१. श्रीराम की पूजाविधि
‘श्रीराम’ श्रीविष्णु का अवतार हैं, इसलिए उनकी पूजाविधि श्रीविष्णु समान ही है ।
२. श्रीराम की उपासना के अंतर्गत नित्य कर्म
प्रत्येक देवता का उपासना-शास्त्र पृथक होता है । इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक देवता की उपासना से संबंधित प्रत्येक कृत्य विशिष्ट प्रकार से करने का शास्त्रीय कारण है । इन कृत्यों से उपासक को संबंधित देवता का तत्त्व अधिकाधिक मात्रा में प्राप्त करने में सहायता मिलती है । श्रीराम की उपासना से संबंधित नित्य के कुछ कृत्य किस प्रकार से करें, इस विषय में सनातन की साधिका श्रीमती अंजली गाडगीळ को ईश्वरीय कृपा से प्राप्त सूक्ष्म-स्तरीय ज्ञान निम्न सारणी में दिया है ।
उपासना का कृत्य | कृत्य के संदर्भ में प्राप्त ज्ञान |
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१़. श्रीरामपूजन से पूर्व उपासक स्वयं को कौनसा तिलक कैसे लगाए ? | विष्णु समान खडी दो रेखाओं का अथवा भरा हुआ खडा तिलक मध्यमा से लगाए । |
२़. श्रीराम को चंदन किस उंगली से लगाएं ? | अनामिका से |
३. पुष्प चढाना
अ. पुष्प कौन से चढाएं ? आ. संख्या कितनी हो ? इ. पुष्प चढाने की पद्धति कैसी हो ? ई. पुष्प किस आकार में चढाएं ? |
जाही चार अथवा चार गुना पुष्पों के डंठल देवता की ओर कर चढाएं । लंबगोलाकार (भरा हुआ अथवा खोखला) |
४. अगरबत्ती से आरती उतारना
अ. तारक उपासना के लिए किस सुगंध की अगरबत्ती ? आ. मारक उपासना के लिए किस सुगंध की अगरबत्ती ? इ. संख्या कितनी हो ? ई. आरती उतारने की पद्धति कैसी हो ? |
चंदन, केवडा, चंपा, चमेली, जाही एवं अंबर हिना एवं दरबार दो दाहिने हाथ की तर्जनी एवं अंगूठे में पकडकर घडी की सुईयों की दिशा में पूर्ण गोलाकार पद्धति से तीन बार घुमाएं । |
५. इत्र किस गंध का अर्पित करें ? | जाही |
६़. श्रीराम की कितनी परिक्रमा करें ? | न्यूनतम तीन अथवा तीन की गुणज में |
३. श्रीराम की पूजा के अवसर पर श्रीराम-तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली आकृतियों का प्रयोग करना
४. श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ
जिस स्तोत्र का पाठ करनेवालों की श्रीराम द्वारा रक्षा होती है, वह स्तोत्र है श्रीरामरक्षा स्तोत्र । भगवान शंकर ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षा सुनाई और प्रातःकाल उठने पर उन्होंने वह लिख ली । यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में है । इस स्तोत्र के नित्य पाठ से घर की सर्व पीडा एवं भूतबाधा भी दूर होती है । जो इस स्तोत्र का पाठ करेगा वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी तथा विनय संपन्न होगा’, ऐसी फलश्रुति इस स्तोत्र में बताई गई है । इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र में श्रीरामचंद्र का यथार्थ वर्णन, रामायण की रूपरेखा, रामवंदन, रामभक्तस्तुति, पूर्वजों को वंदन एवं उनकी स्तुति, रामनाम की महिमा इत्यादि विषय समाविष्ट हैं ।
५. नामजप
उपासना के विविध प्रकार हैं – पूजा, आरती, भजन इत्यादि, जिन्हें करने से उस देवता का लाभ मिलता ही है । इन उपासना-पद्धतियों की अपनी सीमा होती है, इसलिए लाभ भी उसी के अनुरूप मिलता है । देवता के तत्त्व का निरंतर लाभ मिलता रहे, इसके लिए उनकी उपासना भी अविरत होनी चाहिए और ऐसी एकमात्र उपासना है नामजप । कलियुग के लिए नामजप ही सरल एवं सर्वोत्तम उपासना है ।
श्रीराम के कुछ प्रचलित नामजप आगे दिए अनुसार हैं ।
१. ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’
इस मंत्रका अर्थ इस प्रकार है –
श्रीराम : यह श्रीराम का आवाहन है ।
जय राम : यह स्तुतिवाचक है ।
जय जय राम : ‘नमः’ समान यह शरणागति का दर्शक है ।
२. ‘हरे राम हरे राम …. हरे हरे’ जप
‘कलिसंतरणोपनिषद् कृष्णयजुर्वेद में है एवं इसे ‘हरिनामोपनिषद्’ भी कहते हैं । यह उपनिषद् द्वापरयुग के अंत में ब्रह्मदेव ने नारद को सुनाया था । इसका सारांश यह है कि नारायण के नाम मात्र से कलिदोष नष्ट होते हैं ।
यह नाम निम्न सोलह शब्दों से बना है –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
ये सोलह शब्द जीव के जन्म से लेकर मृत्युतक की सोलह कलाओं से (अवस्थाओं से) संबंधित हैं एवं यह मंत्र आत्मा के चारों ओर माया के आवरण का, अर्थात जीव के आवरण का नाश करता है । कुछ कृष्णसंप्रदायी मंत्र के दूसरे चरण का उच्चारण प्रथम करते हैं एवं तत्पश्चात पहले चरणका करते हैं ।’
संदर्भ : सनातन मा ग्रंथ, ‘श्रीविष्णु, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण’