श्रीकृष्ण पूर्णावतार थे । यहां श्रीकृष्ण की कुछ अवतारविषयक विशेषताएं एवं कार्य बताए गए हैं ।
१. बचपन
अ. जन्म से नामकरणतक
देवकी एवं वसुदेव श्रीकृष्ण के माता-पिता थे । श्रीविष्णु की आज्ञानुसार योगमाया ने देवकी के सातवें गर्भ को वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में प्रविष्ट किया और वह स्वयं देवकी के गर्भ में रही । जन्मोपरांत कंस जब उसे मारने निकला, तो उसके हाथों से छूटकर योगमाया स्वस्थान चली गई । श्रीकृष्ण देवकी की आठवीं संतान थे । श्रीकृष्ण के जन्मोपरांत वसुदेव उन्हें गोकुल में नंद-यशोदा के घर ले गए । वसुदेव ने रोहिणी को भी उसके पुत्र के साथ गोकुल भेज दिया । यदु वंश के पुरोहित गर्ग मुनि ने वसुदेव के कहने पर दोनों बालकों का गुप्तरूप से नामकरण किया । उन्होंने रोहिणी के पुत्र का नाम राम एवं देवकी के पुत्रका नाम श्रीकृष्ण रखा । आगे चलकर रामकी प्रचंड शक्ति के कारण उनका नाम बलराम पडा ।
आ. बचपन केवल सात वर्ष की आयुतक
आयुके सातवें वर्ष में श्रीकृष्ण कंस का वध करने मथुरा गए, तभी उनका बचपन समाप्त हो गया था । मथुरा के आसपास के भूभाग को ब्रजभूमि कहते हैं । बालकृष्ण की लीला इसी प्रदेश में हुई, इसलिए इसे पुण्यभूमि मानते हैं ।
२. बुद्धिमान
कंसवध एवं उपनयन के पश्चात बलराम एवं श्रीकृष्ण अवंतीनगरी में गुरु सांदीपनि के आश्रम गए । संदीपनः अर्थात वह जिनके शरीर की सर्व कोशिकाओं में दीप अर्थात चैतन्य जागृत है । श्रीकृष्ण ने उनसे चौंसठ दिनों में चौदह विद्याएं एवं चौंसठ कलाएं सीखीं । साधारणतः एक विद्या सीखने में दो से ढाई वर्ष लगते थे ।
३. वयोवृद्धोंद्वारा भी श्रीकृष्ण की बात मान्य होना
वयोवृद्धों के साथ भी श्रीकृष्ण की निकटता थी । सात वर्ष की कोमल आयु में ही श्रीकृष्ण ने गोपियों को मथुरा जाने से रोका; क्योंकि दुष्ट कंस को दूध बेचकर अर्जित किया हुआ धन उन्हें स्वीकार न था । तब से वयोवृद्ध भी उनकी बात मानने लगे तथा श्रीकृष्ण ने भी उनके विश्वास को सार्थक किया ।
४. अनुभूति देना
अ. एक बार गोपियों ने यशोदा को बताया, ‘‘श्रीकृष्ण ने मिट्टी खा ली है ।’’ इस पर यशोदा ने श्रीकृष्ण को मुख खोलने के लिए कहा तथा श्रीकृष्ण के मुख खोलते ही यशोदा को उनके मुख में विश्वरूप के दर्शन हुए । इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि अवतार बचपन से ही कार्य करते हैं ।
आ. शरदऋतु की एक चांदनी रात को श्रीकृष्ण ने गोकुल में गोपियों के साथ रासक्रीडा रचाई । उस समय गोपियों को ब्रह्मानंद की अनुभूति हुई ।
५. शारीरिक
श्रीकृष्ण का सौंदर्य अद्वितीय था । उनके सौंदर्य से सभी मोहित हो जाते थे ।
६. ऐतिहासिक
श्रीकृष्ण को पकडने के लिए जरासंध ने अठारह बार मथुरा को घेरा । एक व्यक्ति को पकडने के लिए इतनी बार प्रयत्न करने का जग में अन्य कोई उदाहरण नहीं है । कंस २८० हाथियों को बेडों में यमुना नदी के पार ले आया । तीन माह मथुरा को घेरे रखने पर भी श्रीकृष्ण नहीं मिले । कंस श्रीकृष्ण को ढूंढ नहीं पाया क्योंकि श्रीकृष्ण प्रतिदिन किसी दूसरे घर चले जाते थे । एक सहस्र बालकों ने श्रीकृष्णसमान मोरपंख पहन लिए थे । कंस के सैनिकों ने उन नन्हें बालकों को मारा पीटा, तब भी उन्होंने यह भेद नहीं खोला, ‘वास्तव में श्रीकृष्ण कौन है ।’
७. पारिवारिक
अ. आदर्श पुत्र
श्रीकृष्ण अपने आचरणद्वारा माता-पिता वसुदेव-देवकी एवं पालनकर्ता नंद-यशोदाको आनंदित रखने का प्रयत्न करते थे ।
आ. आदर्श बंधु
श्रीकृष्ण अपने बडे भाई बलराम का मान रखते थे ।
इ. आदर्श पति
