१. किसी भी देवता की पूजा अथवा शुभ कार्य में प्रथम श्री गणपतिपूजन क्यों किया जाता है ?
अन्य देवता किसी भी दिशा से श्री गणेश की अनुमति के बिना पूजास्थान पर नहीं आ सकते । इसलिए मंगलकार्य अथवा अन्य किसी भी देवतापूजन के समय प्रथम श्री गणपतिपूजन करते हैं । श्री गणेशद्वारा दिशाएं मुक्त किए जानेपर, जिस देवता की हम पूजा कर रहे हैं, वे वहां पर पधार सकते हैं । इसी को ‘महाद्वारपूजन’ अथवा ‘महागणपतिपूजन’ कहते हैं ।
३. महागणपति का क्या महत्व है ?
महागणपति पार्वतीद्वारा निर्मित गणेशजी महागणपति के अवतार हैं । उन्होंने मिट्टी से आकार बनाया तथा उसमें गणपति का आवाहन किया । जगदुत्पत्ति से पूर्व महत् तत्त्व निर्गुण तथा आत्मस्वरूप में होने के कारण उसे ‘महागणपति’ कहते हैं । जब महागणपति की आराधना विशेष सिद्धिप्राप्ति अथवा केवल मोक्षप्राप्ति के लिए की जाती है, तब दाहिनी सूंडवाले गणपति लेने की प्रथा है; परंतु ऐसे में वह संभवतः पार्थिव गणपति होता है । कुछ सोने-चांदी की बनी दाहिनी सूंड के गणपति की मूर्तियां भी क्वचित पाई जाती हैं ।
३. गणपति को तुलसी क्यों नहीं चढाते ?
अ. पौराणिक कारण : एक अप्सरा को उत्तम पति की इच्छा थी । इसके लिए वह सदा उपवास, जप, व्रत, तीर्थयात्रा आदि करती थी । एक बार उसने ध्यानमग्न श्री गणपति को देखा, तो उसे वे भा गए । उन्हें ध्यान से जगाने हेतु उसने पुकारा, ‘‘हे एकदंत, हे लंबोदर, हे वक्रतुंड !’’ गणपति का ध्यान भंग हुआ । नेत्र खोलें, तो अप्सरा दिखाई दी । उन्होंने उससे पूछा, ‘‘हे माता, आप मेरा ध्यान क्यों भंग कर रही हैं ?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘आप मुझे अच्छे लगे; मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं ।’’ गणपति ने कहा, ‘‘मैं कभी विवाह नहीं करूंगा, मोहपाश में नहीं पडूंगा ।’’ इस पर अप्सरा ने कहा, ‘‘मैं आपको श्राप देती हूं । आप विवाह करेंगे ही ।’’ गणपति ने उसे प्रतिश्राप दिया, ‘‘आप पृथ्वी पर वृक्ष बन जाएंगी ।’’ अप्सरा को पश्चाताप हुआ और उसने गणपतिसेे क्षमा मांगी । गणपति ने कहा, ‘‘माते, कृष्ण आपसे विवाह करेंगे तथा आप सुखी होंगी ।’’ वह अप्सरा आगे तुलसी बनीं । श्री गणेश ने तुलसी को कभी आश्रय नहीं दिया, इसलिए उन्हें तुलसी नहीं चढाते ।
आ. आध्यात्मिक कारण : श्री गणपति अधिकांशतः सकाम भक्ति के देवता हैं तथा तुलसी वैराग्यदायिनी हैं; इसलिए श्री गणपति को तुलसी चढाना निषिद्ध मानते हैं ।’
४. यदि श्रीगणपति की मूर्ति भंग हो जाए, तो क्या करना चाहिए ?
प्राणप्रतिष्ठापूर्व अथवा विसर्जनपूर्व अक्षत डालने के पश्चात मूर्ति के देवत्वहीन हो जाने पर यदि मूर्ति का अवयव टूट जाए, तो चिंता की कोई बात नहीं है । प्राणप्रतिष्ठा के पूर्व यदि मूर्ति के किसी अंश को क्षति पहुंचे तो नई मूर्ति की पूजा करें । मूर्ति के देवत्वहीन हो जाने पर किसी अंश को क्षति पहुंचे तो सामान्य पद्धति से ही मूर्ति विसर्जित करें । यदि प्राणप्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति के अंश को क्षति पहुंचे, तो मूर्ति पर अक्षत डालकर उसका विसर्जन करें । ऐसी घटना श्री गणेश चतुर्थी पर ही हो जाए, तो अन्य मूर्ति की पूजा करें । यदि यह घटना दूसरे अथवा तीसरे दिन हो, तो नई मूर्ति के प्रयोजन की आवश्यकता नहीं है । मूर्ति पूर्णतः भंग हो जाए, तो कुलपुरोहित के सुझाव अनुसार यथावकाश ‘अद्भुत दर्शन शांति’ करें । दीपपतन, सिलबट्टे का टूटना, अरवी के पौधे में फूल खिलना, मूर्ति का भंग होना इत्यादि अद्भुत घटनाएं होने पर उस परिवार में द्रव्यहानि, गंभीर रोग अथवा अपमृत्यु की आशंका होती है; इसके लिए उपरोक्त उपाय श्रद्धापूर्वक करें ।’
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’