प्रत्येक देवता एक तत्त्व है आैर यह तत्त्व युगों-युगों से है । यह तत्त्व विशिष्ट काल के लिए आवश्यक सगुण रूप में प्रगट होता है, उदा. भगवान श्रीविष्णु ने अलग अलग युग मे अलग अलग नौ अवतार धारण किए । श्री गणपति के कालानुसार विभिन्न अवतार कौन से हुए हैं, यह आगे दिया है ।
महोत्कट-विनायक
‘महोत्कट-विनायक’ को कृतयुग में, अर्थात सत्ययुग में कश्यप एवं अदिति ने जन्म दिया । इस अवतार में श्री गणपति ने देवान्तक एवं नरान्तक नामक राक्षसोंका संहार कर धर्मसंस्थापना की तथा अपने अवतार की समाप्ति की ।
गुणेश (पाठभेद – गजानन)
त्रेतायुग में श्री गणपति ने उमा के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन गुणेश (गजानन) के नाम से जन्म लिया । इस अवतार में श्री गणपति ने सिंधु नामक दैत्यका विनाश किया एवं ब्रह्मदेव की कन्याएं, सिद्धि एवं बुद्धि से विवाह किया ।
गजानन
द्वापरयुग में श्री गणपति ने पुनः पार्वती के गर्भ से जन्म लिया । इस अवतार में गजानन ने सिंदु-रासुरका वध कर उसके द्वारा बंदी बनाए गए अनेक राजाओं तथा वीरों को मुक्त किया । इसी अवतार में गजानन ने वरेण्य राजा को योग-मार्गप्रकाशक, सर्वसिद्धिदायक, अज्ञाननाशक तथा मनुष्यजीवनका उद्देश्य बतानेवाली ‘गणेशगीता’ बताई ।
धूम्रकेतु
भविष्यपुराण में वर्णन किया गया है कि, श्री गणपतिका चौथा अवतार कलियुग में धूम्रकेतू अथवा धूम्रवर्ण के नाम से होगा, जो म्लेच्छोंका (दुर्जनोंका) नाश करेगा ।’
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’