जबकि एक पत्नी का मन रखना कठिन होता है, श्रीकृष्ण ने १६,००८ पत्नियोंको संतुष्ट रखा ! नारदजी ने उनके बीच कलह उत्पन्न करने का प्रयत्न किया; परंतु वह प्रयत्न भी असफल रहा ।
ई. आदर्श पिता
अपनी संतान, पोता-पोती इत्यादि के अनुचित आचरण के कारण, श्रीकृष्ण ने यादवी युद्ध कर स्वयं ही उन्हें मार दिया । अवतार एवं देवताओं में अपना कुल-क्षय करनेवाले श्रीकृष्ण एकमात्र हैं ।
उ. आदर्श मित्र
स्वयं द्वारकाधीश होकर भी श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के निर्धन मित्र सुदामा का बडे प्रेम से स्वागत किया । पांडवों का सखा होने के नाते श्रीकृष्ण ने सदैव उनकी सहायता की । श्रीकृष्ण के प्रति पांडवों की सख्यभक्ति थी ।
ऊ. कलासंबंधी
नृत्य, संगीत इत्यादि कलाओं के श्रीकृष्ण भोक्ता एवं मर्मज्ञ थे । उनके बांसुरीवादन एवं रासक्रीडा प्रसिद्ध हैं । श्रीकृष्णकी बांसुरी सुनकर पशुपक्षी भी मोहित हो जाते थे ।
८. सामाजिक
अ. अन्यायको न सहन करनेवाला
श्रीकृष्ण ने स्वयं युद्ध कर अथवा युद्ध में दूसरों की सहायता कर कंस, जरासंध, कौरव इत्यादिद्वारा किए गए अन्याय को नष्ट किया ।
आ. सामाजिक कर्तव्य के प्रति सतर्क
नरकासुर के कारावास से मुक्त की गई १६,००० कन्याओंको समाज में उचित स्थान न मिल पाने से अनेक अनर्थ होंगे, यह ध्यान रख श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह किया ।
इ. ऐसा आचरण, जिससे दूसरों का कल्याण हो
कुछ लोग श्रीकृष्ण के आचरण की निंदा करते हैं; परंतु उन्होंने सबकुछ औरों के कल्याण के लिए किया । उन्होंने दूसरों के हित के लिए स्वयं नियमबाह्य आचरण भी किया, उदा. जरासंध वध, अर्जुन एवं सुभद्रा विवाह हेतु सुभद्रा का हरण, १६,००० कन्याओं से विवाह इत्यादि । भारतीय युद्ध के समय श्रीकृष्ण ने प्रतिज्ञा की थी कि वे शस्त्र नहीं उठाएंगे; परंतु भीष्माचार्य ने प्रतिज्ञा की कि वे श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने पर विवश करेंगे । उनकी प्रतिज्ञाकी पूर्ति हेतु श्रीकृष्ण ने शस्त्र (चक्र) लेकर भीष्माचार्य पर वार किया ।
ई. आपत्काल में धर्मानुसार उचित आचरण करना
उन्हें ज्ञात था कि यदि ऐसा न किया गया, तो इस अनीतिमय जगत में दुष्ट चांडालों का प्रभुत्व होगा तथा समाज का पतन हो जाएगा, प्रजा उद्ध्वस्त हो जाएगी । इसीलिए उन्होंने उपदेश किया है, ‘अनेक बार ‘असत्य’ सत्य की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है’, ‘इस समय धर्म त्यागकर ही लडना आवश्यक है’, ‘भीमसेन धर्मानुसार लडा तो उसे विजय नहीं प्राप्त होगी, अन्याय से लडा तो होगी ।’
८. राजनीतिकुशल
अ. उत्तम वक्ता
अपने अप्रतिम वक्तृत्वद्वारा श्रीकृष्ण ने कई लोगों के मन में पांडवों के प्रति आत्मीयता निर्माण की ।
आ. उत्तम राजदूत
कौरवों की राज्यसभा में श्रीकृष्ण ने पांडवों का पक्ष उत्कृष्टता से प्रस्तुत किया ।
इ. मानसशास्त्र का उत्तम प्रयोग करनेवाला
उचित समय पर कर्ण को उसका जन्मरहस्य बताकर श्रीकृष्ण ने उसे दुविधा में डाल दिया ।
९. युद्धसंबंधी
अ. युद्धकला में निपुण
- १. धनुर्विद्या में प्रवीण : अर्जुन के समान मत्स्यभेदन कर कृष्ण ने लक्ष्मण को जीता ।
- २. गदायुद्ध में प्रवीण : श्रीकृष्ण ने वक्रदंत को गदायुद्ध में मारा ।
- ३. मल्लविद्या में प्रवीण : चाणूर को श्रीकृष्ण ने मल्लयुद्ध में मारा ।
आ. शूर एवं पराक्रमी
श्रीकृष्ण ने अनेक दुष्ट राजाओं एवं मायावी राक्षसों का वध किया ।
इ. धैर्यवान
जब दो बलवान राजा, जरासंध एवं कालयवन ने एक ही साथ आक्रमण किया, श्रीकृष्ण ने धैर्य न हारकर यादवों की रक्षा की ।
