श्रीकृष्ण यादवों के सात्वत कुल के थे । श्रीकृष्ण के देहत्याग उपरांत सात्वतों ने उनकी उपासना आरंभ की । यह एक प्रकार से भक्तिमार्ग का आरंभ ही था । तमिलनाडु के आळवार संतों ने दक्षिण में श्रीकृष्ण भक्ति को प्रचलित किया । महाभारत के काल में श्रीकृष्ण की उपासना को ‘पांचरात्र’ कहते थे । इस मार्ग का संबंध भक्तिमार्ग की अपेक्षा तंत्रविद्या से अधिक था । अब यह मार्ग लगभग लुप्त ही हो गया है ।
श्रीकृष्ण की उपासना अंतर्गत कुछ नित्य कृत्य
उपासनाका कृत्य | कृत्यके संदर्भमें प्राप्त ज्ञान |
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१़. श्रीकृष्णपूजनसे पूर्व उपासक स्वयंको तिलक कैसे लगाए ? | विष्णुसमान खडी दो रेखाओंका अथवा भरा हुआ खडा तिलक मध्यमासे लगाए । |
२़. श्रीकृष्णको चंदन किस उंगलीसे लगाएं ? | अनामिकासे |
३. पुष्प चढाना
अ. पुष्प कौनसे चढाएं ? आ. संख्या कितनी हो ? इ. पुष्प चढानेकी पद्धति कैसी हो ? ई. पुष्प किस आकारमें चढाएं ? |
कृष्णकमल तीन अथवा तीन गुना पुष्पोंके डंठल देवताकी ओर कर चढाएं । लंबगोलाकार |
४. अगरबत्तीसे आरती उतारना
अ. तारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी अगरबत्ती ? आ. मारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी अगरबत्ती ? इ. संख्या कितनी हो ? ई. आरती उतारनेकी पद्धति कैसी हो ? |
चंदन, केवडा, चंपा, चमेली, जाही, खस एवं अंबर हिना एवं दरबार दा दाहिने हाथकी तर्जनी एवं अंगूठेमें पकडकर घडीकी सुईयोंकी दिशामें पूर्ण गोलाकार पद्धतिसे तीन बार घुमाएं । |
५. इत्र किस गंधका अर्पित करें ? | जाही |
६़. श्रीकृष्णकी कितनी परिक्रमा करें ? | न्यूनतम तीन अथवा तीनकी गुणजम |
स्त्राेत : सनातन का ग्रंथ, ‘श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण’