इस उत्सव से सात दिन पूर्व गुरुचरित्र का पारायण करने का विधान है। इसी को गुरुचरित्र सप्ताह कहते हैं।
१३. दत्तगायत्री
अन्य देवताओं समान भगवान श्री दत्तात्रेय की गायत्री आगे दिए अनुसार है –
दत्तात्रेयाय विद्महे। अवधूताय धीमहि।
तन्नो दत्तः प्रचोदयात्।।
अर्थ : हम भगवान श्री दत्तात्रेय को जानते हैं। अवधूत का ध्यान करते हैं। वे भगवान श्री दत्त हमारी बुद्धि को सत्प्रेरणा दें।
१४. कालानुसार आवश्यक उपासना
अपनी आध्यात्मिक उन्नति हेतु उपासना और धर्माचरण करना, अर्थात ‘व्यष्टि साधना’। वर्तमान कलियुग में समाज में रज-तमगुणों की प्रबलता अधिक है। अतः, समाज की सात्त्विकता बढाने के लिए अपनी साधना और धर्माचरण के साथ समाज को भी साधना एवं धर्माचरण करने हेतु प्रवृत्त करना आवश्यक होता है। इसी को ‘समष्टि साधना’ कहते हैं। भगवान श्री दत्तात्रेय की उपासना में पूर्णता आने के लिए भगवान श्री दत्तात्रेय के भक्तों को व्यष्टि और समष्टि दोनों स्तर पर साधना करनी आवश्यक है। व्यष्टि और समष्टि साधना के विषय में विस्तृत विवेचन सनातन के ग्रंथ ‘व्यष्टि और समष्टि साधना’ में किया गया है।
भगवान श्री दत्तात्रेय की उपासना के संदर्भ में समाज को धर्मशिक्षा देना : अधिकतर हिन्दुओं को अपने देवता, आचार, संस्कार, त्यौहार आदि के विषय में आदर और श्रद्धा होती है; परंतु अनेक लोगों को उपासना का धर्मशास्त्र ज्ञात नहीं होता। यह शास्त्र समझकर धर्माचरण उचित ढंग से करने पर अधिक लाभ होता है। इस कारण, भगवान श्री दत्तात्रेय की उपासना से संबंधित विविध कृत्य करने की उचित पद्धति और शास्त्र के विषय में समाज को धर्मशिक्षा देने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न करना भी, भगवान श्री दत्तात्रेय के भक्तों के लिए कालानुसार आवश्यक श्रेष्ठ स्तर की समष्टि साधना है।
भगवान श्री दत्तात्रेय का अनादर रोकना : वर्तमान में देवताओं का विविध प्रकार से अनादर किया जाता है। उदा. चित्रकार श्री. संजीव खांडेकरद्वारा बनाया भगवान श्री दत्तात्रेय का भद्दा चित्र ‘डीएन्ए’ नामक अंग्रेजी दैनिक के मुंबई संस्करण ने प्रकाशित किया है। (संदर्भ – दैनिक ‘सनातन प्रभात’, ४.१२.२००६); हिंदूद्वेषी चित्रकार म.फि. हुसेन ने हिन्दुओं के देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाकर उन्हें विक्रय के लिए देश-विदेश की विभिन्न चित्र-प्रदर्शनियों में रखा; व्याख्यान, पुस्तकें आदि के माध्यम से भी देवी-देवताओं की आलोचना की जाती है। व्यावसायिक विज्ञापनों में देवताओं का ‘मॉडेल’ के रूप में प्रयोग किया जाता है। नाटक-चलचित्रों के माध्यम से भी देवताओं का खुलेआम निरादर किया जाता है।
देवी-देवताओं का अनादर रोकना, समष्टि स्तर की उपासना : श्रद्धा देवताओं की उपासना का मूल है। देवी-देवताओं का उपरोक्त प्रकार से अनादर करने से लोगों की यह श्रद्धा न्यून होती है। इसलिए धर्महानि होती है। धर्महानि रोकना कालानुरूप आवश्यक धर्मपालन है तथा यह देवता की समष्टि स्तर की उपासना ही है। यह उपासना किए बिना देवता की उपासना पूर्ण नहीं हो सकती। इस कारण, भगवान श्री दत्तात्रेय भक्तों को इस विषय में जाग्रत होकर देवताओं के अनादर से होनेवाली धर्महानि को रोकना चाहिए।
१५. भगवान श्री दत्तात्रेय से कुछ करने योग्य प्रार्थनाएं
१. हे दत्तात्रेय भगवान, जिस प्रकार आपने २४ गुण-गुरु कर उनसे २४ गुण सीखे, उसी प्रकार सभी से अच्छे गुण ग्रहण करने की वृत्ति मुझ में निर्मित हो, यह आपके चरणों में प्रार्थना है।
२. हे दत्तात्रेय भगवान, भुवर्लोक में अटके मेरे अतृप्त पितरों को आगे जाने के लिए गति दीजिए।
३. हे दत्तात्रेय भगवान, अतृप्त पितरों की पीडा से मेरी रक्षा कीजिए। आपके नाम का सुरक्षा-कवच मेरे सर्व ओर नित्य बना रहे, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘भगवान दत्तात्रेय’