श्रीकृष्ण यादवों के सात्वत कुल के थे । श्रीकृष्ण के देहत्याग उपरांत सात्वतों ने उनकी उपासना आरंभ की । यह एक प्रकार से भक्तिमार्ग का आरंभ ही था । तमिलनाडु के आळवार संतों ने दक्षिण में श्रीकृष्ण भक्ति को प्रचलित किया ।
कुछ लोग श्रीकृष्ण के आचरण की निंदा करते हैं; परंतु उन्होंने सबकुछ औरों के कल्याण के लिए किया । उन्होंने दूसरों के हित के लिए स्वयं नियमबाह्य आचरण भी किया । श्रीकृष्ण पूर्णावतार थे । श्रीकृष्ण की कुछ अवतारविषयक विशेषताएं एवं कार्य इस लेख में बताए गए हैं ।
सुदर्शनचक्र साधारणतः श्रीविष्णु की, तथा श्रीकृष्ण पूर्णावतार होने के कारण श्रीकृष्ण की कनिष्ठिका पर (छोटी उंगली पर) होता है; परंतु चक्र फेंकते समय श्रीकृष्ण उसे तर्जनी से ही फेंकते हैं ।
गोपियों की भक्ति को ‘आदर्श भक्ति’ की उपमा दी जाती है । मोहमाया से विरक्त गोपियों की व भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला कितनी पवित्र होगी ! फिर भी कलियुग में रासलीला को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है । इस लेख में हम रासलीला का वास्तविक अर्थ समझने का प्रयास करेंगे ।
श्रीकृष्णतत्त्व और अधिक मात्रामें आए तथा उसका सभीको लाभ हो; इस हेतु उस श्रीकृष्णतत्त्वको आकर्षित तथा प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां एवं वह कब बनाएं ये लेख में दिया हैं ।
‘कुछ लोग आलोचना करते हुए कहते हैं, राम एवं श्रीकृष्ण परमात्मा नहीं हैं, मानव हैं !’ इस श्रीकृष्णसंबंधी आलोचना अथवा अनुचित विचार का खंडन इस लेख में दिया है ।