ई. उत्कृष्ट सारथी
भारतीय युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथ्य सर्वोत्कृष्टता से किया ।
१०. निःस्वार्थी
श्रीकृष्ण ने कंस एवं कई अन्य राजाओं को मारा, सोने की द्वारका बसाई; परंतु वे स्वयं राजा नहीं बने । ऐसा होते हुए भी वे उस काल के अनभिषिक्त सम्राट ही थे । दुष्ट राजाओं का वध कर, उनकी संतान को गद्दी पर बिठाते समय श्रीकृष्ण ने कभी उनसे युद्ध का व्यय (खर्च) नहीं लिया ।
११. नम्र
पांडवों के राजसूययज्ञ के समय श्रीकृष्ण ने ब्राह्मणों का पादप्रक्षालन किया तथा झूठे पत्तल भी स्वयं उठाए । भगवद्गीतासमान एकमात्र तत्त्वज्ञान बताने पर भी श्रीकृष्ण ने किंचितमात्र भी उसका श्रेय अपने को नहीं दिया; अपितु यह कहा कि ‘ऋषिभिर्बहुधा गीतं’ अर्थात ‘ऋषियों ने अनेक बार जिसका कथन किया, अनेक प्रकार जिसका गौरवगान किया, वही मैं पुनः-पुनः कहता हूं ।’
१२. महान तत्त्ववेत्ता
श्रीकृष्णद्वारा बताया हुआ तत्त्वज्ञान गीता में दिया गया है । ‘उन्होंने अपने तत्त्वज्ञान में प्रवृत्ति (सांसारिक विषयों के प्रति आसक्ति) एवं निवृत्ति (सांसारिक विषयों के प्रति विरक्ति)के बीच उचित संयोजन दर्शाया है । मनुष्य को अपना कर्तव्य वैâसे निभाना चाहिए, इसी का मुख्यतः प्रतिपादन उन्होंने भगवद्गीता में किया है । शास्त्र यह निर्धारित करता है कि हमारा कर्तव्य क्या है; परंतु उस निर्धारित कर्तव्य को किस प्रकार निभाना चाहिए, यह श्रीकृष्ण ने उत्तम प्रकार से समझाया है । भगवद्गीता में उन्होंने अर्जुन को बताया कि प्रवृत्ति को निवृत्तिरूप में अथवा निवृत्ति को प्रवृत्तिरूप में वैâसे परिवर्तित करना चाहिए एवं मनुष्य को अपना कर्तव्य वैâसे निभाना चाहिए ।’
१३. गुरु
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को शब्दों के माध्यम से गीता सुनाकर एवं शब्दातीत माध्यम से अनुभूति प्रदान कर उसका विकल्प नष्ट किया ।
१४. ईश्वरीय गुणोंवाले
अ. सिद्धि एवं मोरपंख
श्रीकृष्ण को अष्टमहासिद्धि (श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां) एवं स्वयंरूप की (ईश्वर की) दशसिद्धि, ऐसी कुल अठारह सिद्धियां प्राप्त थीं । वस्त्रावतार धारण कर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी, यह इन सिद्धियों के योग से ही हुआ । विचक्षणावेंâद्र अतींद्रिय शक्ति का वेंâद्र है । वह जागृत होने पर, उस में अंतर्भूत वैश्वानर ग्रह एवं कुंडली का आकार मोरपंख समान होता है । श्रीकृष्णद्वारा धारण किया मोरपंख इस वेंâद्र के निरंतर जागृत रहने का दर्शक है ।
आ. सर्व प्राणियों से प्रेम करनेवाले
जब रीछों के राजा जांबुवंत ने श्रीकृष्ण से अपनी कन्या जांबवती से विवाह करने का विनय किया, तब श्रीकृष्ण ने सभी के द्वारा विरोध होने पर भी उससे विवाह किया । सामान्य रूप से कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता ।
इ. विशेषताओं का परिणाम
श्रीकृष्ण की सर्व विशेषताओं का दूसरों पर क्या परिणाम हुआ, यह आगे दिए गए उदाहरणों से ज्ञात होगा ।
१. भारतीय युद्ध में श्रीकृष्ण पर किसी ने भी आक्रमण नहीं किया । अन्य सारथियों पर आक्रमण हुए थे ।
२. मृतों के शव पर जीवित रहनेवाले गिद्ध एवं सियार के बीच भारतीय युद्ध के पश्चात संवाद हुआ । उस संवाद में उन्होंने सभी
मनुष्यों की गलतियां बतार्इं, युधिष्ठिर की भी गलती बताई; परंतु श्रीकृष्ण की एक भी गलती नहीं बता पाए ।
संदर्भ : सनातन का ग्रंथ, ‘श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण’